शुक्रवार, 10 जून 2022

विशेष

 



स्मृति शेष पण्डित शिवकुमार शर्मा

राजा दुबे

10 मई, 2022 के दिन.......

थम गया सन्तूर का दिव्य राग

अस्त हुआ संगीत का एक सितारा ।

संतूर का दिव्य राग और संगीत का सितारा यानी पण्डित शिवकुमार शर्मा, जिनका गत दिनों  मुम्बई में हृदयाघात से निधन हो गया । सुप्रसिद्ध बाँसुरीवादक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया के साथ बाँसुरी और सन्तूर की विलक्षण संगत करने वाले शिवकुमार शर्मा सन्तूर के माध्यम से राग-रागनियों का दैविक संसार रचते थे । उनके अवसान के साथ ही सन्तूर का एक दिव्य राग थम गया है, संगीत का एक और जाज्वल्यमान सितारा अस्त हो गया।

चौरासी वर्षीय पण्डित शिवकुमार किडनी की बीमारी से पीड़ित थे और पिछले छः माह से उनका डायलिसिस चल रहा था। शिवकुमार शर्मा का जन्म 13 जनवरी, 1938 को जम्मू में हुआ था। उनके पिता पण्डित उमादत्त शर्मा भी जाने-माने गायक थे, संगीत उनके खून में  था। पाँच साल की उम्र में ही आपकी  संगीत की शिक्षा शुरू हो गई थी । पिता ने उन्हें सुर-लय और तबला दोनों की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी थी। तेरह साल की उम्र में उन्होंने सन्तूर सीखना शुरू किया। संतूर जम्मू-कश्मीर का लोक वाद्ययंत्र था, जिसे अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धी दिलाने और उसे शास्त्रीय वाद्य का दर्जा दिलवाने का श्रेय भी आपको ही प्राप्त है । आपके ही प्रयास से सन्तूर को अन्य पारम्परिक और प्रसिद्ध वाद्ययंत्रों जैसे सितार और सरोद के समकक्ष खड़ा कर दिया। यह और बात है कि संकोचवश कभी ऐसा दावा नहीं किया ।

पण्डित शिवकुमार ने फिल्मों में भी संगीत दिया

शिवकुमार शर्मा ने वर्ष 1956 में फिल्म - “झनक झनक पायल बाजे” के लिए म्यूजिक कम्पोज किया था। फिर वर्ष 1960 में सन्तूर को केन्द्र में रखकर एक एल्बम निकाला । यह बात शायद कम ही लोग जानते हैं कि पण्डित शिवकुमार ने आर.डी. बर्मन के कहने पर फिल्म गाइड का लोकप्रिय गाना - “मोसे छल किए जाए” में तबला बजाया था और यह गाना लता मंगेशकर ने गाया था । वर्ष 1955 में महज सत्रह साल की उम्र में पण्डित  शिवकुमार शर्मा ने मुंबई में सन्तूर वादन का अपना पहला शो किया था। इसके बाद उन्होंने सन्तूर के तारों से दुनिया को संगीत की एक नई आवाज़, एक नई अनुभूति से वाकिफ कराया। शास्त्रीय संगीत में उनका साथ देने आए बाँसुरी वादक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया। दोनों ने वर्ष 1967 से साथ में काम करना शुरू किया और शिव-हरि के नाम से जोड़ी बनाई । सन्तूरवादक पण्डित. शिवकुमार शर्मा और बांसुरीवादक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया अपनी जुगलबंदी के लिए प्रसिद्ध थे । वर्ष 1967 में पहली बार दोनों ने शिव-हरि के नाम से एक क्लासिकल एलबम तैयार किया। एलबम का नाम था 'कॉल ऑफ द वैली' इसके बाद उन्होंने कई म्यूजिक एलबम साथ-साथ किए। शिव-हरि की जोड़ी को फिल्मों में पहला ब्रेक यश चोपड़ा ने दिया। वर्ष 1981 में आई फिल्म - ‘सिलसिला’ में शिव-हरि की जोड़ी ने संगीत दिया था। यश चोपड़ा की चार फिल्मों -  ‘फासले’ (1985), ‘चाँदनी’ (1989), ‘लम्हे’ (1991) और ‘डर’ (1993) में इस जोड़ी ने संगीत दिया। इसके अलावा भी कई फिल्मों में उन्होंने साथ में काम किया।

शिवकुमार शर्मा की अपनी जीवन दृष्टि भी अद्भुत थी

सुप्रसिद्ध सन्तूर वादक शिवकुमार शर्मा  केवल एक सन्तूर वादक ही नहीं जीवन दर्शन के विलक्षण अध्येता भी थे और उनकी जीवन दृष्टि की परिपक्वता उनके संगीत से इतर वक्तव्यों को सुनने से पता चलती है । वे अक्सर ऐसे उद्बोधन में बड़ी-बड़ी बातें सहज भाव से कह देते थे ।

