शनिवार, 11 सितंबर 2021

शब्द संज्ञान



विशिष्ट अर्थों में प्रयुक्त संख्यावाचक शब्द

सोनल परमार

हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त संख्यावाचक या गणनावाचक शब्दों के अंतर्गत गूढ़ व विशिष्ट अर्थ का बोध कराने वाले कतिपय शब्दों का विशेष महत्व रहा है। इस प्रकार के संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द विशेषतः भारतीय संस्कृति के विविध संदर्भों से जुड़े हुए होते हैं, अतः सांस्कृतिक परिवेश से परिचित होने पर ही इस प्रकार के शब्दों के अर्थ की प्रतीति होती है। जैसे हिन्दी में प्रयुक्त सप्तऋषि, चारधाम, नवधाभक्ति। इन शब्दों से ऋषि, धाम, भक्ति के प्रकार की संख्या का क्रमशः सात, चार, नौ का बोध तो तुरंत ही हो जाता है पर ये सात ऋषि, चारधाम, नौ प्रकार की भक्ति के बोध के लिए भारतीय संस्कृति व अन्य परिवेश से परिचित होना अपेक्षित है। यहाँ हिन्दी में प्रयुक्त कुछ इसी तरह के गूढ़ अर्थ वाले संख्यावाचक शब्द दिये गए है।

·       तीन ऋण – पितृऋण, ऋषिऋण, देवऋण

·       तीन दिव्य पदार्थ – ब्रह्म, जीव, प्रकृति

·       चार उपवेद – आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद, स्थापत्यवेद

·       चतुरंगिणी सेना – हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल (सेना)

·       पंचकोश – आनन्दमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय, अन्नमय (वेदांत के अनुसार आत्मा के आवरण रूप पाँच कोश)

·       पञ्च कन्या – अहल्या, द्रौपदी, तारा, मंदोदरी, सावित्री

·       पंचनद – पाँच नदियों का समूह (सतलुज, व्यास, रावी, चनाब और झेलम पंजाब प्रदेश की पंचनद कही जाती हैं)

·       पाँच माताएँ – जननी, आचार्य पत्नी, सास, राजपत्नी, जन्मभूमि

·       विद्यार्थी के पाँच लक्षण – काकचेष्टा, बक ध्यान, स्वान निद्रा, अल्पाहारी, गृहत्यागी

·       सप्तऋषि – कश्यप, विश्वमित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ

·       अष्टसिद्धि – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व

·       अष्टछाप – गोसाई, विट्ठलनाथ जी द्वारा स्थापित आठ कवियों का दल

सूरदास, कुम्भनदास, परमानन्द दास, माध्वादास, (वल्लभाचार्य के शिष्य)

गोविन्दस्वामी, छीतस्वामी, नन्ददास, चतुर्भुजदास (विट्ठलनाथ के शिष्य)

·       नवगुण – शुचि, तपस्वी, संतुष्ट, सत्यवक्ता, शीलवान, द्दढ़प्रतिज्ञ, धर्मात्मा, दयालु, दाता

·       नवधाभक्ति – श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद-सेवन, अर्चन, वन्दन, दास्य, सख्य, आत्मनिवेदन

·       नवनिधि – पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, नन्द, नील, खर्ब

·       दस धर्म लक्षण – क्षमा, धृति, दम, अस्तेय, शौच, इंद्रिय-निग्रह, धी, विद्या, सत्य, अक्रोध

·       चौदह लोक – तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भुवनलोक, स्वर्गलोक, महालोक, जनलोक, तपलोक, सत्यलोक, भूलोक

पर्याय शब्दों में सूक्ष्मान्तर

         पर्याय शब्दों में एकार्थी (पूर्णपर्याय) शब्द तो पूर्णतः एक अर्थ रखते हैं पर समानार्थी वे पर्याय है जिनमें अर्थ मात्र समान होते हैं, मिलते-जुलते होते हैं। पर्याय कहे जाने वाले ज्यादातर शब्द इसी श्रेणी (समानार्थी) के अंतर्गत आते हैं। इस प्रकार के अनेकों पर्याय शब्दों के अर्थ में सूक्ष्म अन्तर रहता है, एक दूसरे के स्थान पर प्रयुक्त नहीं हो सकते।

