सोमवार, 4 अप्रैल 2022

कवि परिचय

 


गुजरात के मध्यकालीन कृष्णभक्त कवि नरसिंह मेहता

डॉ. हसमुख परमार

वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ पराई जाणे रे 

पर दुःखे उपकार करे तो मन अभिमान न आणे रे ।।

(दूसरों की पीड़ा का अनुभव करें तथा उन पर उपकार करने पर भी जिनके मन में अभिमान पैदा न हो, ऐसे लोग ही सही अर्थ में वैष्णव जन हैं) इस प्रसिद्ध तथा महात्मा गाँधी के अतीव प्रिय भजन (गाँधी जी की दैनिक पूजा-प्रार्थना का अभिन्न हिस्सा) के रचयिता नरसिंह मेहता का स्थान मध्यकालीन गुजराती भक्तिसाहित्य, विशेषतः कृष्णभक्ति काव्य में मूर्द्धन्य है। उनके सृजन का स्तर तथा गुजराती साहित्य में इस कवि के स्थान, महत्व व प्रभाव के चलते गुजराती साहित्येतिहास में मध्यकालीन भक्तिसाहित्य के एक लम्बे सृजनकाल को ‘नरसिंह युग’ की संज्ञा देना भी अनुचित नहीं होगा। गुजराती के महान सर्जक श्री उमाशंकर जोशी ने नरसिंह मेहता को गुजराती भाषा का आदिकवि कहा है। यहाँ नरसिंह को आदिकवि ऐतिहासिक दृष्टि से नहीं बल्कि गुजराती साहित्य में उनके कृतित्व की प्रौढ़ता तथा सही मायने में गुजराती साहित्य तथा गुजराती भाषा को साहित्यिक ऊँचाई प्रदान कर के उसे गौरवान्वित करने के कारण जोशी जी ने नरसिंह को आदि कवि कहा।

          गुजराती में जहाँ इस भक्त कवि को नरसिंह महेता तथा नरसैंयो नाम से जाना-पहचाना जाता है, वहाँ हिन्दी में उनके लिए ज्यादातर नरसी या नरसी मेहता नाम व्यवहृत होता रहा है। नाभादास, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. जगदीश गुप्त, पं. हजारी प्रसाद व्दिवेदी आदि हिन्दी के अग्रणी अध्येताओं ने भी अपने अध्ययन में इस कवि के लिए नरसी नाम का ही प्रयोग किया है।

          सृजन का स्वरूप तथा उसमें निहित संवेदना की दृष्टि से गुजराती के नरसी मेहता तथा हिन्दी के सूरदास, इन दोनों में ज्यादा साम्य है। गुजराती में जो स्थान नरसी मेहता का है लगभग वही स्थान हिन्दी में सूरदार का है। दरअसल कृष्णभक्ति की भारतव्यापी परंपरा में इन दोनों समानधर्मा परमवैष्णव भक्त कवियों का स्थान सर्वोपरि है। और दोनों ही कवि अपनी-अपनी भाषा में परवर्ती कवियों के प्रेरणास्रोत रहे हैं।

          नरसी के जन्म तथा निधन का समय, साथ ही उनके जीवन संबंधी विविध पहलुओं को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है। नरसी की स्वयं की रचनाएँ (आत्मपरक कृतियाँ), अन्य कवियों-अध्येताओं की रचनाएँ जिसमें नरसी तथा उनके जीवन-सृजन का ब्यौरा है तथा लोक अनुश्रुति से प्राप्त नरसी का जीवन परिचय, यानी अंतः साक्ष्य तथा बहिःसाक्ष्य स्रोतों से प्राप्त नरसी जीवन-वृत्त के संबंध में निन्म बिन्दुओं को हम देख सकते हैं-

· समय 15 वीं या 16 वीं शती।

· जन्म स्थान - भावनगर के निकट तलाजा गाँव (गुजरात) कर्मभूमि-जूनागढ (गुजरात) जाति-नागर ब्राह्मण।

· पत्नी माणेक महेती बहुत ही सरल एवं सती-साध्वी स्त्री। दो संतानें पुत्र-सामळदास और पुत्री-कुँवरबाई

· अभावग्रस्त जीवन पर वैष्णव भक्ति के प्रति पूरी तरह समर्पित, कृष्ण के प्रति अपार श्रद्धा-अटूट विश्वास जिसके फलस्वरूप जीवन में आई समस्याओं का अनायास ही हल होता रहा।

