रविवार, 25 जुलाई 2021

विचार स्तवक

 

 


प्रेमचंद के विचार

1. हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगाजिसमें उच्च चिंतन होस्वाधिनता का भाव होसौंदर्य का सार होसृजन की आत्मा होजीवन की सच्चाइयों का प्रकाश हो जो हममें गतिसंघर्ष और बेचैनी पैदा करेसुलाए नहींक्योंकि अब ज्यादा सोना मृत्यु का लक्षण है।

2.साहित्यकार का काम केवल पाठकों का मन बहलाना नहीं हैयह तो भाटों और मदारियोंविदूषकों और मसखरों का काम है। साहित्यकार का पद इससे कहीं ऊँचा है। वह हमारा पथ प्रदर्शक होता हैवह हमारे मनुष्यत्व को जगाता है। हममें सद्भावों का संचार करता हैहमारी दृष्टि को फैलाता है – कम से कम उसका यही उद्देश्य होना चाहिए।

3.जो भाषा मुट्ठी भर लोगों का प्रकाश माध्यम हैउस भाषा में जान नहींवह तो केवल स्वाँग मात्र है। ग्राम जनता की धमनियों के साथ संबंध स्थापित करने की उसमें सामर्थ्य भी नहीं।ऐसी भाषा बद्ध पुस्करणी जैसी हैजिसके घाट को संगमरमर के पत्थरों से बाँध दिया गया है और उसके जल में बहुत से फूलों के होते हुए भी उसमें जल को निकालने एवं प्रवेश करने का कोई रास्ता नहीं।

4. उपन्यासकार को अपनी सामग्री आले पर रखी हुई पुस्तकों से नहीं बल्कि उन मनुष्यों के जीवन से लेनी चाहिए जो नित्य ही चारों तरफ मिलते रहते हैं।

5.जिस उपन्यास को समाप्त करने के बाद पाठक अपने अन्दर उत्कर्ष का अनुभव करेंउसके सद्‌भाव जाग उठेंवही सफल उपन्यास है।

6.  हमें तारीख से यह सबक न लेना चाहिए कि हम क्या थे। यह भी देखना चाहिए कि हम क्या हो सकते थे।

7.   जो आदमी दूसरी कौम से जितनी नफरत करता हैसमझ लीजिये कि यह खुदा से उतनी ही दूर है।

8.  प्रेम अभय का मंत्र है।

9.  सेवा ही वास्तविक संन्यास है।

 

प्रेमचंद के साहित्यिक महत्त्व संबंधी विद्वानों के मत-अभिमत

 

1. प्रेमचंद हिंदी के ही नहींदुनिया की बड़ी भाषाओं के बड़े लेखकों के समान ही सर्वाधिक पढ़े जाते हैं। साथ ही संसार की लगभग सभी भाषाओं में उनके सम्पूर्ण साहित्य का नहींतो ‘गोदान’ और ‘रंगभूमि’ का अनुवाद हो चुका है। यहाँ तक कि युनेस्को के अंतर्गत ‘विश्व साहित्य धरोहर’ में भी इसका प्रकाशन हो चुका है।... हम खुले जनतंत्र में रह रहे हैं। जिस समतामूलक समाज की संरचना में आज भारत का हर लेखक अपना रचनात्मक योगदान दे रहा हैउस चेतना के प्रेरणास्त्रोत प्रेमचंद ही थे। उनकी महानता हमें नहीं रोकती कि हम उनके विचारों पर विमर्श न करें। प्रेमचन्द ने ही साहित्य का यह खुला जनतंत्र स्थापित किया है।

      कमलेश्वर

2. प्रेमचंद का साहित्य केवल भारत की स्वाधिनता का ही साहित्य नहीं है वरन् संसार के समस्त पीड़ितदुःखी और शोषित जनता का साहित्य है। अन्य पराधीन या अर्ध पराधीन देश उनके साहित्य से प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैंक्योंकि प्रेमचंद ने स्वातंत्र्य भावना को कभी भी और कहीं भी संकीर्ण रूप में नहीं देखा। जनवादी होने के कारण वे मानवमात्र के हैं और सदैव संत्रस्त मानवता को निश्चय ही उनके साहित्य से आत्मबल मिलेगा।

      महेन्द्र भटनागर

3.प्रेमचन्द ऐसे लेखक हैं जिन्हें जलाकर राख में बदला नहीं जा सकता। क्या आप वाल्मीकिकालिदासतुलसीकबीरसूरमीराभारतेंदुप्रसाद आदि को मार सकते हैं ? इन्होंने अपने-अपने देश का अमृत पान किया हुआ है। प्रेमचंद का गौरव और गरिमा अक्षुण्ण हैउसे आग न जला सकती हैवायु न सुखा सकती है और न ही जल उसे गीला कर सकता है। प्रेमचंद की साहित्यिक आत्मा की ऐसी ही शक्ति है।

