शुक्रवार, 4 मार्च 2022

कविता

 



मातृभाषा

डॉ. अनु मेहता

हृदय  की प्रस्तावना और संप्रेषण का प्रथम चरण है मातृभाषा

संवेदना का शब्दकोश और व्यवहार का व्याकरण है मातृभाषा

 

बाल्यकाल की ये बारहखड़ी और प्रारंभ की मात्रा है मातृभाषा

परम आनंद की राह और अंतर  की    तीर्थ  यात्रा है मातृभाषा

 

जीवन का सुमधुर प्रारंभ और समुचित उपसंहार है मातृभाषा

सभ्यता, संस्कृति का अपूर्व अलंकार और सूत्रधार है मातृभाषा

 

माँ की मीठी-मीठी लोरी में गाती मुस्काती-हर्षाती है मातृभाषा

मासूम नटखट तुतलाती बोली में कितना इठलाती है मातृभाषा

 

लहराते  आँचल  तले इन  उनींदे  सपनों में पलती है मातृभाषा

धूप हो  या  छाँव मगर  जिंदगी भर  साथ  चलती है मातृभाषा

 

दुआओं, सजदों  और प्रार्थनाओं में  पूर्ण  प्रवाहित है मातृभाषा

ज्ञान-बोध-शोध  के  नव-क्षितिजों  में  समाहित है मातृभाषा

 

मूल्यों की आचार संहिता, विकास का संविधान है मातृभाषा

संवेदनाकाश एवं विचारभूमि - अनूठा अनुसंधान है मातृभाषा

 

समझिए इसे, धमनी-रक्त- शिराओं में  विद्यमान है मातृभाषा

मनुष्य का गर्व ,स्वाभिमान,सम्मान और पहचान है मातृभाषा

 

संवर्धन सरंक्षण कर्तव्य है ,गौरव की परिभाषा है मातृभाषा

हृदयासन पर विराजित, राष्ट्र की अस्मिता-आशा है मातृभाषा।



 

स्त्री शक्ति

 

मैं स्नेह और महत्व की बहती नदिया हूँ,

भले ही तुम मुझे कोई जाह्नवी ना कहो।

 

मैं भी तो एक अदना सी मानवी हूँ,

तुम मुझे यूँ देवी या दानवी ना कहो।

 

मेरे सीने में भी तो धड़कता है दिल,

तुम मुझे सिर्फ कोई खिलौना ना कहो।

 

मेरा भी अपना अस्तित्व है इस जमीन पर,

तुम इसके होने को ना होना ना कहो ।

 

मैंने सिर पर ओढ़ी है चुनरिया लाज की,

तुम मुझे कोई गुड़िया बेजान ना कहो ।

 

मेरी इन आँखों  से बरसते हैं अंगारे भी,

तुम मेरी आग को श्मशान ना कहो।

 

मेरे भी कुछ अपने ख्वाब हैं जिंदगी में,

तुम मेरे इन ख्वाबों को बेकार ना कहो ।

 

मुझ में  भी चाहत है कुछ कर गुजरने की,

मेरी ख्वाहिशों को निराधार ना कहो ।

 

मैंने बिठाया है तुम्हें अपने सिर माथे पर,

मगर मैं इन चरणों की धूल हूँ,ना कहो।

 

आ जाऊँ जिद पर अपनी तो खाक कर दूँ,

मैं एक मैं महज़ एक नाजुक फूल हूँ, ना कहो।



 

डॉ. अनु मेहता

प्राचार्या

आणंद इंस्टीट्यूट ऑफ पी.जी. स्टडीज इन आर्ट्स ,

आणंद, गुजरात

2 टिप्‍पणियां:

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