रविवार, 17 अक्तूबर 2021

कविता

 


 

दशहरा

 गौतम कुमार सागर

अंदर का रावण मर जाए

तो दशहरा

सद्गुण की सीता घर आए

तो दशहरा

 

आसुरी प्रवृत्ति के

विषैले वृक्ष हैं जितने

राम की आँधी में ठह जाएँ

तो दशहरा

 

पौरुष रूप पवनपुत्र की

अग्नि की ज्वाला में

पापों की लंका जल जाए

तो दशहरा

 

शोषक के नाभिकुंड में

जो पीयूष छुपा है

जन-जन को वह मिल जाए

तो दशहरा

 

राम-भरत-सा भाईचारा

हर भाई में उपजे नित

आँगन की दीवारें ढह जाए

तो दशहरा

 

छुआ छूत जात-पाँत

ये सब अंधेरे मन के

शबरी बेर रघुवर खाएँ

तो दशहरा

 

वही चरण है राम चरण

जो उद्धारक अहिल्या का

नारी का सम्मान लौट आए

तो दशहरा

 

जीवन के भव सागर में

राम नाम का लिए सहारा

हर हृदय का पत्थर तर जाए

तो दशहरा 


 


गौतम कुमार सागर

मुख्य प्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा

वड़ोदरा

1 टिप्पणी:

  1. शोषक के नाभिकुंड में

    जो पीयूष छुपा है

    जन-जन को वह मिल जाए

    तो दशहरा

    बहुत खूब गौतम कुमार सागर जी, हार्दिक बधाई!

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