(क) झीणाभाई देसाई ‘स्नेह रश्मि’ (गुजराती कवि)
(हिन्दी अनुवाद - डॉ. भगवतशरण अग्रवाल)
1
कुहुक ध्वनि
रात जाग देखूँ तो
बारी में चन्द्र ।
2
आँधी में थकी
हवा सहज लेटी
फूल शय्या में ।
3
छप्पर चुए
भीगे गोदी में शिशु
माँ के आँसू से ।
4
बादल अब
गरजें न बरसें
रंगोली पूरें ।
5
छितरा नीड़
आतुर लेने गोद
बिखरे पत्ते ।
(ख) आचार्य रघुनाथ भट्ट
1
साँझ की चील
उड़ी अंतरिक्ष में
डैने फैलाए ।
2
जीवन यात्रा
सुगंध बिखेरता
वासंती फूल ।
3
कपोल तिल
शोभा सिंहासन में
शालिगराम ।
4
शहर बैठा
गाँवों की लाश पर
भूखा गिद्ध-सा ।
5
द्रौपदी सुनो !
चीर रक्षक नहीं
व्यर्थ पुकार ।
(ग) मुकेश रावल
1
वात्सल्य भरा
हर पल नवीन
माँ का हृदय ।
2
जन की पीड़ा
कवि-मुख में बसी
हुई मुखर ।
3
विशाल नभ
तारों के संग-संग
अकेला खुश ।
4
हँसता रहा
कँटीले पथ पर
लहू-लुहान ।
5
बचपन ही
हर चिंता से मुक्त
अपनी धुन ।
बहुत बढ़िया सर
जवाब देंहटाएंसुन्दर हाइकु सभी!
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