बेरंग जीवन
बेनूर न हो
कर्ज़ में
माँग लाई मौसम से ढेरों रंग,
लाल,
पीले, हरे, नीले,
नारंगी, बैगनी, जामुनी
छोटी-छोटी
पोटली में बड़े सलीके से लेकर आई
और ख़ुद पर
उड़ेलकर ओढ़ लिया मैंने इंद्रधनुषी रंग।
अब चाहती
हूँ
रंगों का
कर्ज़ चुकाने, मैं मौसम बन जाऊँ,
मैं रंगों की
खेती करूँ और खूब सारे रंग मुफ़्त में बाँटूँ
उन सभी को
जिनके जीवन में मेरी ही तरह रंग नहीं है,
जिन्होंने न
रोटी का रंग देखा न प्रेम का
न ज़मीन का न
आसमान का।
चाहती
हूँ
अपने-अपने
शाख से बिछुड़े, पेट की आग का रंग
ढूँढते-ढूँढते
बेरंग सपनों
में जीनेवाले
अब रंगों से
होली खेलें, रंगों से ही दीवाली भी
रंगों के सपने
हों,
रंगों की ही हकीक़त हो।
रंग रंग
रंग!
कर्ज़ कर्ज़
कर्ज़!
ओह मौसम!
नहीं चुकाऊँगी उधारी
कितना भी
तगादा करो चाहे न निभाओ यारी
तुम्हारी
उधारी तबतक
जबतक मैं
मौसम न बन जाऊँ।
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फगुआ (हाइकु)
1.
टेसू
चन्दन
मंद-मंद
मुस्काते
फगुआ गाते
!
2.
होली
त्योहार
बचपना
लौटाए
शर्त लगाए
!
3.
रंगों का
मेला
खोया दर्द -
झमेला,
नया सवेरा
!
4.
याद
दिलाते
मन के मौसम
को
रंग अबीर
!
5.
फगुआ बुझा,
रास्ता अगोरे
बैठा
रंग ठिठका
!
6.
शूल
चुभाता
बेपरवाह रंग,
बैरागी मन
!
7.
रंज औ
ग़म
रंग में
नहाकर
भूले धरम
!
8.
हाल न
पूछा
जाने क्या
सोचा
पावन रंग
!
9.
रंग
बिखरा
सिमटा न
मुट्ठी में
मन बिखरा
!
10.
रंग न
सका
होली का
सुर्ख़ रंग
फीका ये मन
!
मेरी रचनाओं को साझा करने के लिए हृदय से आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर हाइकु
जवाब देंहटाएंबहुत खूब जेन्नी जी!
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