सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

आलेख

 


महात्मा गाँधी और हिन्दी कविता

डॉ. हसमुख परमार

          देश के लिए अपना पूरा जीवन क़ुरबान करने वाले, ताउम्र देशवासियों के उद्धार व कल्याण हेतु तप और सेवा करने वाले महात्मा गाँधी के जीवन, कार्य एवं चिंतन के बारे में हम चाहे जितना कहें, जितना लिखें कम ही कहा जाएगा। दिनकर जी के शब्दों में- ‘‘महात्मा गाँधी ने भारतीय संस्कृति पर इतनी अधिक दिशाओं में प्रभाव डाला है कि उनके समस्त अवदान का सम्यक मूल्य निर्धारित करना अभी किसी के लिए संभव नहीं दिखता। खान-पान, रहन-सहन, भाव-विचार, भाषा और शैली, परिधान, दर्शन और सामाजिक व्यवहार एवं धर्म-कर्म-राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीय भारत में जो भी आचार और विचार प्रचलित है, उनमें से प्रत्येक पर कहीं न कहीं गाँधी जी की छाप है।’’ (संस्कृति के चार अध्याय, पृ. 617) अंग्रेज सत्ता से भारत को आज़ाद कराने में महात्मा की महती भूमिका रही और यह भगीरथ कार्य ही इनकी जगविख्यात पहचान व प्रसिद्धि का मूलाधार रहा है, साथ ही इनके व्यक्तित्व ने, इनके व्यावहारिक जीवन ने, इनके चिन्तन ने, विविध क्षेत्रों में इनके योगदान ने भारतीय समाज में इन्हें अविस्मरणीय बना दिया। समाज, संस्कृति, साहित्य, धर्म, भाषा, राजनीति, आर्थिक व्यवस्था, शिक्षा, उद्योग-रोजगार, विज्ञान, नैतिकता प्रभृति विषय-क्षेत्रों से संबंधी गाँधी जी का चिंतन बहुत ही गंभीर, स्तरीय एवं समाजोपयोगी रहा है। इस तरह महात्मा गाँधी के विचार के अनेक पक्ष हैं। आज गाँधी जी के जन्म के 150 वर्ष बाद भी इनके विचारों की प्रासंगिकता बराबर बनी रही है और हमारे विचार से गाँधी जी के विचारों की प्रासंगिकता तब तक अक्षुण्ण रहेगी जब तक इनके सपनों का भारत वास्तविक भारत न बन जाये।

          साहित्य के क्षेत्र में गाँधीजी को तीन संदर्भों में देखा जा सकता है। एक - लेखक - विचारक के रूप में - इनकी प्रसिद्ध आत्मकथा तथा इनके द्वारा लिखे विविध लेख साथ ही भाषा तथा साहित्य संबंधी इनके विचार इत्यादि, कम मात्रा में ही सही पर साहित्य जगत को इनका यह अवदान विशेष उल्लेखनीय कहा जा सकता है। दो-अपने विचार-चिंतन से साहित्य को प्रभावित करने वाले गाँधी। इस प्रकार का साहित्य परिमाण और गुणवत्ता उभय दृष्टियों से महत्वपूर्ण रहा है। तीन - गाँधी का जीवन, व्यक्तित्व, कार्य आदि की साहित्य में मौजूदगी - महात्मा गाँधी केन्द्रित साहित्य। सिर्फ हिन्दी ही नहीं अपितु लगभग सभी भारतीय भाषाओं के साहित्य में महात्मा गाँधी की मौजूदगी देखी जा सकती है। आधुनिक हिन्दी साहित्य में महात्मा गाँधी की उपिस्थिति - एक बृहद् शोध का विषय है। प्रस्तुत आलेख में कतिपय ऐसी कविताओं पर बात की गई है जिनके केन्द्र में गाँधी जी का व्यक्तित्व रहा है।

