सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

स्मरण

 


आधुनिक भारत के निर्माता : सरदार पटेल

विकास कुमार मिश्रा

बालकों का एक समूह प्रतिदिन अपने गाँव से सात मील दूर पैदल यात्रा कर विद्यालय के लिए जाता था। एक दिन अचानक उन छात्रों को लगा कि उनके बीच में एक छात्र कम है। छानबीन करने पर पता चला कि एक बालक पीछे रह गया है। उसे रास्ते में रुका देख एक छात्र ने आवाज लगाई, ‘तुम वहाँ क्या कर रहे हो?’ उस बालक ने सबको ठहर जाने को कहा और धरती में गड़े एक खूँटे को उखाड़ कर फेंक दिया। उसके बाद वह समूह में आ मिला। उसके एक मित्र ने पूछा, ‘तुमने वह खूँटा क्यों उखाड़ा?’ इस पर उस बालक ने कहा, ‘वह बीच रास्ते में गड़ा हुआ था, चलने में रूकावट डालता था और जो खूँटा रास्ते की रुकावट बने, उस खूँटे को उखाड़ फेंकना चाहिए।’ वह बालक कोई और नहीं, अपितु भारत के एकीकरण के रास्ते में आने वाले तमाम खूँटों को उखाड़ फेंकने वाले “लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल” थे।

  वल्लभभाई झवेरभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद में उनके ननिहाल में हुआ। वह खेड़ा जिले के करमसद में रहने वाले झवेरभाई पटेल की चौथी संतान थे। उनकी माता का नाम लाडबा पटेल था। बचपन से अद्भुत प्रतिभा के धनी वल्लभ भाई पटेल की शादी 16 साल की छोटी उम्र में ही कर दी गई परंतु उन्होंने विवाह को अपने पढ़ाई के रास्ते में नहीं आने दिया। 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी बचपन से ही वकील बनने की आकांक्षा थी परंतु आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण उन्होंने किसी महाविद्यालय में प्रवेश न लेकर, एक परिचित से पुस्तकें उधार लेकर, घर पर पढ़ाई शुरू कर दी और जिला वकील की परीक्षा पास किया। 36 साल की उम्र में सरदार पटेल वकालत पढ़ने के लिए इंग्लैंड गए और वहाँ उन्होंने 36 महीने के वकालत के कोर्स को महज 30 महीने में पूरा कर दिया।

  जब सरदार पटेल की उम्र 33 वर्ष थी, तभी उनकी पत्नी झावेरबा का निधन हो गया। इसके पीछे भी कहानी प्रचलित है कि जब वह जज के सामने जिरह कर रहे थे तभी उन्हें एक टेलीग्राम के माध्यम से पत्नी के निधन की सूचना मिली, जिसे उन्होंने देखकर जेब में रख लिया और उस बात को दरकिनार करते हुए जिरह जारी रखा और अदालत की कार्यवाही के बाद घर जाने का फैसला लिया। वस्तुतः यह घटना भी उनके लौह पुरुष होने का उदाहरण देती है। ऐसा नहीं है कि लौह पुरुष होने का परिचय स्वतंत्रता के बाद के ही कार्यों से मिलता है, अपितु यह उनके व्यक्तित्व की बड़ी विशेषता थी। ऐसा ही एक उदाहरण बचपन में फोड़े को गर्म सलाख से ठीक करने के प्रसंग में भी मिलता है।

  इंग्लैंड से बैरिस्टर की पढ़ाई करने के पश्चात वापस आकर सरदार पटेल अहमदाबाद में वकालत करने लगे। क्योंकि वह खुद एक गरीब परिवार से आते थे, अतः उनके मन में गरीबों के प्रति असीम संवेदना थी। वे गरीबों की सेवा को ही ईश्वर की सेवा मानते थे। सरदार पटेल दबे-कुचले, मजदूरों, गरीबों एवं किसानों की मजबूत आवाज थे। उन्होंने गरीबों के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए एक बार कहा था कि उनकी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक हो और इस देश में कोई भी व्यक्ति अनाज के लिए आँसू बहाता हुआ भूखा न रहे। क्रिमिनल लॉयर के रूप में उन्होंने बहुत प्रसिद्धि पाई क्योंकि वे ऐसे केस भी लड़ते थे जिसे दूसरे वकील नीरस और हारा हुआ मानते थे।

