होली
जीवन का लक्ष्य गति करना है। इस गति
की प्रक्रिया में व्यक्ति के जीवन में बहुत सी चीजें सम्मिलित होती चली जाती है। त्यौहार भी उन्हीं
में से एक है। भारत जैसे बहुप्रांतीय, बहुक्षेत्रीय
देश में कई प्रकार के त्यौहार मनाए जाते हैं। मकर संक्रांति हो, होली हो,
दीपावली
हो, पूनम,
ओनम, पोंगल,
बिहू
या वैशाखी हो। सभी त्यौहार की अपनी गरिमा और महत्त्व है। हर त्यौहार की तरह होली का त्यौहार भी
बड़ी धूम-धाम
और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यह त्यौहार रंगों का त्यौहार है।
बुराई पर अच्छाई की जीत और वसंत ऋतु के आगमन का त्यौहार है। जिस प्रकार बसंत के
आगमन के साथ धरा नया रूप रंग धारण कर अपनी खुशबू और सौंदर्य चारों ओर बिखेरते हुए
लोगों में आनंद-उल्लास
का संचार करती है। उसी
प्रकार रंगों का त्यौहार होली भी लोगों के चेहरों के साथ-साथ उनके जीवन को भी
खुशियों से भर देती है।
हमारे
देश में वर्ष भर कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। इन त्यौहारों की
तिथि व समय निश्चित होती है। होली का त्यौहार फाल्गुन माह के पूर्णिमा के दिन
मनाया जाता है। इस दिन लकड़ी,
उपले,
और पत्तियाँ इकट्ठा कर होलिका बनाई जाती है और मुहूर्त के अनुसार उसे जलाया जाता
है। होली
मनाने का पौराणिक महत्त्व होने के साथ-साथ सामाजिक और वैज्ञानिक महत्त्व भी है।
पौराणिक
मान्यता के अनुसार नृसिंह रूप में भगवान इसी दिन प्रगट हुए थे,
जिन्होंने हिरण्यकश्यप का वध किया था हम सभी जानते हैं कि प्रहलाद हिरण्यकश्यप का
पुत्र था। वह भगवान विष्णु की पूजा-उपासना
करता था। हिरण्यकश्यप स्वयं को ही सर्वशक्तिमान समझने की लगा था। उसे इस बात का
अभिमान था कि वह भगवान जितना ही शक्तिशाली है इसीलिए वह चाहता था कि सभी उसी की पूजा
करें अपने पुत्र को भी उसने विष्णु का नाम छोड़कर स्वयं की ही पूजा करने के लिए
कहा प्रहलाद ने इसे मानने से अस्वीकार कर दिया। क्रोधित हो हिरण्यकश्यप
ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद का वध करने के लिए कहा। होलिका को यह वरदान
प्राप्त था कि अग्नि में वह जल नहीं सकती इसी कारण वह प्रहलाद को लेकर अग्नि में
बैठती है किंतु प्रहलाद की भक्ति के समक्ष उसका वरदान निष्फल होता है,
वह जलकर मर जाती है और प्रहलाद जीवित रहता है। इसकी खुशी में होली
मनाई जाती है। इस प्रकार की कई दंतकथाएँ हमारे यहाँ प्रचलित हैं। शिवपुराण की कथा के
अनुसार शिवजी तपस्या में लीन थे और पार्वती उनसे विवाह करना चाहती थी शिव की
तपस्या भंग करना इंद्र के लिए अनिवार्य था क्योंकि ताड़कासुर नामक राक्षस का वध शिव-पार्वती
के पुत्र द्वारा होना था।
इसी कारण इंद्र, शिव
तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को भेजते हैं। शिवजी क्रोधित हो कामदेव को भस्म कर
देते हैं, किंतु उनकी तपस्या भी भंग हो जाती है
और उनका विवाह पार्वती से हो जाता है। इस खुशी में रंगो द्वारा,
फूलों द्वारा अपनी खुशी को अभिव्यक्त किया जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार वासुदेव और देवकी के
विवाह के पश्चात देवकी की विदाई के समय जब यह आकाशवाणी होती है कि देवकी के आठवें
पुत्र द्वारा कंस का वध होगा। अपनी बहन के एक-एक कर सभी पुत्रों की हत्या के पश्चान
कृष्ण के जन्म लेते ही उन्हें नंद और यशोदा के यहाँ छोड़ कर उनकी कन्या को लेकर
वासुदेव लौटते हैं। कंस उस कन्या का भी वध करना चाहता है तभी
आकाशवाणी होती है कि वासुदेव के आठवें पुत्र ने जन्म ले
लिया है,
यह सुनकर कंस गोकुल में जन्में सभी नवजात शिशुओं की
हत्या के लिए पूतना राक्षसी को भेजता है किंतु कृष्ण द्वारा उनका वध कर दिया जाता है,
इस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी और ग्राम वासियों ने अपनी खुशी को
अभिव्यक्त करने के लिए रंगों का त्यौहार मनाया।
बसंत ऋतु में एक दूसरे पर रंग,
फूल डाल कर इसके अतिरिक्त बसंत ऋतु में राधा-कृष्ण एक दूसरे पर रंग और फूलों की
वर्षा कर अपने प्रेम को व्यक्त करते थे। इसी कारण राधा-कृष्ण
के प्रेम को अभिव्यक्त
करता यह त्यौहार मनाया जाता है। ऐसी कई दंतकथाएँ और मान्यताएँ हमारे समाज में
व्याप्त है किंतु इसका सबसे बड़ा उद्देश्य बुराई पर अच्छाई का विजय है।
फाल्गुन
