दास्तान कहे दिसंबर......
सुना रहा दिसम्बर
बीते दिनों की दास्तान
वर्ष भर की तारीखें
केलेंडर में कुछ निशान
अनगिनत किस्से-बातें
मुक्कमल हुए कुछ वादे
और थोड़ी-सी भूल-चूक
पीने पड़े कुछ कड़वे घूँट
टूट के चूर हुए कई सपने
कोरोना ले उड़ा कुछ मेरे अपने
मास्क-सेनिटाइज़र का साया
पूरे विश्व में नज़र आया
‘वर्क फ्रॉम होम’ ने बदल दिया जीवन व्यवहार
बरसों बाद एक साथ बैठा पूरा परिवार
खाली पड़े खेल के मैदान
घर में ही दौड़ते नन्हे शैतान
ऑनलाइन सेशन, वेबिनार की आई बहार
हर कोई बन गया इन्टरनेट सुपरस्टार
त्योहारों में बाज़ारों की रौनक हुई कम
कार्यक्रमों में अतिथि संख्या गई थम
माना बड़ी मुश्किल की ये घड़ी है
हार न मानने की राह ही चुनी है
नववर्ष जगा रहा उम्मीद की किरण
काश! जल्दी ही सफल हो वैक्सीनेशन
दो हज़ार बीस का लेखा-जोखा दे रहा दिसंबर
नववर्ष! अब तो दे दो कोरोना फ्री केलेंडर ।
डॉ. पूर्वा शर्मा
वड़ोदरा
बहुत खूब । कोरोना काल का सही विश्लेषण कविता के रूप में । आनंद आ गया ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया कविता। निरंतर आप की साहित्य साधना चलती रहे।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया कविता।आगे भी प्रयास जारी रखो।
जवाब देंहटाएंवाह, दिसम्बर के माध्यम से वर्ष 2020 का लेखा-जोखा,सारा वर्ष कोरोना की छाया में व्यतीत हुआ, उस पीड़ा की सहज अभव्यक्ति करती हुई सुंदर कविता।बधाई।
जवाब देंहटाएंकोरोनाग्रस्त जीवन स्थिति को बयां करती सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंकोरोना काल की परिस्थितियों का सुंदर विश्लेषण। बढ़िया कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिवक्ति किया है डॉक्टर पूर्वा शर्मा ने । हमें भी आशा है नया साल कोरोना मुक्त हो
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जवाब देंहटाएंकोरोना काल के हालात पर बढ़िया रचना पूर्वा जी... बधाई आपको!
कोरना काल पर लिखी गई बहुत ही बढ़िया रचना ।हार्दिक बधाई आदरणीय पूर्वा जी।
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