रविवार, 14 फ़रवरी 2021

कविता

 



ऋतु बसंत


आई ऋतु बसंत आई बहार छाई,

लाई ऋतु बसंत पुहुप शृंगार लाई।

 

पवन हिंडोले सँग फुलवारी

डारी-डारी झूमत मतवारी

छवि छटा सुशोभित क्यारी

भरी सुगंधित न्यारी-न्यारी

अचला मन भव तृप्त-तृप्त।

 

आई ऋतु बसंतआई बहार छाई,

लाई ऋतु बसंत पुहुप शृंगार लाई।

 

कारी कोयल करत किलोल

गावत निरत करत मोर-सोर

उन्माद उमंग चहुँ और छोर

आनंद उपवन भव ठौर-ठौर

फूले आम्र कुंज अपार अनंत।

 

आई ऋतु बसंत आई बहार छाई,

लाई ऋतु बसंत पुहुप शृंगार लाई।

 

बोल सुरीले घोले बांसुरिया

हुई भ्रमित पनिहारी डंगरीया

रूनक-झूनक बाजे पैंजनिया

याद पिया की लाई बावरिया

थिरक-थिरके तन मन झंकृत।

 

आई ऋतु बसंत आई बहार छाई,

लाई ऋतु बसंत पुहुप शृंगार लाई।

 

कवि, पुरूषोत्तम कडेल

अत्तापूर राम बाग, हैदराबाद 48

तेलंगाना




1 टिप्पणी:

  1. कवि, पुरुषोत्तम कडेल जी का काव्य -पाठ बहुत मधुर , सराहनीय प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

सितंबर 2025, अंक 63

  शब्द-सृष्टि सितंबर 2025 , अंक 63   विचार स्तवक आलेख – विश्व स्तर पर शक्ति की भाषा बनती हिंदी – डॉ. ऋषभदेव शर्मा कविता – चाय की चुस्की म...