· समस्त जीवन कृष्ण भक्ति में व्यतित करने वाले समदृष्टा भक्त। जातिगत भेदभाव से बिल्कुल मुक्त वे हरिजनों की बस्ती में जाकर भी अपने प्रभु का कीर्तन किया करते थे।

· परिवार व जाति-बिरादरी द्वारा एक तरह से उपेक्षित रहे पर कृष्ण प्रेम में तल्लिन रहने वाले नरसी को इसकी तनिक भी चिंता नहीं रहती थी।

· नरसी मेहता के जीवन से संबधी कई किंवदंतियाँ व चमत्कारिक घटनाओं का उल्लेख उनकी रचनाओं में हुआ है। और लोक में इन अलौकिक-चमत्कृत प्रसंगों के प्रति सहज विश्वास भाव मिलता है। इन्हीं प्रसंगों-जिसमें कृष्ण द्वारा उनके जीवन में आई समस्याओं का हल - के कारण उनकी भक्ति की छाप जन-मन पर सुद्दढ होती गई।

सृजनकर्म

नरसी मेहता के सृजन को लेकर गुजराती भाषा में विपुल मात्रा में शोध-संपादन व संकलन कार्य हुआ है। साथ ही हिन्दी में भी तुलनात्मक अध्ययन के अंतर्गत नरसी का कृतित्व अध्येताओं के अध्यन का विषय रहा है। नरसी मेहता विषयक अध्ययन में उनकी निम्न रचनाओं पर अध्येताओं ने विस्तार से विचार किया है -

· सामळदास नो विवाह, कुँवरबाईनुं मामेरुँ, हूंडी, हारमाळा, झारी नां पदो, श्राद्ध, हरिजनवास मां भजन-किर्तन (आत्मचरित संबंधी रचनाएँ)

· चातुरीओ, दाणलीला, सुदामाचरित (आख्यानपरक रचनाएँ)

· कृष्णप्रीति संबंधी पद

· भक्ति-ज्ञान-वैराग्य-उपदेश-तत्वदर्शन संबंधी पद

कवि नरसी मेहता तथा उनके साहित्य की कतिपय विशेषताएँ -

· नरसी का जीवन, नरसी की भक्ति व कृष्णप्रेम, नरसी पर कृष्ण की कृपा एवं तत्संबंधी विविध प्रसंग, ज्ञान-वैराग्य-उपदेश-दर्शन संबंधी नरसी के विचार नरसी साहित्य की केन्द्रीय विषय-वस्तु है।

· झूलणा छंद तथा प्रभातियाँ नरसी मेहता के काव्य की विशेष पहचान रही है। झूलणा छंद एक मात्रिक छंद है जिसमें 37 मात्राएँ होती हैं। प्रभातियाँ जो प्रातःकाल में गाये जाने वाले भक्तिपरक पद है और नरसी के प्रसिद्ध प्रभातियाँ झूलणा छंद में निबद्ध है। झूलणा के साथ-साथ दोहा, चौपाई, हरिगीतिका, सवैया आदि छंदों का प्रयोग भी नरसी-काव्य में मिलता है।

· गुजराती साहित्य में भावप्रवण कृष्णभक्ति से अनुप्रेरित पदों के रचयिता के रूप में नरसी मेहता की ख्याति।

· विद्वानों के मतानुसार नरसी मेहता पर जयदेव का असर स्पष्ट दिखाई देता है। उनके अनेक काव्यों की वस्तु जयदेव के गीतगोविंद से ली गई लगती है।

· नरसी का ज्ञान-वैराग्य का अनुभवसिद्ध काव्य मानव चित्त में शाश्वत तत्वों को प्रवेश कराने में सक्षम है।

· भक्ति और श्रद्धा ही नरसी के जीवन का मूलमंत्र था। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का गान ही नरसी के जीवन का मुख्य लक्ष्य था। कृष्ण के बाल्य एवं यौवन दोनों अवस्थाओं से संबंधी भावों की अभिव्यंजना उनके पदों में हुई है। आत्मपरक काव्य तथा बाललीला व भक्ति-ज्ञान के कतिपय काव्यांशों को छोड़ शेष साहित्य राधा-कृष्ण एवं गोपियों की मधुर लीलाओं से ही जुड़ा है। रास, दान, पनघट, हिंडोला, वसंत आदि लीलाओं के अनेकों पद।

