शनिवार, 11 सितंबर 2021

विचार स्तवक

 



1.

इदमन्धं तमः कृत्यं जायते भुवनत्रयम ।

यदि शब्दाह्यं ज्योतिरासंसारं न दीप्यते ।।

ये तीनों लोक घोर तम में मग्न हो जाते यदि सृजन के आरम्भ में शब्द की ज्योति न जलती।

2.

भविष्य में हिन्दी आने वाली नवीन चेतना की सांस्कृतिक भाषा होगी, ऐसा मेरा विश्वास है। अंग्रेजी में बौद्धिक सक्रियता और बौद्धिक आलोचना के तत्त्व हैं, पर सांस्कृतिक अर्थ में वह अंतर्राष्ट्रीय नहीं है। हिन्दी में जो ध्वनि-संगीत है, जो शांति की सूक्ष्म झंकार परिव्याप्त है, जो पवित्रता है, वे बेजोड़ है। भावी मनुष्यत्व के तत्त्वों से हिन्दी परिपूर्ण होगी। भविष्य में संस्कृति का जो नवीन संचारण होगा, उसे हिन्दी अपने में समाहित करेगी। आने वाले युग की संस्कृति में जिन गुणों का समावेश होगा, वे गंभीर, व्यापक और उच्च स्तर के होंगे। नवीन संस्कृति को व्यक्त करने के लिए भाषा झरने की तरह फूट निकलेगी, भाव उमड़-उमड़ कर आएँगे। हिन्दी भाषा का सौन्दर्य ही कुछ विलक्षण है।

मुझे विश्वास है कि एक दिन आएगा जब हिन्दी विश्व की सांस्कृतिक भाषा होगी।

 सुमित्रानंदन  पंत

 

3.

शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूँसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें।

      डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

4.

लब्धास्पदोsस्मीति विवादभीरोस्तिक्षमाणस्य परेण निन्दाम्।

यस्यागम: केवल जीविकायै तं ज्ञानपण्यं वणिजं वदन्ति ॥

मालविकाग्निमित्रम्’ से (कालिदास)

अर्थात् जो लोग अध्यापक पद प्राप्त कर लेने के उपरान्त शास्त्रार्थ या वाद-विवाद या बहसों से कतराते हैं, तथा दूसरों द्वारा की गयी निन्दा को सहन कर लेते हैं और केवल अपना तथा परिवार का पेट पालने के लिए अध्यापन कार्य करते हैं, ऐसे लोग विद्वान नहीं अपितु ज्ञान बेचने वाले बनिये होते हैं।

5.

पात्रविशेषे न्यस्तम् गुणान्तरम् व्रजति शिल्पमाधातुः।

जलमिव समुद्रशुक्तौ मुक्ताफलताम् पयोदस्य।।

मालविकाग्निमित्रम्’ से (कालिदास)

अर्थात् सिखाने वाले की कला उत्तम शिष्य के पास पहुँच कर उसी प्रकार विकसित हो जाती है, जैसे बादल का जल समुद्र की सीपों में पहुँच कर मोती बन उठता है।

6.

गांधीजी का जन्तर

मैं तुम्हें एक जन्तर देता हूँ। जब भी तुम्हें सन्देह हो या तुम्हारा

अहम् तुम पर हावी होने लगे, तो यह कसौटी आजमाओः

 

जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो,

उसकी शकल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम

उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए

कितना उपयोगी होगा। क्या उससे, उसे कुछ लाभ पहुँचेगा ?

क्या उससे, वह अपने ही जीवन और भाग्य पर कुछ काबू रख

सकेगा ? यानी क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज्य मिल

सकेगा, जिनके पेट भूखे हैं और आत्मा अतृप्त है ?

 

तब तुम देखोगे कि तुम्हार सन्देह मिट रहा है और अहम् समाप्त होता जा रहा है।

 

7.

गांधी जी के सपनों का भारत....

मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूँगा, जिसमें गरीब-से-गरीब लोग भी यह महसूस करेंगे कि यह उनका देश है- जिसके निर्माण में उनकी आवाज का महत्व है। मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूँगा, जिसमें ऊँचे और नीचे वर्गों का भेद नहीं होगा और जिसमें विविध सम्प्रदायों में पूरा मेलजोल होगा। ऐसे भारत में अस्पृश्यता के या शराब और दूसरी नशीली चीजों के अभिशाप के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। उसमें स्त्रियों को वही अधिकार होंगे जो पुरुषों को होंगे। चूँकि शेष सारी दुनिया के साथ हमारा सम्बन्ध शान्ति का होगा, यानी न तो हम किसी का शोषण करेंगे और न किसी के द्वारा अपना शोषण होने देंगे, इसलिए हमारी सेना छोटी-से-छोटी होगी। ऐसे सब हितों का, जिनका करोड़ों मूक लोगों के हितों से कोई विरोध नहीं है, पूरा सम्मान किया जायेगा, फिर वे हित देशी हों या विदेशी। अपने लिए तो मैं यह भी कह सकता हूँ कि मैं देशी और विदेशी के फर्क से नफरत करता हूँ। यह है मेरे सपनों का भारत।.... इससे भिन्न किसी चीज से मुझे संतोष नहीं होगा।

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