  डॉ. कमल किशोर गोयनका

4. ‘गोदान ‘विश्व साहित्य की अमर कृतियों में स्थान पाकर भारत का सौभाग्य सूर्य बन गया है। प्रेमचंद के उपन्यासों में राजाओं से लेकर सड़क पर भीख माँगने वाले भिखारी तकमहलों से लेकर झोंपड़ी तककुल वधुओं से लेकर वेश्याओं तककोलकाता से लेकर छोटे-छोटे गाँव तकगवर्नर से लेकर पटवारी तकब्राह्मणों से लेकर मेहतरों तक सभी की समस्याओं की अभिव्यक्ति मिली |

  डॉ. मक्खन लाल शर्मा

5. अगर मैं गोदान लिखता ? लेकिन निश्चय है मैं नही लिख सकता थालिखने की सोच नहीं सकता था। पहला कारण कि मैं प्रेमचंद नहीं हूँऔर अन्तिम कारण भी यही कि प्रेमचंद मैं नहीं हूँ। वह साहस नहींवह विस्तार नहीं | गोदान आसपास पाँच-सौ पृष्ठों का उपन्यास है। उसके लिए धारणा में ज्यादा क्षमता चाहिएऔर कल्पना में ज़्यादा सूझ-बूझ।

      जैनेन्द्र कुमार (प्रेमचंद का गोदान : यदि मैं लिखता - से )

6. यदि आप उत्तर भारत के गाँवों को जानना समझना चाहते हैं तो प्रेमचंद से अच्छा परिचायक कोई दूसरा नहीं मिलेगा।

उन्होंने अपने को सदा मजदूर समझा। बीमारी की हालत में भीमृत्यु के कुछ दिन पहले तक भीवे अपने कमजोर शरीर को लिखने के लिए मजबूर करते रहे। मना करने पर कहते – मैं मजदूर हूँमजदूरी किए बिना मुझे भोजन करने का अधिकार नहीं।

      आ. हजारीप्रसाद द्विवेदी

7. प्रेमचंद हिन्दुस्तान की नई राष्ट्रीय और जनवादी चेतना के प्रतिनिधि साहित्यकार थे। जब उन्होंने लिखना शुरू किया थातब संसार पर पहले महायुद्ध के बादल मंडरा रहे थे। जब मौत ने उनके हाथ से कलम छीन लीतब दूसरे महायुद्ध की तैयारियाँ हो रही थीं। इस बीच विश्व-मानव संस्कृति में बहुत से परिवर्तन हुए। इन परिवर्तनों से हिन्दुस्तान भी प्रभावित हुआ और उसने उन परिवर्तनों में सहायता भी की। विराट् मानव-संस्कृति की धारा में भारतीय जन-संस्कृति की गंगा ने जो कुछ दियाउसके प्रमाण प्रेमचन्द के लगभग एक दर्जन उपन्यास और सैकड़ों कहानियाँ हैं।  

      डॉ. रामविलास शर्मा

 

प्रेमचंद की रचनाओं से उद्धृत विचारोक्तियाँ

 

1.   प्रेम वह प्याला नहीं हैजिससे आदमी छक जाएउसकी तृष्णा सदैव बनी रहती है। 

  कायाकल्प

2. सच्चा आदमी एक मुलाकात में ही जीवन को बदल सकता हैआत्मा को जगा सकता है और अज्ञान को मिटाकर प्रकाश की ज्योति फैला सकता है। 

 मानसरोवर

3. कविता सच्ची भावनाओं का चित्र है और सच्ची भावनाएँ चाहे वे दुख की हो या सुख कीउसी समय सम्पन्न होती है जब हम दुःख या सुख का अनुभव करते है। कवि वह सपेरा है जिसकी पिटारी में सर्पों के स्थान पर हृदय बन्द होते हैं। 

      वरदान

4. मैं प्राणियों के विकास में स्त्री के पद को पुरुषों से श्रेष्ठ समझता हूँउसी तरह जैसे प्रेमत्याग और श्रद्धा को हिंसासंग्राम और कलह से श्रेष्ठ समझता हूँ।

      गोदान

5. सैकड़ों स्त्रियाँ जो रोज बाजार में झरोखों पर बैठी दिखाई देती हैंजिन्होंने अपनी लज्जा और सतीत्व को भ्रष्ट कर दिया हैउनके जीवन का सर्वनाश करने वाले हमीं लोग हैं।

      सेवासदन

6. हम हारे, तो क्या, मैदान से भागे तो नहीं, रोए तो नहीं, धाँधली तो नहीं की। फिर से खेलेंगे, ज़रा दम ले लेने दो हार-हारकर तुम्हीं से खेलना सीखेंगे और एक न एक दिन हमारी जीत होगी, जरूर होगी।  

      रंगभूमि

 

 


3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेमचंद की महत्त्वपूर्ण उक्तियों एवं प्रेमचंद के विषय मे प्रसिद्ध साहित्यकारों के कथन प्रस्तुत करके आपने सच्चे रूप में प्रेमचंद को याद किया।बधाई

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