          इस तरह के अपूर्ण पर्यायवाची स्थूल रूप में समानार्थी पर्यायवाची ही कहे जाते है किन्तु उनका प्रयोग विशुद्ध पर्याय या पूर्ण पर्याय के रूप में करना ठीक नहीं होगा। इस तरह के कई शब्द जो समानार्थी होते हुए भी इन में अर्थ को लेकर सूक्ष्म अंतर रहता है अतः इनके प्रयोग में ज्यादा ध्यान रखना पडता है। यहाँ कुछ इसी तरह के पर्याय शब्दों का अर्थ भेद स्पष्ट किया जा रहा है।

·       अनुमति, आज्ञा, आदेश

अनुमति – किसी कार्य के लिए सहमति

आज्ञा – बडे व्यक्ति द्वरा कुछ करने के लिए कहा जाना

आदेश – वैधानिक अधिकार से कुछ करने के लिए कहना।

·       दुःख, शोक, खेद, विषाद

दुःख – मन की व्यग्रता का नाम दुःख है। प्रतिकूल और हानिकारक बातों की मानसिक अनुभूति को दुःख कहते हैं। इसका प्रयोग इस वर्ग के कितने ही शब्दों के स्थान पर होता हैं।

शोक – चित्त की व्याकुलता शोक है।

खेद – किसी भूल या काम में किसी प्रकार के व्यवधान के परिणाम स्वरूप होने वाली दुःखद अनुभूति ही खेद कहलाती हैं।

विषाद – दुःख की विशेषता में कर्तव्य-ज्ञान का नष्ट होना विषाद है।

·       प्रेम, स्नेह, प्रणय

प्रेम – प्रणय, स्नेह, वात्सल्य आदि सभी के लिए प्रयुक्त सामान्य शब्द

स्नेह – छोटे के प्रति बड़े का प्रेम।

प्रणय – पति-पत्नी का प्रेम।

·       अज्ञात, अज्ञेय, अनभिज्ञ, अगोचर

अज्ञात – जिसके बारे में किसी प्रकार की जानकारी या ज्ञान न हो

अज्ञेय – जो किसी भी प्रकार जाना न जा सके। जिसका होना निश्चित है किन्तु वह क्या है, कैसा है आदि का पूर्ण रूप से ज्ञान न हो। केवल उसके विषय में अनुमान लगाया जा सके।

अनभिज्ञ – न जानने वाले या अनजान होने के अर्थ में यह शब्द प्रयुक्त होता  है।

अगोचर – जो इंद्रियों द्वारा ग्रहण न किया जा सके पर जो ज्ञान या बुद्धि से जाना जा सकता है।

·       स्मृति, स्मरण

स्मृति – पहले से मन पर अंकित बातों का चित्र पुनः सामने लानेवाली शक्ति को स्मृति कहते हैं।

स्मरण – किसी बीती हुई बात या व्यक्ति का पुनः ध्यान आना

·       अनुरूप, अनुकूल

अनुरूप – अनुरूप से ‘योग्यता’ का बोध होता है

अनुकूल – अनुकूल से ‘उपादेयता’ और उपयोगिता का बोध होता है।

·       मन्त्रणा, परामर्श

मन्त्रणा – अधिकारी व्यक्ति से जो गुप्त बातचीत की जाती है, उसे मन्त्रणा कहते है।

परामर्श – अपने हितेच्छुओं से किसी विषय पर जो सलाह ली जाती है उसे  परामर्श कहते है।

·       सहयोग, सहायता

सहयोग – दोनों पक्ष सक्रिय होते हैं।

सहायता – एक पक्ष सक्रिय होता है।

·       अनुकरण, अनुसरण

अनुकरण – अनुकरण में पीछा करने का भाव होता है।

अनुसरण – अनुसरण में पीछे चलने का भाव होता है।

          अनुकरण में किसी की नकल करने की बात होती है जबकि अनुसरण में किसी की शैली-सिद्धांत को अपनाने का भाव होता है।

सहायक पुस्तकें

(1)      मानक हिन्दी व्याकरण – डॉ. पृथ्वीनाथ पाण्डेय

(2)      हिन्दी व्याकरण और रचना – सं. अनिरुद्ध राय

(3)      हिन्दी – शिवानंद नौटियाल

 


 

सोनल परमार

वल्लभ विद्यानगर

जि. - आणंद (गुजरात)

 

 


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