  महात्मा गाँधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का पहला योगदान 1918 में खेड़ा संघर्ष में था। यह आंदोलन फसल चौपट होने के बावजूद अंग्रेज सरकार द्वारा कर में छूट न देने के विरोध में प्रारम्भ किया गया था, जिसमें गाँधी जी के नेतृत्व में सरदार पटेल ने एक सिपाही की भाँति कार्य किया। अंततः सरकार को झुकना पड़ा और किसानों को करों में राहत दी गई। यह सार्वजनिक रूप में सरदार पटेल की पहली सफलता थी। इसके बाद ‘नागपुर फ्लैग सत्याग्रह’ और ‘वलसाड सत्याग्रह’ के माध्यम से सरदार पटेल गुजरात के बहुचर्चित और सम्मानित नेता बन गए। इसीलिए जब 1928 के बारडोली सत्याग्रह में किसानों ने प्रांतीय सरकार द्वारा लगान में बेतहाशा बढ़ोतरी के विरोध में आंदोलन चालू किया तो सर्वसम्मति से सरदार पटेल को इस आंदोलन का मुखिया चुना गया। इस दौरान सरदार पटेल द्वारा दिए गए भाषण को बारडोली की जनता आज भी याद करती है। बारडोली के किसान आज भी कहते हैं – “उनके भाषण तो मुर्दों को भी जिंदा करने वाले थे।” उनकी खासियत यह थी कि वे किसी से नहीं डरते थे और उच्च अधिकारियों को भी कड़वा सच कहने के आदी । उन्होंने बारडोली में किसानों को संबोधित करते हुए कहा था “मैं गुजरातियों से कहता हूँ कि हो सकता है आप शरीर से कमजोर हों, लेकिन दिल से हमें बाघ और सिंह होना चाहिए। आत्मसम्मान के लिए आपमें अपना बलिदान करने का साहस होना चाहिए।” इस आंदोलन की सफलता के बाद बारडोली की महिलाओं ने बल्लभ भाई को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की।

  मार्च 1931 में कराची में किए गए कांग्रेस अधिवेशन में सर्वसम्मति से सरदार पटेल को अध्यक्ष चुना गया, जिसमें सरदार पटेल ने ‘पूर्ण-स्वराज’ के लक्ष्य को दुहराया तथा भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव की वीरता और बलिदान की प्रशंसा की। इसी अधिवेशन में पहली बार मूलभूत अधिकारों की बात की गई तथा राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम से संबंधित प्रस्ताव, जो कि किसानों के हित में था, पारित किया गया।

  सरदार पटेल जन्मजात नेता थे इसीलिए स्वतंत्रता के बाद ज्यादातर प्रांतीय समितियाँ सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाए जाने के पक्ष में थी, फिर भी गांधी की इच्छा के अनुसार उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर रखा और जवाहरलाल नेहरू को समर्थन दिया। सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री बने।

