1
अँधेरे शहर के
काले डरावने मनहूस जंगल में
झिलमिलाता है
रौशनी का नन्हा गुच्छा :
जुगनुओं का झुप्पा सा
यह तुम हो!
2
कहाँ-कहाँ हो आया मन
दो पल में
क्या-क्या पा,
खो आया मन
दो पल में ।
3
हौले से
तुमने तपता मेरा हाथ छुआ
और
पूछा–
‘अब कैसी हो ?
....झपकी आई थी ।
4
फूल
मुझे बहलाने आये
मेरे पास बैठकर
हिचकी भर-भर
रोने लगे ।
5
मेरे हिरना-मन
कैसे
और
कब
तुम बन गये कोल्हू के बैल ?
आँखें मूँद
चलते जाते हो-चलते जाते हो,
नीरस
इस दुष्चक्र से
ऊबते नहीं ?
डॉ. सुधा
गुप्ता
प्रसिद्ध
कवयित्री/ साहित्यकार
'काकली' 120 बी /2 साकेत
मेरठ (उ.प्र.)
अद्भुत!!
जवाब देंहटाएंगूढ़ अर्थों के साथ सुंदर रचनाकर्म -बधाई ।
जवाब देंहटाएंफूल/मुझे बहलाने आये//मेरे पास बैठकर/हिचकी भर-भर/
जवाब देंहटाएंरोने लगे ।.....अद्भुत...डॉ. सुधा गुप्ता जी ने लघु कविताओं में विशद भावो को समाहित किया है।समस्त कविताएँ प्रभावी है।उनकी लेखनी को नमन
🙏🙏
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर Ma'am. ☺
बहुत सुन्दर. सुधा गुप्ता जी की लेखनी अद्भुत होती है. उनको प्रणाम.
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर हैं आ.सुधा दीदी को सदर नमन
जवाब देंहटाएंपुष्पा मेहरा
जवाब देंहटाएंआदरणीया सुधा जी की ये रचनाएँ लाजवाब हैं।
सादर नमन आपकी लेखनी को !
गागर में सागर भरती कविताएँ। सुंदर भाव,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। नमन
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुधा जी सभी रचना एक से बढ़कर एक । आनन्द आ गया ।
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