बुधवार, 31 दिसंबर 2025

पुस्तक समीक्षा

 

धूप छाँव और इन्द्रधनुषकथा-संग्रह में जीवन की विविधरंगी अनुभूतियाँ

डॉसुषमा देवी

विषय प्रवेश:

कहानी मानव की सामाजिकता के विकास काल से ही उसके साथ चलती रही है। किस्सागोई हो अथवा काव्यधारामूलतः अपनी बात अलग-अलग तरीकों से सामने वाले तक पहुँचाने का प्रयास ही रहा है। दादी-नानी की कहानियों में इसकी-उसकी, जिसकी-तिसकी बातें की जाती थीं। कहानियों के द्वारा यथार्थ, कल्पना तथा आदर्श की घुट्टी ही नहीं पिलाई जाती थी, अपितु उनमें जीवन को बेहतर बनाने के संदेश भी समाहित रहते थे। कहानियों का यही प्रदेय उसे मानव समाज से गहरे जोड़ता है। प्रस्तुत कहानी-संग्रह धूप-छाँव और इन्द्रधनुष के लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी रहे हैं और समाज व शासन की गहरी समझ रखते हैं। उनका अनुभव और अवलोकन कहानियों को ठोस आधार प्रदान करता है। इससे पूर्व भी उनकी रचनाएँ दर्पण जैसी पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी हैं, जो उनके लेखन को और अधिक विश्वसनीय तथा प्रभावी बनाती हैं।

बीज शब्द: इंद्रधनुष, संघर्ष, जिजीविषा, संवेदना, आशा, जीवन-दर्शनमूल्य आदि । 

विषय-विस्तार:  लेखक ने जीवन को धूप और छाँव का खेलमाना है। जीवन में सुख-दुःख, संघर्ष-प्राप्तियाँ, आशाएँ और निराशाएँ निरंतर साथ-साथ चलती हैं। इन अनुभवों की परतों से ही जीवन का वास्तविक स्वाद और गहराई प्राप्त होती है। जैसे वर्षा के बाद इन्द्रधनुष वातावरण में नया रंग भर देता है, वैसे ही आशा-भरी दृष्टि जीवन को नया दृष्टिकोण प्रदान करती है। यहाँ यह स्पष्ट होता है कि यह पुस्तक केवल मनोरंजन नहीं करती, बल्कि जीवन-दर्शन भी प्रस्तुत करती है।

विषय-वस्तु और कहानियों की प्रकृति लेखक ने आम जीवन से ली है। कहानियों को लेखक ने अनुभव-संपन्न यात्रा के रूप में प्रस्तुत किया है। इनमें आत्ममंथन, प्रेरणा और गहन चिंतन विद्यमान है। विषय अत्यंत वैविध्यपूर्ण हैं। एक युवती की मनोदशासंवेदनशील स्त्री-केन्द्रित कहानी है, जिसमें नायिका प्रेम में पड़कर घर छोड़कर अकेले प्रेमी द्वारा दिए गए पते पर पहुँचने का प्रयास करती है, किंतु ट्रेन-यात्रा के दौरान कथानायक उसके बहके हुए कदमों को सही राह पर ले आता है। इस प्रकार लेखक ने आदर्शवाद की प्रतिष्ठा करते हुए इस कहानी को प्रस्तुत किया है।वे कहते हैं-’प्यार समर्पण माँगता है जिसमें इंसान सबसे पहले स्वयं को समर्पित करता है जैसे कि तुमने किया, परंतु क्या ऐसा समर्पण तुम्हारे दोस्त ने दिखाया |’(पृष्ठ-18)

मेरी खता क्या है?’ कहानी में लेखक ने मूल्यहीन समाज के कटु दृश्य प्रस्तुत किए हैं| ईरान में अनैतिक व्यवहार के नाम पर दो स्त्रियों को क्रूरतापूर्ण पत्थर मारकर मृत्युदंड दिए जाने की घटना को केंद्र में रख कर इस कहानी के ताने-बाने को संवेदना के धरातल पर प्रस्तुत किया गया है | मानव के जीवन-मूल्यों की सारी सीमाएँ तोड़ते हुए माँ स्वयं अपनी मासूम पुत्री को जिस्मफरोसी में धकेल देती है | स्त्री तस्करी के अमानवीय स्वरूप को चित्रित करते हुए कथानायिका आलिया के दर्द को इन शब्दों में व्यक्त किया गया है-’आपा, मेरी खता क्या है, मेरा कसूर क्या है? मैं तो ता-जिंदगी वही करती रही जो मेरी अम्मी ने कहा, अब्बू ने चाहा | न करती तो अम्मी बहुत मारती थीं, खाना भी नहीं देती थीं और जब माना तो....’(पृष्ठ-31)