· वात्सल्य एवं शृंगार की प्रधानता, साथ ही हास्य एवं करुण भावों की भी अभिव्यंजना।

· नरसी के काव्य में प्रकृति सुषमा का भी अतीव रसपूर्ण वर्णन हुआ है। प्रातः काल के सुंदर दृश्य, वृंदावन की अप्रतिम सुंदरता, हिंडोला लीला में वर्षा, वसंत का सौंदर्य, शरद की शोभा आदि नरसी के प्रकृति चित्रण के प्रिय विषय रहे हैं। ऋतु वर्णन के अंतर्गत कवि ने विशेषतः वर्षा, वसंत तथा शरद का वर्णन किया है।

· श्री कृष्ण की मधुर लीलाओं के गायक इस कवि ने अपने साहित्य में भक्ति के साथ-साथ ब्रह्म, जीव, जगत, माया से संबंधी अपने विचार प्रकट किये हैं। अपने इन दार्शनिक विचारों में जीवन की नश्वरता, मृत्यु की अनिवार्यता तो कहीं उपदेश व गुणों की बात की है।

· नरसी के भक्ति संबंधी पदों में उनका स्वर मुक्ति व मोक्ष की कामना से ज्यादा जुड़ा नहीं है बल्कि इसमें तो इस भूतल पर ही कृष्ण कीर्तन करने की इच्छा व्यक्त हुई है। इस तरह नरसी के यहाँ मुक्ति की लालसा नहीं पर भक्ति की ही महिमा है।

संदर्भ ग्रंथ

सूरदास और नरसिंह महेताः तुलनात्मक अध्ययन, डॉ. भ्रमरलाल जोशी


 

  डॉ. हसमुख परमार

एसोसिएट प्रोफ़ेसर

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर

जिला- आणंद (गुजरात) – 388120

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. અદભૂત સાહેબ , મધ્યકાલીન ગુજરાતી સાહિત્યના કવિ નરસિંહ મહેતા વિશે ખૂબ ઊંડાણમાં માહિતી મળી ખૂબ આનંદ થયો 🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ��
    धन्यवाद सर ��

    जवाब देंहटाएं
  3. भक्त कवि नरसिंह मेहता पर बहुत सुन्दर, सारगर्भित आलेख, हार्दिक बधाई 🙏💐

    जवाब देंहटाएं
  4. श्रद्धेय गुरुवर्य सादर प्रणाम, प्रस्तुत लेख में गुजराती मध्यकालीन कृष्णभक्त कवि नरसिंह मेहता के जीवन एवं कृतित्व का व्यापक ब्योरा बहुत ही कम एवं सटीक शब्दों में चित्रित करके नरसिंह मेहता की भगवान कृष्ण के प्रति अप्रितम संवेदना को उजागर किया है। आपके इस लेख से मध्यकालीन कृष्णभक्ति परंपरा से रूबरू होने का अहसास हुआ साथ ही नरसिंह और सूरदास के कृतित्व के तुलनात्मक पहलुओं से भी अवगत हुआ। नरसिंह मेहता के जीवन संबंधी अनेक नवीनतम पहलू पर आपने स्पस्ट विचार प्रस्तुत किए हैं जिनसे आम पाठक कभी अवगत नहीं हो पाता। नरसिंह मेहता की रचनाओं का विश्लेषण बहुत ही गहराई से उजागर किया हैं। आपके विचार एवं चिंतन को नमन।

    जवाब देंहटाएं
  5. अत्यंत संक्षिप्त रूप में ढेर सारी जानकारी के लिये आप धन्यवाद के अधिकारी हैं। मैं कुछ विशेष जानकारी दूं, तो इसे अविनय न समझा जाए। भक्तकवि नरसिंह महेता की ज्ञाति नागर थी, जो नागर ब्राह्मण से थोड़ी अलग है। उन दिनों नागर परिवार में वेद उपनिषद की शिक्षा बचपन से दी जाती थी, इसलिए उनकी रचनाओं में प्रदर्शित तत्वज्ञान सरल भाषा में वेदवाणी ही है। यही कारण है कि कवि जयदेव की रचनाओं के साथ साम्य नज़र आता है। यह समय था, जब संस्कृत का प्रचलन आम लोगों में कम हो रहा था, तब इन कवियों ने स्थानीय भाषाओं में वेदज्ञान की प्रस्तुति का स्तुत्य कार्य किया।

    जवाब देंहटाएं

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...