बुधवार, 4 मई 2022

दोहे

 





डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

 

गाँव, शहर खलिहान में, चँहु दिशि घूमे घाम ।

अलसाई दोपहर को, रुचे न कोई काम ।।

 

रुत गरमी की आ गई, लिए अगन-सा रूप ।

भोर हुए भटकी फिरे, चटख सुनहरी धूप।।

 

सूरज के तेवर कड़े, बरसाता है आग ।

पर मुस्काए गुलमोहर , पहन केसरी पाग ।।

 

लगें बताशा अम्बियाँ, बड़ी जायकेदार ।

भरी बाल्टियाँ ला धरीं, दादा जी ने द्वार ।।

 

बड़ी बेरहम ये गरम, हवा उड़ाती धूल

मुरझाया यूँ ही झरा, विरही मन का फूल ।।

 

तपता अम्बर हो गई, धरती भी बेहाल ।

सूनी पगडंडी डगर, किसे सुनाएँ हाल ।।

 

लथपथ देह किसान की, बहा स्वेद भरपूर ।

चटकी छाती खेत की, बादल कोसों दूर ।।

 

दिनकर निकला काम पर, करे न कोई बात ।

कितने मुश्किल से कटी, यह गरमी की रात ।।

 

उमड़-उमड़ कर जो कभी, खूब सींचती प्यार ।

सूख-सूख नाला हुई, वह नदिया की धार ।।



 

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

एच-604 , प्रमुख हिल्स, छरवाडा रोड ,वापी

जिला- वलसाड(गुजरात) 3961

3 टिप्‍पणियां:

  1. विरही मन का फूल, अद्भुत प्रयोग। सभी दोहे सुंदर।

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  2. सभी दोहे एक से बढ़कर एक। बधाई आदरणीया

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  3. बेहतरीन दोहे. बहुत बधाई💐

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