रविवार, 25 अप्रैल 2021

शब्द संज्ञान


अर्थविज्ञान (Semantics) से संबंधित कतिपय शब्द

अर्थविज्ञान भाषा विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है जिस में भाषा के अर्थ पक्ष पर विचार किया जाता है। भाषा के अर्थ तत्त्व विषयक अध्ययन के चलते अर्थविज्ञान, भाषाविज्ञान के भावपक्ष से जुड़ा विषय है और हिन्दी-अंग्रेजी दोनों भाषाओं में इस विषय को लेकर स्वतंत्र पुस्तकें भी लिखी गई है। अर्थ विचार, माने-तत्त्व-विचार, शब्दार्थ विज्ञान, अर्थातिशय आदि हिन्दी में तथा Rhematology, Sematology, Rhematics, Significant, Semasiology, Semiotics जैसे शब्द अंग्रेजी में प्रयुक्त होते रहे हैं । फिर भी हिन्दी-अंग्रेजी में उक्त शाखा के लिए क्रमशः अर्थविज्ञान तथा Semantics शब्द ज्यादा प्रचलित एवं स्वीकृत रहे हैं और विषय की दृष्टि से अधिक उचित भी। अर्थविज्ञान में अर्थ का वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन-विश्लेषण किया जाता है। अंग्रेजी Semantics शब्द को विद्वानों ने इस तरह व्याख्यायित किया है – The system and study of meaning in language. – भाषा में अर्थ की प्रणाली का अध्ययन।

v अर्थ : जिस तरह ध्वनिविज्ञान, रूपविज्ञान, वाक्यविज्ञान, लिपिविज्ञान आदि के अध्ययन में क्रमशः ध्वनि, रूप, वाक्य, अक्षर केन्द्रीय इकाइयाँ है, ठीक उसी तरह ‘अर्थ’ अर्थविज्ञान की मूल इकाई है।

वैसे हमारे भाषा प्रयोग में ‘अर्थ’ शब्द एकाधिक अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है। विषय, प्रसंग-सन्दर्भ के अनुसार इस अनेकार्थी शब्द से अभिप्रेत-योग्य अर्थ ग्रहण किया जाता है। “अर्थ शब्द भी अनेकार्थी है। Economics अर्थशास्त्र में उसका अर्थ धन होता है, किन्तु भाषाविज्ञान में उसका यह अर्थ ग्राह्य नहीं है। यहाँ तो वह meaning ‘माने’ का ही बोधक है। वस्तु thing, धन money और माने meaning इन तीनों अर्थ में से वह तीसरे का वाचक है।”

संस्कृत वैयाकरण भर्तृहरि अपने वाक्यपदीय ग्रन्थ में अर्थ को शब्द तक सीमित रखते हुए इसे इस तरह परिभाषित करते हैं –

यस्मितस्तूच्चरिते शब्दे यदा योऽर्थः प्रतीयते।

तमाहुरर्थं तस्यैव नान्यदर्थस्य लक्षणम्॥

सामान्यतः शब्द, पद, वाक्य, वाक्य समूह आदि से जिसकी अभिव्यक्ति एवं प्रतीति होती है, उसे अर्थ कहा जाता है।   

v यादृच्छिक : जिस मान्यता या धारणा के पीछे कोई तर्क न हो, कोई तार्किक आधार न हो, उसे यादृच्छिक कहा जाता है। सुरेशचन्द्र त्रिवेदी के मतानुसार “यादृच्छिक शब्द यदृच्छा का विशेषण है। यदृच्छा – जैसी इच्छा। इसके लिए कोई भी कार्य-कारण संबंध या तर्क सम्मत दलिल काम नहीं देती।

Ø भाषा यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है।

Ø शब्द और अर्थ का संबंध है – यादृच्छिक।

भाषाविज्ञान-अर्थविज्ञान की दृष्टि से शब्द और अर्थ के संबंध को यादृच्छिक कहना यानी किसी भाषा प्रयोक्ता समाज-समुदाय की इच्छानुसार मात्र माना हुआ संबंध। इस संबंध को तर्कसंगत या तर्काश्रित संबंध नहीं कहा जा सकता। “एक विशेष समुदाय किसी भाव या वस्तु के लिए जो शब्द बना लेता है, उसका उस भाव या वस्तु से कोई संबंध नहीं होता। यह समाज की इच्छानुसार माना हुआ संबंध है।” इस वजह से एक ही वस्तु के लिए अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग शब्द प्रयुक्त होते हैं। जैसे एक ही पक्षी विशेष के लिए हिन्दी में तोता, गुजराती में पोपट, अंग्रेजी में Parrot तथा अन्य भाषाओं में इसी तरह अलग-अलग नाम।