          हिन्दी में गाँधी जी को लेकर विभिन्न काव्यरूपों से सम्बन्धित असंख्य कविताएँ लिखी गई है। ये कविताएँ अनेकों अध्येताओं के अध्ययन का विषय रही है। ऐसे अनेक संकलन भी है जिनमें इस प्रकार की अनेकों कविताएँ संकलित है। अपनी ‘बृहत् साहित्यिक निबंध’ पुस्तक में डॉ. यश गुलाटी ‘गाँधीवाद और आधुनिक हिन्दी साहित्य’ शीर्षक प्रकरण में गाँधीजी पर लिखे गये लगभग एक दर्जन प्रबंध काव्यों की सूची देते हुए लिखते हैं - ‘‘इन प्रबंध काव्यों में गाँधीजी धीरोदात्त नायक के रूप में प्रतिष्ठित है। कहीं उन्हें देवत्व प्राप्त हुआ है और कहीं मनुष्य का। गाँधीजी के व्यक्तित्व - कृतित्व और उनके विविध पक्षों को लेकर हिन्दी में सहस्त्राधिक कविताएँ लिखी गयी है। जो कि मुक्तक अथवा स्फुट के अंतर्गत आती है। इनमें गाँधीजी की प्रशस्तियों, गुण-गान तथा महत्व निरूपण का उद्घोष है। सोहनलाल द्विवेदी ने ‘गाँधी अभिनंदन ग्रंथ’ में गाँधी पर लिखित समस्त भारतीय भाषाओं की कविताओं का श्रेष्ठ एवं अप्रतिम संकलन किया है।’’ (बृहत् साहित्यिक निबंध, पृ. 684-685) ‘गाँधी काव्यायन’ डॉ. अम्बाशंकर नागर एवं डॉ. शशि पंजाबी द्वारा संपादित गाँधी-केन्द्रित कविताओं का संग्रह गूजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद से सन् 2007 में प्रकाशित हुआ। प्रस्तुत संग्रह में इक्यावन कवियों के मुक्तक काव्य तथा बाहर कवियों के प्रबंधकाव्यों के अंश संग्रहीत है। संग्रह की भूमिका में लिखा है - ‘‘रसज्ञ पाठकों को इस काव्यग्रंथ में देखने को मिलेगा कि इसमें सिर्फ गाँधी का यशोगान ही नहीं, किन्तु उनके भव्य जीवन और कार्य में कहीं किसी रूप में वैशिष्ट् था जो कवि को झकझोरता है और उसे काव्य में अवतरित करने के लिए उसे बाध्य करता है।’’ (गाँधी काव्यायन, सं. डॉ. अम्बाशंकर नागर, डॉ. शशि बंजाबी, भूमिका से - पृ. 06)

          आधुनिक हिन्दी कविता के इतिहास में पिछले लगभग सौ वर्षों से हिन्दी काव्य में महात्मा गाँधी का दर्शन, इनके कार्य व व्यक्तित्व के विविध पक्ष अंकित हैं। गाँधीयुग का स्वागत करते हुए महात्मा की गरिमा, चिंतन व प्रभाव को बताते हुए सुमित्रानंदन पंत लिखते हैं -

देख रहा हूँ, शुभ्र चाँदनी का - सा निर्झर

गाँधी-युग अवतरित हो रहा जनधरणी पर ।

विगत युगों के तोरण, गुम्बद, मीनारों पर,

नव - प्रकाश शोभा - रेखाओं का जादूभर ।

× × × ×

जन-जन में जग, दीपशिखा के पगधर नूतन,

भावी के नव-स्वप्न धरा पर करते विचरण ।

(बृहत् साहित्यिक निबंध, पृ. 696)

          बापू के प्रति, बापू, गाँधीयुग, श्रद्धांजलि, खादी के फूल, वंदना प्रभृति पंतजी की प्रस्तुत विषय से संबंद्ध रचनाएँ हैं। गाँधी जैसे विराट व गरिमामय व्यक्तित्व का अभिवादन पंतजी के शब्दों में -

 

 

नव संस्कृति के दूत ! देवताओं का करने कार्य

मानव आत्मा को उबारने आये तुम अनिवार्य ।’’

(रश्मिबन्ध, सुमित्रानंदन पंत, पृ. 72)

          स्वतंत्रता आंदोलन युग के कवि और महात्मा गाँधी के प्रति अटूट आस्था रखनेवाले सोहनलाल द्विवेदी ने युग पुरुष गाँधी का स्तवन करते हुए कई भावपूर्ण कविताएँ लिखीं। इनकी ‘बापू’ शीर्षक कविता से कुछ पंक्तियाँ देखिए -

चल पडे जिधर दो डग मग में

चल पड़े कोटि पग उसी ओर

पड गई जिधर भी एक दृष्टि

पड़ गए कोटि दृग उसी ओर

× × × ×

युग परिवर्तक ! युग संस्थापक !

