रामधारीसिंह ‘दिनकर’ की सूक्तियाँ
1) धर्म
है धर्म पहुँचना नहीं,
धर्म तो जीवन भर चलने में है,
फैला कर पथ पर स्निग्ध ज्योति
दीपक- समान जलने में है ।
2) प्रेम
पड़ जाता चस्का जब मोहक
प्रेम-सुधा पीने का,
सारा स्वाद बदल जाता है
दुनिया में जीने का ।
3) भारत
गाँधी, बुद्ध, अशोक नाम हैं बड़े दिव्य सपनों के;
भारत स्वयं मनुष्य जाति की बहुत बड़ी
कविता है।
4)
मृत्यु
दो गज झीनी कफनी में
जीवन की साध समेटे,
सो रहे कब्र में कितने
तन से इतिहास लपेटे ?
5) व्यष्टि- समष्टि
आते सारे भाव व्यक्तियों के
समाज से छनकर;
पुन: लौट जाते समष्टि में
ही वे गायन बनकर।
6)
रक्त बुद्धि से अधिक बली है और अधिक
ज्ञानी भी,
क्योंकि बुद्धि सोचती और शोणित अनुभव
करता है ।
(दिनकर
की सूक्तियाँ - ‘रामधारी सिंह दिनकर’
)
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