पूर्णिमा की रात में होलिका दहन किया जाता है कई प्रांतों में ठंडी होली की पूजा
का महत्त्व है अर्थात होलिका को जलाने के
पूर्व उसके चारों ओर घूम कर जल से प्रदक्षिणा कर उसमें श्रीफल डाला
जाता है। इसके पीछे का उद्देश्य यह है कि अग्नि देव प्रहलाद अर्थात भक्तों की
रक्षा करें ऐसी विनती की जाती है तथा कई जगहों पर जलती होलिका की पूजा की जाती है
जिसका उद्देश्य है कि अग्नि अपनी लपटों द्वारा बुराई को खत्म कर अच्छाई की रक्षा करे।
हमारे
देश के अधिकतर हिस्सों में किसी न किसी रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है किंतु
कुछ प्रदेश ऐसे हैं जहाँ की होली विश्व विख्यात है। जैसे वृंदावन में फूलों की
होली का विशेष महत्त्व है यहाँ यह त्यौहार
एकादशी के दिन से ही प्रारंभ हो जाता है यहाँ के मंदिरों और गली-मोहल्लों में
उल्लास का वातावरण होता है वृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर की होली तो सबसे विशेष
होती है। बाँके बिहारी की मूर्ति को मंदिर के बाहर किया जाता है और सभी यही मानते
हैं कि भगवान स्वयं होली खेलने उनके बीच आए हैं। सबसे पहले फूल,
उसके बाद गुलाल के साथ सूखे और गीले रंगों से होली खेली जाती है किंतु विशेष रूप
से फूलों से खेली जाने के कारण इसे फूलों की होली कहा जाता है।
ब्रज
के बरसाने गाँव की लठमार होली भी विश्व प्रसिद्ध है इसे राधा-कृष्ण
के प्रेम से जोड़ा जाता है। कृष्णा अपने मित्रों के साथ राधा तथा उनकी सखियों को
तंग करते थे तब यह मिलकर उन्हें मारती थी। यहाँ होली के अवसर पर नंद गाँव के
पुरुष और बरसाने की महिलाएँ भाग लेती हैं नंदगाँव की टोली जब बरसाने जो कि राधा का गाँव था।
वहां पहुंचती हैं तब महिलाएँ-पुरुषों
को लाठियों से पीटती हैं। पुरुषों की इन लाठियों की मार से बचते
हुए महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। बड़ी संख्या में लोग इसमें भाग लेते
हैं।
पंजाब का होला-मोहल्ला
भी इस दृष्टि से प्रसिद्ध है सिख गुरु गोविंद सिंह ने इसकी शुरुआत की थी इसमें पंच-प्यारे
जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों
के करतब दिखाकर अपने साहस, पौरुष
और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं।
हरियाणा की ‘धूलेंड़ी’ हरियाणा की होली भी
बरसाने की होली से काफी हद तक मिलती-जुलती है किंतु यहाँ भाभी-देवर
के बीच यह होता है इस दिन भाभियों को देवरों को पीटने की पूरी स्वतंत्रता होती है
पूरे दिन भर की पिटाई के बाद शाम को देवर अपनी भाभी को मनाने के लिए उपहार लाता है
और भाभी उन्हें आशीर्वाद देती हैं।
बिहार की फाल्गु-पूर्णिमा फागु का अर्थ होता
है लाल रंग और पूर्णिमा का अर्थ पूरा चाँद। बिहार में होली के अवसर पर फगुआ गाया
जाता है जो काफी प्रसिद्ध लोक गायन का एक प्रकार है बिहार तथा उत्तर-प्रदेश
के कई
हिस्से में इसे नव वर्ष के उत्सव के रूप में मनाते हैं यहाँ तीन दिन तक होली मनाई
जाती है पहले दिन होलिका दहन दूसरे दिन इससे निकली राख से होली खेलना और तीसरे दिन
रंगों से खेला जाता है। कई जगहों पर कीचड़ से भी होली खेली जाती है तो कई जगह
कपड़ा फाड़ होली की परंपरा भी है।
राजस्थान की होली भी काफी प्रसिद्ध है यहाँ होली
के अवसर पर तमाशे की परंपरा है इसमें किसी नुक्कड़ नाटक की तरह मंच-सज्जा
के साथ कलाकार आते हैं और
नित्य तथा अभिनय से अपने-अपने
हुनर का प्रदर्शन करते हैं।
होली
के त्यौहार को मनाने की परंपरा काफी प्राचीन है सात पुरातन धार्मिक पुस्तकों में
इस पर्व का वर्णन मिलता है जैमिनी के पूर्व मीमांसा सूत्र और कथा गार्ह्य सूत और भविष्य पुराण
जैसे पुराणों की हस्तलिपिओं और ग्रंथों में उल्लेख है। मुगल काल में अकबर-जोधाबाई
तथा जहांगीर-नूरजहां
के भी होली खेलने का वर्णन प्राप्त होता है।
इस
प्रकार पूरे देश में होली का त्यौहार विविध रूप में मनाया जाता है। जिस प्रकार रंग तथा
फूलों की खुशबू जीवन को आनंददायक बनाती है उसी प्रकार होली का त्यौहार भी नववर्ष
के आगमन के साथ जीवन में ढेरों खुशियाँ भर देता है।
डॉ. अनिला मिश्रा
हिंदी-विभाग
सरदार
पटेल विश्वविद्यालय
वल्लभ
विद्यानगर
सारगर्भित निबंध।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
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