अमर
गीत
अनिता
मंडा
अमर
गीतों के पीछे बड़ी सुंदर कहानियाँ छुपी होती हैं। ऐसा ही एक मोहक गीत है ‘मेरी आवाज़ सुनो, प्यार के राज़ सुनो’।
फ़िल्म ‘नौनिहाल’ के इस गीत में नेहरू जी की अंतिम यात्रा के दृश्य हैं।
गीतकार
कैफ़ी आज़मी के शब्दों को गाते हुए रफ़ी साहब की दर्द भरी आवाज़ में जो उतार-चढ़ाव इस
गीत में आये हैं उसके लिए संगीतकार मदन मोहन जी के रागों के चुनाव का भी योगदान
है। मदन मोहन जी ने सिनेमा में दक्षिण भारतीय रागों का बहुत सुंदर उपयोग किया है।
ग़ज़लों में कोमल संगीत देने के लिए उन्होंने कई प्रयोग किये। ‘मेरी आवाज़ सुनो’ को राग ‘जनसम्मोहिनी’ में
रिकॉर्ड करना तय हुआ। लेकिन रिकॉर्डिंग इतनी आसान न थी। रफ़ी साहब गीत में डूबकर
दिल की गहराई से गाते, एक- दो अंतरा पूरा होता कि रो पड़ते।
कभी कोई आर्केस्ट्रा टीम में से भावुक होकर रो पड़ता। गीत के बोल लिखने वाले कैफ़ी
आज़मी की आँखों से अश्रु बहने लग जाते। सामने बैठे फ़िल्म के प्रोड्यूसर सावन कुमार
टाक की आँखें सावन-सावन हो जातीं। दरअसल सब लोग ही नेहरू जी से दिल से जुड़े हुए थे
तो बड़ी मुश्किल से भावनाओं पर काबू रख पाए।
उस
समय पूरा गीत एक ही टेक में पूरा होता था। यह सिस्टम नहीं था कि अलग-अलग भागों में
गाना गवा कर जोड़ लिया जाए। पूरे दिन रीटेक होते रहे। रिकॉर्डिंग की रील भी बहुत
महँगी आती थी और सावन कुमार टाक की यह पहली फ़िल्म थी। कुछ ख़ास बजट उनके पास नहीं
था। बुआ की बेटी से पच्चीस हज़ार उधार लेकर फ़िल्म बना रहे थे। एक इंटरव्यू में सावन
कुमार कहते हैं कि सेंसर बोर्ड ने फ़िल्म को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया।
क्योंकि उसमें नेहरू जी की अंतिम यात्रा के फ़ोटो थे, तो उनसे कहा गया कि इसकी अनुमति उन्हें उनकी पुत्री इंदिरा गाँधी से लेनी
पड़ेगी। सावन जी कहते हैं कि उन्होंने इतनी भीड़ किसी की अंतिम यात्रा में नहीं देखी
थी, वो दृश्य ऐतिहासिक था। तो इस बाबत उन्होंने अपने बंगाली
मित्र हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय से बात की।
वो
उनको इंदिरा जी मिलवाने ले गए। इंदिरा जी उनको दरवाज़े पर इंतज़ार करती मिलीं।
टेपरिकार्डर पर उन्हें गाना सुनवाया गया तो वे भी भावुक हो गईं। इस तरह एक अमर गीत
तैयार हुआ।
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मेरी
आवाज़ सुनो, प्यार के राज़ सुनो
मैंने
एक फूल जो सीने पे सजा रखा था
उसके
परदे में तुम्हें दिल से लगा रखा था
था
जुदा सबसे मेरे इश्क़ का अंदाज़ सुनो
नौनिहाल
आते हैं अरथी को किनारे कर लो
मैं
जहाँ था इन्हें जाना है वहाँ से आगे
आसमाँ
इनका ज़मीं इनकी ज़माना इनका
हैं
कई इनके जहाँ मेरे जहाँ से आगे
इन्हें
कलियाँ ना कहो हैं ये चमनसाज़ सुनो ...
क्यों
सँवारी है ये चन्दन की चिता मेरे लिये
मैं
कोई जिस्म नहीं हूँ कि जलाओगे मुझे
राख
के साथ बिखर जाऊँगा मैं दुनिया में
तुम
जहाँ खाओगे ठोकर वहीं पाओगे मुझे
हर
कदम पर है नए मोड़ का आग़ाज़ सुनो ...
अनिता
मंडा
दिल्ली
गीतकार कैफ़ी आजमी के शब्दों को संगीतकार मदन मोहन ने शास्त्रीय रागों मे ऐसा शान्दार ढंग से पिरोया है, तथा इसके साथ रफी साहेब की आवाज_ _ _रफी साहेब के लिए एक बात प्रसिद्ध थी कि वो गले से नहीं बल्कि दिल से गाया करते थे।
जवाब देंहटाएंNice!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
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