युग संचालक, हे युगाधार,

युग निर्माता, युग मूर्ति तुम्हें

युग युग तक युग का नमस्कार ।

(आजादी की अग्निशिखाएँ, संयोजक - डॉ. शिवकुमार मिश्र, पृ. 73-74)

          हरिवंश राय बच्चन के काव्यसंसार में हालावादी प्रवृत्ति के अतिरिक्त अन्य विषयों का भी स्पर्श है। ‘दीप का निर्वाण’ बच्चन जी की गाँधी विषयक कविताओँ में विशेष महत्व रखती है।

हो गया क्या देश के सबसे सुनहले दीप का निर्वाण !

वह जगा क्या, जगमगाया देश का तम से घिरा प्रसादः

वह जगा क्या, मानवों का स्वर्ग ने

उठकर किया आह्वान ।

हो गया क्या देश के

सबसे सुनहले दीप का

निर्वाण ।’’ 

(गाँधी काव्यायन, पृ. 40)

          प्रेम, प्रकृति और प्रगतिवादी संवेदना के कवि बाबा नागार्जुन की भी गाँधी जी के प्रति अपार श्रद्धा रही है। इस संदर्भ में इनकी ‘तर्पण’, ‘तीनों बंदर बापू के’ जैसी कविताएँ विशेष उल्लेखनीय है। ‘‘नागार्जुन ने गाँधी पर कविता लिखते हुए पाया कि गाँधी के यहाँ न दास्यभाव है, न चढावा है, न ही आडंबर। उनके चरित्र की जो खूबी है उसमें अहिंसा, मानवता, स्वराज से अकाट्य प्रेम और सामूहिक संघर्ष विशेष स्थान रखते हैं। इसी वजह से गाँधी के चरित्र के प्रति कवि का इतना सम्मोहन है कि वह खुद अपनी विचारधारा का दायरा पार कर जाता है। वह गाँधी को लोकहित और लोकरक्षा का अग्रणी मानता है, हालांकि यहाँ विचारधारा का सवाल नहीं है।’’ (नागार्जुन के गाँधी - सुमितकुमार चौधरी - http://vagarth.bharatiyabhashaparishad.org)

          रामधारीसिंह दिनकर की लेखनी भी इस विषय क्षेत्र में खूब चली है -

·       तू सहज शान्ति का दूत, मनुज के

सहज प्रेम का अधिकारी,

दृग में उँडेल कर सहज शील

देखती तुझे दुनिया सारी ।

·       गाँधी अगर जीतकर निकले, जल धारा बरसेगी,

हारे, तो तूफान इसी ऊमस से फूट पडेगा।

केदारनाथ अग्रवाल -

दुःख से दूर पहुँचकर गाँधी ।

सुख से मौन खड़े हो

मरते खपते इन्सानों के

इस भारत में तुम्हीं बडे हो ।

जीकर जीवन को अब जीना

नहीं सुलभ है हमको

मरकर जीवन को फिर जीना

सहज सुलभ है तुमको ।

          गाँधी संबंधी कई कविताओं में व्यंग्य की पैनी धार भी दिखाई देती है। आज़ादी के बाद के ऐसे नेताओं पर हमारे कवि व्यंग्य करते हैं जो गाँधी के नाम पर अपना स्वार्थ तो सिद्ध कर लेते हैं, परंतु गाँधीजी के आदर्शों से इनका दूर दूर तक का संबंध ही नहीं रहा ।