 मंजिल दूर नहींके माध्यम से लेखक ने आदिवासी महिला सशक्तिकरण को केंद्र में रख कर कहानी को आदर्श के धरातल पर लिखा है | आदिवासी स्त्री लाढ़ कुँवर को आरक्षण के कारण सरपंच बनाकर उसका पति तथा गाँव के तहसीलदार मिलकर गैरकानूनी कार्यों के माध्यम से लाभ कमाते हैं | लेकिन मार्गेट और हाकिंस की प्रेरणा से लाढ़ कुँवर पूरे समर्पण के साथ सरपंच की जिम्मेदारियों को स्वयं निभाते हुए आदिवासी गाँव को विकास के राह पर आगे लेकर चलती है |

            फोन--फ्रेंडजैसी आधुनिक जीवनशैली से जुड़ी कथा, “नोटबंदीतीसरे विश्वयुद्ध की आहटजैसी सामाजिक-राजनीतिक दृष्टियुक्त कहानियाँ पाठकों को अपने आम जीवन की समस्याओं में खींचती है। साथ ही, इनकी कहानियों में दैनिक जीवन की व्यावहारिक समस्याएँ और हास्य-व्यंग्य भी सम्मिलित हैं। इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि यह संग्रह केवल भावुकता में नहीं बहता, बल्कि यथार्थ से गहरे जुड़ा हुआ है।

सुरेन्द्र मिश्र के लेखन की विशेषताओं में उनकी हृदय से लिखी गई संवेदनशील कहानियाँ प्रमुख हैं। कहानियों की भाषा सरल, सहज और संवादात्मक प्रतीत होती है। प्रत्येक कहानी जीवन की सच्चाईको उद्घाटित करती है और पाठक को आत्ममंथन के लिए बाध्य करती है। इनमें न केवल पीड़ा और संघर्ष है, बल्कि जीवन को देखने का एक नया दृष्टिकोण भी निहित है।

कहानी-संग्रह का साहित्यिक महत्त्व निश्चित रूप से चिरस्थायी है। यह पुस्तक आधुनिक हिन्दी साहित्य में अनुभवजन्य कहानियों का एक महत्त्वपूर्ण संग्रह है। इसमें भावुकता और यथार्थ का संतुलन दिखाई देता है। जीवन-दर्शन, सामाजिक सरोकार और मानवीय रिश्तों की जटिलताओं को एक ही छत के नीचे समेटा गया है। यह कथा-संग्रह लेखक की बीस वर्षों की साहित्यिक और सामाजिक यात्राओं का दस्तावेज़ प्रतीत होता है। इसमें जीवन के विविध रंगविषाद, गहनता, परिचय-अपरिचय, धैर्य और संघर्ष आदिको मार्मिक ढंग से चित्रित किया गया है। लेखक ने गाँव और शहर, अतीत और वर्तमान, सुख और दुःख के द्वंद्व को बड़ी सहजता से कथा के रूप में प्रस्तुत किया है।

लेखक का दृष्टिकोण केवल घटनाओं का बयान करना नहीं है, बल्कि उनके पीछे छिपे जीवन-सत्य और मानवीय संवेदनाओं को उद्घाटित करना है। प्रत्येक कहानी पाठक को भीतर तक झकझोरती है और आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करती है। यही विशेषता इस संग्रह को साधारण कहानी-संग्रह से अलग बनाती है।

इस संग्रह की कथाएँ पाठक को हँसाएँगी भी और रुलाएँगी भी। कभी वे गुज़रे हुए समय की याद दिलाकर संवेदनशील बना देंगी, तो कभी वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों पर गहरी टिप्पणी करेंगी। इनका सौंदर्य यह है कि इनमें कृत्रिमता नहीं है; बल्कि जीवन के स्वाभाविक अनुभवों की सहज अभिव्यक्ति है।

भूमिका में प्रयुक्त धूप-छाँव और इन्द्रधनुषका रूपक विशेष रूप से आकर्षक है। यह रूपक संकेत देता है कि मानव-जीवन केवल संघर्षों और दुःखों से ही नहीं भरा है, बल्कि उसमें आनंद, रंग और आशा का इन्द्रधनुष भी निहित है।

इस संग्रह में सामाजिक, व्यक्तिगत, राजनीतिक और भावनात्मकसभी आयामों को स्पर्श करने का प्रयास किया गया है। इसमें सत्रह कहानियाँ सम्मिलित हैं, जिनके शीर्षक ही पाठक को आकर्षित करते हैं। यह पुस्तक समकालीन जीवन के विविध पक्षों को प्रस्तुत करती है। मन की आस”, “एक युवती की मनोदशा”, “मेरी ख़ता क्या है?” और तुम मुझे समझते क्यों नहींजैसे शीर्षक मानव मन की गहन संवेदनाओं, रिश्तों की जटिलताओं और जीवन की भावनात्मक पीड़ा को उजागर करते हैं। दूसरी ओर नोटबंदी”, “राजतंत्र में नया उद्योग”, “तीसरे विश्वयुद्ध की आहटजैसे निबंध राजनीति, अर्थव्यवस्था और वैश्विक परिप्रेक्ष्य से जुड़े गंभीर मुद्दों पर विचार-विमर्श प्रस्तुत करते हैं।