आप्तवाक्य / विवृति / प्रकरण

अर्थविज्ञान में शब्दों के अर्थ जो जानने के, संकेत ग्रहण के विविध साधक तत्त्वों पर विचार किया गया है। भारतीय भाषा वैज्ञानिकों ने अर्थ बोध के कुल आठ साधन बताए हैं – 1. व्याकरण 2. उपमान 3. कोश 4. आप्तवाक्य 5. व्यवहार 6. विवृति (व्याख्या) 7. प्रकरण (वाक्य-शेष) 8. ज्ञात पद का सान्निध्य ।

v आप्तवाक्य : आप्तवाक्य से आशय है –  किसी विशिष्ट विद्वान, अनुभवी एवं विश्ववसनीय व्यक्ति, सत्यवक्ता द्वारा कही गयी बात- कथन। ऐसे लोगों के कथन पर पूरी तरह से विश्वास किया जाता है । ये जिस शब्द का जो अर्थ बताते हैं, वही हम लोगों के लिए मान्य और स्वीकृत होता है। धर्म, पाप, आत्मा, ईश्वर, स्वर्ग, नर्क, पुनर्जन्म जैसे अनेकों शब्द है, जिसका अर्थज्ञान आप्तवाक्य के ज़रिए ही होता है। काशवाणी शब्द का मूल अर्थ देववाणी है पर कवि पन्त ने इसे रेडियो का वाचक बनाया तो उसी अर्थ में यह शब्द प्रयुक्त होने लगा।

v विवृति : अर्थबोध के इस साधक तत्त्व को व्याख्या या विवरण के नाम से भी जाना जाता है। कुछ शब्द ऐसे है जिनकी व्याख्या करने पर ही अर्थबोध हो पाता है।” भाषा में ऐसे असंख्य शब्द है जो अर्थज्ञान की दृष्टि से कठिन लगते हैं, ऐसे शब्दों का विवरण देना पड़ता है, तब अर्थबोध – अर्थ की स्पष्टता संभव होती है। पारिभाषिक शब्द विशेषतः इस कोटि में आते हैं जिसका अर्थ जानने हेतु यह साधन अपेक्षित है।

ध्वनि, अलंकार, अद्वैत, अघोष, घोष, निर्गुण, सगुण, वृत्ति, रीति, स्वनिम प्रभृति अलग-अलग विषय-क्षेत्र के शब्दों की व्याख्या जरूरी है। जैसे – “विधि शब्द। इसे स्पष्ट करने के लिए – आचार व्यव्हार के लिए अनिवार्य नियम इतना स्पष्टीकरण आवश्यक है।”

v प्रकरण : प्रकरण के लिए एक अन्य शब्द – ‘वाक्य-शेष’ भी चलता है । अनेकार्थी शब्द के अर्थनिर्णय की यह एक कसौटी है। किसी अनेकार्थी शब्द का जब प्रयोग होता है, तब प्रकरण या सन्दर्भ के आधार पर ही इसका अर्थ जाना जाता है। “प्रसंग के अनुसार अर्थनिर्णय होता है। भोजन के समय सैंधव अर्थात् नमक और युद्ध के समय सैंधव अर्थात् घोड़ा ही लिया जाएगा।” आशय यह है कि जब कोई शब्द एकाधिक अर्थ का वाचक हो तब इस साधन (प्रकरण) के द्वारा अर्थज्ञान होता है। इस तरह प्रकरण, प्रसंगानुरूप अर्थ ग्रहण की सरल पद्धति है। जैसे ‘गोली’ शब्द है जो अनेकार्थी है। जब वाक्य में इसका प्रयोग होता है तो प्रकरण-प्रसंग के अनुसार सही अर्थ का बोध होता है। सैनिक अथवा लड़ाई के प्रसंग से संबंधी वाक्य में प्रयुक्त ‘गोली’ शब्द बन्दूक की गोली, बुखार-बीमारी के सन्दर्भ में दवाई, बालकों के खेल संदर्भित वाक्य में यह खेलने की गोली

अर्थविज्ञान विषयक तकनीकी शब्दावली में अर्थ परिवर्तन(Semantic Change), अर्थ परिवर्तन की दिशाएँ(Direction of Semantic Change), अर्थ-विस्तार(Expansion of meaning), अर्थ-संकोच(Contraction of meaning), अर्थादेश(Transference  of meaning), अर्थोत्कर्ष(Elevation of meaning), अर्थापकर्ष(Degradation of meaning) आदि शब्दों का विशेष महत्त्व है।