  सरदार पटेल का विराट व्यक्तित्व तब सामने आता है, जब वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने देशी रियासतों के शासकों को आदेश दिया कि वे भारत अथवा पाकिस्तान किसी एक के साथ अपना विलय कर दें। तब सरदार पटेल ने अपने राजनीतिक कूटनीति के माध्यम से 526 रियासतों का विलय कराकर भारत को एकता के सूत्र में बाँधने का ऐतिहासिक कार्य किया। जम्मू कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद राज्य को छोड़कर सरदार पटेल ने सभी रियासतों को भारत में मिला लिया था। कालांतर में सरदार पटेल ने जूनागढ़ को जनमत संग्रह द्वारा, हैदराबाद को ‘ऑपरेशन पोलो’ के द्वारा तथा कश्मीर को समझौते के तहत सैन्य मदद द्वारा भारत में विलय किया। सरदार पटेल भारतीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे। एकीकरण के दौरान उनकी नीतिगत दृढ़ता को देखते हुए महात्मा गाँधी ने उन्हें लौह पुरुष की उपाधि दी थी।

  1941 से ही सरदार पटेल को आँत में तकलीफ होने लगी थी। 1948 तक आते-आते उनका स्वास्थ्य और भी खराब हो गया और वे कुछ ऊँचा सुनने लगे थे और थोड़ी देर में ही थक जाते थे। 15 दिसंबर, 1950 को दिल का दौरा पड़ने के कारण ‘भारतीय संप्रभुता की प्रतिमूर्ति - सरदार पटेल’ इस लौकिक संसार से सदा के लिए विदा हो गए। तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने पटेल की चिता के पास खड़े होकर कहा था, ‘सरदार के शरीर को अग्नि जला तो रही है, लेकिन उनकी प्रसिद्धि को दुनिया की कोई अग्नि नहीं जला सकती।’

मरणोपरांत सन 1991 में उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। उनके नाम पर गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में ‘सरदार पटेल विश्वविद्यालय’ की स्थापना की गई एवं उनकी याद में अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नाम ‘सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र’ रखा गया। सन 2018 में तत्कालीन सरकार ने सरदार पटेल के नाम से गुजरात में ‘एकता की मूर्ति’ (स्टेच्यू ऑफ यूनिटी) स्मारक बनवाया और उनके  जन्मदिन (31अक्टूबर) को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है।

सरदार पटेल द्वारा लिखे गए पत्र, टिप्पणियाँ एवं उनके द्वारा दिए गए व्याख्यान एक बृहद  साहित्य के रूप में उपलब्ध , जिसमें मुख्य हैं - भारत विभाजन, गाँधी, नेहरू, सुभाष, आर्थिक एवं विदेश नीति, मुसलमान और शरणार्थी, कश्मीर और हैदराबाद इत्यादि।

वल्लभभाई पटेल परम दृढ़ नायक एवं साहस की प्रतिमूर्ति थे। संशय, संदेह एवं द्वंद का उनके जीवन में तनिक भी स्थान न था। उनका एक ही लक्ष्य था - भारत की स्वतंत्रता। भले ही कुछ लोगों के कथनानुसार उनका बाह्य व्यक्तित्व रूक्ष और रौद्रपूर्ण था परंतु उनकी वेशभूषा साधारण किसान की थी और उनकी आँखों में राष्ट्र के भविष्य का चित्र झलकता था। उन्हें राष्ट्रीय अस्मिता और धरोहर का पूर्ण ध्यान था और वे राष्ट्र के ऐतिहासिक चेतना से ओतप्रोत थे इसीलिए उन्होंने सोमनाथ के ध्वस्त मंदिर का उद्धार करवाया। उनके व्यक्तित्व का उदाहरण हमेशा इस राष्ट्र के लोगों को साहस, आत्मसम्मान, अध्यवसाय, त्याग और देशभक्ति का पाठ सिखाता रहेगा।



विकास कुमार मिश्रा

शोध छात्र, सरदार पटेल विश्वविद्यालय

वल्लभ विद्यानगर (गुजरात)

 

 

3 टिप्‍पणियां:

  1. लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रभासित व्यक्तित्व को शब्दों के माध्यम से साकार करता सुन्दर लेख, हार्दिक बधाई।

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  2. बहुत सुन्दर व प्रेरक लेख... हार्दिक बधाई के साथ-साथ शुभकामनाएँ भी विकास जी!

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