शनिवार, 21 अगस्त 2021

निबंध

 



आज़ादी का जश्न

ज्योत्स्ना प्रदीप

हमारा भारत कभी सोने की चिड़ियाकहलाता था। उदार हृदय भारत की धमनियों में  वैश्विक कुटुंब की अवधारणा की गंगा झरती थी। इसी उदारता का लाभ अंग्रेज़ों द्वारा उठाया गया और हमारा देश अंग्रेज़ों का गुलाम हो गया था।

हमारा भारत जो एक समय सबसे समृद्ध व विकसित राष्ट्र था, दुर्बल होता चला गया। दो सौ वर्षों की गुलामी ने बहुत से परिवर्तन किए जिन्होंने समाज की सोच, संस्कार, रीति रिवाज़,  व्यवस्थाएँ सब कुछ बदल दीं।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है –  

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं

अर्थात् पराधीन व्यक्ति कभी भी सुख का अनुभव नहीं कर सकता है।

जब पशु-पक्षी ही पराधीनता में छटपटाने लगते हैं तो मनुष्य का परतंत्र रहना बिल्कुल असंभव है। यही हमारे देश के साथ भी हुआ।

हर भारतवासी के मन में दुख व क्षोभ था, हृदय में विद्रोह की  प्रचंड ज्वाला भड़क रही थी। अंग्रेज़ों के अत्याचार की कोई सीमा न थी, देश के अनेक वीरों ने इस दासता के विरोध में

प्राणों की आहुति दी। सीने पर गोलियाँ खाईं। मंगल पांडे, झाँसी की रानी, सुभाष चन्द्र बोस,

लाल-बाल-पाल, सुखदेव, भगतसिंह, राजगुरु, अशफ़ाक़ उल्ला खान, रामप्रसाद बिस्मिल, मदनलाल ढींगरा के अद्भुत देशप्रेम को हम कभी भुला नहीं सकते।

इन वीरों ने अंग्रेज़ों को भारत छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया। प्राणों की आहुति दी, सीने पर गोलियाँ खाईं, कुछ फाँसी के तख्ते पर हँसते-हँसते झूल गए।

सरदार वल्लभभाई पटेल, गाँधीजी, नेहरूजी ने सत्य, अहिंसा और बिना हथियारों की लड़ाई लड़ी।

इस तरह 15 अगस्त 1947 का दिन हमारे लिए स्वर्णिम दिन बना। भारत देश स्वतन्त्र हो गया।

प्रत्येक वर्ष 15 अगस्‍त को देश भर में बड़े ही हर्ष और उल्‍लास के साथ आज़ादी का जश्न मनाया जाता है।

भारत 200 वर्ष से अधिक समय तक ब्रिटिश उपनिवेशवाद की बेड़ियों में जकड़ा हुआ रहा, मुक्त्त होकर एक नए युग की ओर अग्रसर होना कितना सुखद रहा होगा!

          15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, दिल्ली में लाल किले पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। हर वर्ष इस परम्परा का बड़े भव्य तरीके से अनुसरण होता रहा है।

आज़ादी के जश्न का हर रूप बड़ा निराला होता है। हमारी राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री प्रत्येक वर्ष लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और देश को संबोधित करते हैं।

इस दिन सभी शहीदों को श्रद्धां‍जलि दी जाती है। प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं।

लाल किले पर भारतीय सेनाओं के तीनों प्रमुख उपस्थित होकर झंडे को सलामी देते हैं। यह दृश्य रोम-रोम में उत्साह का अनुपम प्रवाह कर देता है।

भारत के सभी विद्यालयों, सरकारी कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। राष्ट्रगान के स्वर दश-दिशाओं गूँजते हैं। कण-कण आह्लादित हो उठता है। मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं। बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है। हम भारतीय इस दिन अपने वस्त्रों, घरों और वाहनों पर राष्ट्रीय ध्वज सुशोभित करते हैं। लोग परिवार व दोस्तों के साथ देशभक्ति  की फिल्में देखते हैं, गीत सुनते हैं।

न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया पर मानों आज़ादी के पर्व की खुशियों की सुन्दर, अविरल निर्झरिणी बहती रहती है।

वर्तमान कोरोना काल में भी, सभी सावधानियों के साथ देश के 75 वें स्वतंत्रता दिवस को बड़ी भव्यता से अमृत महोत्सव’ के रूप में मनाया गया। राजधानी दिल्ली से लेकर देश की सीमाओं पर तैनात सेना के जवानों ने तिरंगा फहराकर आजादी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देशवासी जश्न-ए-आजादी के पर्व के रंग में रंगे थे। लाल किले पर प्रधानमंत्री ने तिरंगा फहराया, वहीं इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (ITBP) के जवानों ने लद्दाख में 14 हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित पैंगोंग त्सो झील के किनारे तिरंगा फहराकर आज़ादी का जश्न मनाया। कितना शुभ होता है ये प्यारा दिन!

हम आज़ाद हैं और आज़ादी का जश्न भी मनाते हैं। मगर  पराधीनता की उन दो सदियों की छाप आज भी हमारी संस्कृति, भाषा और विचारों में कहीं  न कहीं देखने को मिलती हैं, इससे हमें मुक्त होना होगा।

हमारी हृदय की धमनियों में बहते लहू की हर बूँद उन शहीदों की ऋणी हैं जिन्होंने भारत माँ के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। इस ऋण से हम तभी उऋण हो सकते हैं जब हम अपने देश का नाम विश्व में आलोकित करें। हर भारतवासी का नैतिक कर्तव्य है कि वो देश में फ़ैल रहे भ्रष्टाचार को देश से समाप्त करने में सहयोग करे। एक आज़ादी का जश्न दिल में भी मनाना चाहिए।

इस स्वर्णिम दिवस की उजास हर भारतीय के हृदय में आलोक पर्व मनाए। इस आलोक में तम की कोई गुंजाइश ही न रहे। देश में बढ़ता आतंकवाद, अलगाववाद और आन्तरिक कलह को ज़रा भी पनपने न दें।  सही मायनों में यही आज़ादी का असली जश्न होगा और शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी!

 


ज्योत्स्ना प्रदीप

जालंधर

 

2 टिप्‍पणियां:

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