अर्थ विकास या अर्थ परिवर्तन की दिशाओं-प्रकारों संबंधी गंभीर चिंतन-अध्ययन करने वाले भाषा वैज्ञानिकों में सबसे पहले फ्रांसीसी भाषा वैज्ञानिक माइकल ब्रील ने अर्थ परिवर्तन की तीन दिशाओं – अर्थ विस्तार, अर्थ संकोच तथा अर्थादेश पर विचार किया। प्रस्तुत विषय को लेकर कुछ ऐसे भी अध्येता है जिन्होंने इन दिशाओं की संख्या तीन से अधिक बताई है। जैसे ब्लूमफील्ड ने नौ दिशाओं का उल्लेख किया। कुछ विद्वानों ने अर्थोत्कर्ष और अर्थापकर्ष को स्वतंत्र दिशाओं में लिया है, जबकि ये दोनों ‘अर्थादेश’ के ही भेद है। असल में अर्थ परिवर्तन की तीन दिशाओं और अर्थोत्कर्ष एवं अर्थापकर्ष को अर्थादेश के भेद मानना ज्यादा तर्क संगत है, जो ज्यादा मान्य एवं स्वीकृत भी है।

v अर्थादेश (Transference  of meaning) :

अर्थादेश की स्थिति तब मानी जाती है जब कोई शब्द अपने पहले वाले अर्थ को छोड़कर अन्य नये अर्थ को लेकर व्यवहृत हो। डॉ. भोलानाथ तिवारी के मतानुसार – “भाव-साहचर्य के कारण कभी-कभी शब्द के प्रधान अर्थ के साथ एक गौण अर्थ भी चलने लगता है। कुछ दिनों में ऐसा होता है कि प्रधान अर्थ का धीरे-धीरे लोप हो जाता है और गौण अर्थ में ही शब्द प्रयुक्त होने लगता है। इस प्रकार एक अर्थ के लोप होने तथा नवीन अर्थ के आ जाने को ‘अर्थादेश’ कहते हैं ।”  

असुर, गँवार, आकाशवाणी, उष्ट्र, तटस्थ जैसे शब्दों के अर्थ में हुआ परिवर्तन अर्थादेश प्रकार का परिवर्तन कहा जाता है। ‘असुर पहले देवता के लिए, अब राक्षस का वाचक, गाँव में निवास करने वाला ‘गँवार’ पर आगे चलकर यह शब्द मूर्ख व असभ्य के लिए प्रयुक्त, ‘आकाशवाणी’ का देववाणी से रेडियो और ‘उष्ट्र’ पहले भैंसा अब ऊँट, ‘तटस्थ पहले तट पर स्थित अब निष्पक्ष के लिए।

v अर्थोत्कर्ष (Elevation of meaning) :

अर्थ का उत्कर्ष, अर्थ का उन्नत होना। अर्थात् अर्थ का बुरे से अच्छा होना। अर्थोत्कर्ष की प्रवृत्ति में शब्द अपने बुरे अर्थ को छोड़कर अच्छे अर्थ में प्रयुक्त होने लगता है। इस तरह परिवर्तित अर्थ पहले से ज्यादा अच्छा-उन्नत होता है। ‘साहस’ (पहले संस्कृत में लूट, हत्या, चोरी आदि के अर्थ में) शब्द अर्थपरिवर्त, अर्थोत्कर्ष का उदहारण है, इसी तरह एक शब्द ‘मुग्ध’ का अर्थोत्कर्ष – “संस्कृत में इस शब्द का प्रयोग मूर्ख के अर्थ में होता था। धीरे-धीरे इसके अर्थ में परिवर्तन आया और मोहित-आकर्षित और भोलेपन के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा।”

v अर्थापकर्ष (Deterioration of meaning) :

अर्थोत्कर्ष की तरह अर्थापकर्ष भी अर्थादेश का एक भेद है। इसमें अर्थोत्कर्ष से बिल्कुल विपरीत स्थिति होती है। अर्थ का अपकर्ष होना, अवनत होना.. अर्थापकर्ष कहलाता है। पहले वाला अर्थ अच्छा होता है पर बदलाव वाला अर्थ बुरा होता है – यानी अर्थ का अच्छे से बुरा होना। असुर, पाखण्ड, जुगुप्सा, अभियुक्त जैसे शब्दों का अर्थपरिवर्तन, अर्थापकर्ष के अच्छे उदहारण हैं। एक शब्द है – महाजन “ महाजन श्रेष्ठ व्यक्तियों को कहते थे, पर आज उन लोगों को महाजन कहा जाता है जो रूपये-पैसे का लेन-देन करते हैं और सूद के द्वारा धन कमाया करते हैं। इस प्रकार पहले महाजन शब्द श्रद्धावान के रूप में और अब सूदखोर घृणावाची हो गया है।”

 

 
डॉ. पूर्वा शर्मा
वड़ोदरा 


6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी जानकारी । निश्चित रूप से ज्ञानवर्धक । विश्लेषण भी बहुत सुंदर किया है । साधुवाद । आशीर्वाद ।

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  2. बहुत सुंदर विश्लेषण, हार्दिक बधाई।

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  3. सहज,सरल भाषा में बहुत गम्भीर प्रस्तुति , हार्दिक बधाई !

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  4. बहुत सुन्दर व ज्ञानवर्धक पूर्वा जी।
    हार्दिक बधाई

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