यह बात उनके द्वारा  बताये गये सफलता के निम्न सूत्रों से स्पष्ट होती है –

पहला – सीखने का कभी अंत नहीं होता बशर्ते  आपका मन और  आपकी नज़र सीखने के लिए तैयार हो ।

दूसरा – जितने भी दौर गुजरे हैं; हर दौर में, हर सिचुएशन में, हर शख्स से, चाहे वह कलाकार हो, श्रोता हो, या शिष्य हो, उनसे मैंने सदा सीखा है , आप भी सीखने का यह जज्बा पैदा करो ।

तीसरा – अगर आपकी सीखने की इच्छा जागृत रहे तो सड़क पर काम करने वाले एक मजदूर से, घर की सफाई करने वाले या खाना पकाने वाले से भी हम कुछ न कुछ सीख सकते हैं।

चौथा – आप सबसे ज़्यादा तब सीखते हैं जब आपके सामने विफलताएँ आती हैं, याद रखें  सफलता बड़ी खतरनाक चीज़ होती है।

पाँचवाँ – तारीफ़ से आदमी के सामने रूकावट पैदा करने का संकट आता है, हम बुराई से ज्यादा सीखते हैं। एक पुरानी कहावत है, वहाँ जाइए जहाँ आपकी बुराइयों का जिक्र किया जाता है और उस जगह आपको इसलिए जाना चाहिए क्योंकि वहाँ आपको आपकी वास्तविक स्थिति बताई जाती है।

छठा  – जिसे तारीफ पचा पाना आ गया उसकी तरक्की का रास्ता कोई नहीं रोक सकता।

सातवाँ – बड़े-बड़े लोग ऊँचाई पर पहुँच कर नीचे आ जाते हैं। पहाड़ों पर हम देखते हैं कि जिसे ऊपर चढ़ना होता है वह झुककर (नम्र होकर) चलता है और जिसे नीचे आना होता है वह तनकर (अहंकार से) नीचे आता है।

पण्डित शिवकुमार शर्मा ने ही सन्तूर को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलवाई

पण्डित शिवकुमार शर्मा के अवसान पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शोक जताते हुए कहा कि पण्डित शिवकुमार शर्माजी के निधन से हमारी सांस्कृतिक दुनिया अधूरी हो गई है। उन्होंने सन्तूर को विश्व में पहचान दिलाई और लोकप्रिय बनाया। उनका संगीत आने वाली पीढ़ियों को मंत्रमुग्ध करता रहेगा। मुझे उनके साथ अपनी बातचीत अच्छी तरह याद है। वे कहते थे शहनाई का सन्दर्भ निकलने पर बरबस यह कहा जाता है कि अच्छी शहनाई , वो जो उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ सा'ब बजाते हैं , या फिर बाँसुरी का जिक्र होने पर कहा जाता है ओह! बाँसुरी वो जो पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया बजाते हैं, मेरी भी दिली इच्छा ऐसी ही है कि लोग मुझे सन्तूर के जरिए जानें । तब प्रधानमंत्रीजी ने कहा था कि केवल मैं ही नहीं लाखों संगीत प्रेमी आपको सन्तूर के माध्यम से ही जानते हैं । आज वे नहीं है मगर उनके सन्तूर की अनुगूँज हमारे बीच है ।

विविध पुरस्कारों से सम्मानित

देश का दूसरा सर्वोच्च सम्मान पद्मविभूषण सहित अनेक सम्मान आपको प्राप्त हुए मगर वो जनता के प्यार को ही सर्वोपरि सम्मान मानते थे । पण्डित शिवकुमार शर्मा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1991 में पद्मश्री और वर्ष  2001 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1985 में उन्हें संयुक्त राज्य बाल्टीमोर की मानद नागरिकता प्रदान की गई और वर्ष 1986 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फिल्मों में संगीत के लिए भी आपको विभिन्न सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। उन्हें फिल्म  सिलसिला और चाँदनी के लिए तथा  गैर फिल्मी एल्बम – ‘कॉल आप दी वेली’ के लिए प्लेटिनम डिस्क और फ़िल्म फासले के संगीत  के लिए गोल्ड डिस्क अवार्ड मिला है ।

शिवकुमार शर्मा के देहावसान से एक युग का पटाक्षेप हो गया मगर इसके पहले उन्होंने शास्त्रीय वाद्यों की कतार में सन्तूर को जो स्थापित किया वो उनका अद्वितीय योगदान है।



 

राजा दुबे

एफ - 310 राजहर्ष कालोनी ,

अकबरपुर

कोलार रोड

भोपाल 462042

 

 

 

1 टिप्पणी:

  1. देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए,दूर तक निगाह में है गुल खिले हुए । शिव कुमार जी संतूर के इतने गुल खिलाये है कि हम हरदम सराबोर रहते है उनके गुल से । महान कलाकार को सादर नमन । दुबे जी आपकी कलम को सलाम ।

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