बेच बेच कर गाँधी जी का नाम

बटोरे वोट

बैंक बैलेन्स बढ़ाओ

राजघाट पर बापू की वेदी के आगे अश्रु बहाओ ।

          स्वतंत्रता संग्राम के समय चरखा और खादी का भी विशेष महत्व रहा। यह चरखा और खादी गाँधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन संबंधी कार्य का एक अभिन्न अंग रहा। 1921 के आसपास गाँधी जी ने चरखा और खादी को अपनी पार्टी में शामिल किया था, इस तरह संयोग से मौजूदा वर्ष खादी और चरखा का भी शताब्दी वर्ष है।   स्वतंत्रता आंदोलन के दौर के काव्य में यह चरखा भी केन्द्र में रहा और गाँधी संबंधी कविताओं की तरह चरखा केन्द्रित रचनाएँ भी जनता की स्मृतियों में अमर हो गई -

गुलामी से हमको छुडाएगा चरखा

लुटेरों की हस्ती मिटाएगा चरखा

पड़े सिर धुनेंगे विलायत के ताजिर

इधर शान अपनी बढ़ाएगा चरखा

(आज़ादी की अग्निशिखाएँ, पृ. 213)

          महात्मा गाँधी की मौजूदगी शिष्टसाहित्य - शिष्टकविता में ही नहीं बल्कि लोकसाहित्य - लोकगीतों में भी बहुत पहले से बराबर बनी रही है। अपने देश की सेवा, देश की स्वतंत्रता ही जिनके जीवन का एक मात्र लक्ष्य रहा, जिसे पूरा करने के लिए समस्त जीवन समर्पित किया, देश के लिए ही अपने प्राणों की आहूति देने वाले इस महात्मा की उज्ज्वल छवि निम्न लोकगीत - अंशों में देखिए -

·       गाँधी बाबा किहै स्वर्ग की सफरिया - नझरिया लागी भारत से रही ।

बलि वेदि पर न्यौछावर किहै जीवन सारा हो,

हिन्द खातिर किहै बिरटिस से झगरिया नजरिया

कसे लंगोटी लिहे तिरंगा घर घर अलख जगाए ।

·       अवतार महात्मा गाँधी है, भारत कै भार उतारै काँ,

सिरी राम मारे रावनको, सिरी किसन मारे कंस कों

गाँधी जी जग माँ परगट भये, अन्यायी राजा हटावै काँ अवतार ।

          गाँधी जी की निस्वार्थ भाव से की गई देश सेवा व महिमा के वर्णन के लिए कुछ प्रदेश के लोककवियों ने हनुमान चालीसा की तरह गांधी चालीसा का भी निर्माण किया है। राजस्थान के जैसलमेर प्रदेश में प्रचलित उक्त विषय संबंधी कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत है -

भारत देश गुलाम भयौ / गयो गौरव को डूब सितारो ।

वीर अनेक शहीद भये / जब रोपी है दार लंगोटिया वारो ।

देश स्वतंत्र कराय दियो / जाको सत्य अहिंसा को मंत्र करारो ।

को नहीं जानत है जग में / श्री गाँधी है मोहन तिहारो ।

          स्वतंत्रता संग्राम में आर्थिक स्वावलम्बन, देशप्रेम और स्वदेशी मनोवृत्ति का प्रतीक रहे चरखा संबंधी एक भोजपुरी लोकगीत देखिए -

अब हम कातबि - चरखवा, पिया मति जाहु विदेसवा ।

हम कातबि - चरखा सजन तुहु जाव

मिलि है एही से सुरजवा, पिया मति ...

होई है सुराज तबैं सुख मिलि है

देसवा के लाज रहे चरखवा से

गांधी के मानो सनेसवा,

कहवारे गांधी जी कि चरखा चलावहु

एही से हटि हैं कलेसवा, पिया मति......

  


डॉ. हसमुख परमार

एसोसिएट प्रोफ़ेसर

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर

जिला- आणंद (गुजरात) – 388120

9 टिप्‍पणियां:

  1. 💐💐🙏गांधीजी के आधार पर अति सुंदर काव्य रचनाएं 💐💐🙏

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  4. बहुत खूब लिखा आद. डॉ. हसमुख परमार जी!

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  5. सर,आपने बहुत ही सटीक और सुंदर प्रस्तुति की हैं । धन्यवाद सर🙏

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