लेखक ने सामाजिक यथार्थ और व्यक्तिगत अनुभवों के बीच ऐसा संतुलन साधा है कि पाठक एक ही पुस्तक में आत्मकथात्मक संवेदनाओं से लेकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय चिंतन तक की यात्रा कर लेता है। फोन-ए-फ्रेंड”, “भँवर”, “मैडम, आप मेकअप क्यों नहीं करती?” जैसे शीर्षक आधुनिक जीवन-शैली, सामाजिक मान्यताओं और बदलते जीवन-मूल्यों की ओर संकेत करते हैं।

Bottom of Form

    लेखन-शैली का अनुमान शीर्षकों से ही लगाया जा सकता है, जो सरल, संवादात्मक और पाठक को सीधे छू लेने वाली है। प्रत्येक विषय समकालीन समाज की किसी न किसी विडंबना, समस्या या आकांक्षा को उद्घाटित करता है। विधि का विधानकहानी में अविनाशउर्मिला के प्रेम और उनके जीवन की त्रासदी के माध्यम से मानवीय सोच के विडंबनात्मक पहलू पर ध्यान केंद्रित किया गया है। किसी दूसरी लड़की में अपनी दिवंगत बेटी की छवि देखकर उससे बात करने के लिए उत्सुक अविनाश को जब उसी लड़की से झिड़की मिलती है, तो वे ग्लानिभाव से वशीभूत होकर सदमे के कारण मृत्यु की गोद में पहुँच जाते हैं।

पतिपत्नी के संबंधों की गहनता मानव-सृष्टि में एक पहेली-सी है, जहाँ प्रायः एक-दूसरे से यह शिकायत रहती है कि वे आपस में एक-दूसरे को नहीं समझते। तुम मुझे समझते क्यों नहींऐसी ही एक कहानी है, जहाँ राजन और रजनी अपनी आयु के सातवें दशक में शिकायतों की चिट्ठी के माध्यम से एक-दूसरे के प्रति अपने भाव व्यक्त करते हैं। पत्रात्मक शैली में लिखी गई इस कहानी को पढ़ते हुए पाठक स्वयं के जीवन से जुड़े बिना नहीं रह पाता।

लेखक मानव-जीवन की बहुआयामी मानसिक स्थितियों को अपनी राजनीतिक विषय-युक्त कहानी तीसरे विश्वयुद्ध की आहटके माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। साथ ही इस कहानी में उनके डिजिटल ज्ञान का भी परिचय मिलता है, जिसमें अमेरिका, चीन, हमास, इज़राइल, फ़िलिस्तीनी आदि देशों की राजनीतिक और तकनीकी स्थितियों का उल्लेख है। इस कहानी में लेखक ने रिपोर्टिंग-शैली का प्रयोग किया है।

सुरेन्द्र मिश्रा की कहानियों में विषय-वैविध्य के अंतर्गत व्यक्तिगत पीड़ा से लेकर वैश्विक संकट तक का विस्तार देखा जा सकता है। कहानियों में नोटबंदी, वैश्विक युद्ध जैसी तात्कालिक घटनाओं पर विमर्श उन्हें समकालीन संदर्भों से जोड़ता है। उनकी प्रत्येक कहानी के केंद्र में मनुष्य और उसकी जिजीविषा है। साथ ही कहानियों के आकर्षक शीर्षक पाठक को पढ़ने के लिए उत्सुक करते हैं।

उपसंहार

यह पुस्तक मात्र कहानियों का संग्रह नहीं, बल्कि जीवन के बहुआयामी अनुभवों की झलक है। इसमें व्यक्तिगत संवेदना, सामाजिक यथार्थ और भविष्य की आशाएँ, तीनों का सुंदर समन्वय है। लेखक ने अपने अनुभव, संवेदनशीलता और व्यंग्यात्मक दृष्टि से इसे समृद्ध किया है। निस्संदेह, यह कृति पाठकों को मनोरंजन के साथ-साथ आत्ममंथन और चिंतन के लिए प्रेरित करती है। यह पुस्तक न केवल पाठक का मनोरंजन करती है, बल्कि उसे सोचने और आत्ममंथन के लिए भी प्रेरित करती है। इसमें जीवन की व्यथा, संघर्ष, हास्य, व्यंग्य और भविष्य की आशा आदि सब कुछ समाहित है। यह संग्रह आधुनिक भारतीय समाज की नब्ज़ को छूने वाला और चिंतन-उत्तेजक कृति प्रतीत होती है। समग्र रूप से, यह कथा-संग्रह लेखक की साहित्यिक परिपक्वता और मानवीय सरोकारों का उत्कृष्ट प्रमाण है। यह न केवल मनोरंजन करता है, बल्कि पाठकों को गहन चिंतन और संवेदनशीलता से भी जोड़ता है।

संदर्भ सूची

1.      मिश्र, सुरेंद्र. धूप-छाँव और इन्द्रधनुष (कथा-संग्रह), अस्तित्व प्रकाशन,नई दिल्ली, 2025

2.      मिश्र, सुरेंद्र. “दर्पणपत्रिका में प्रकाशित पूर्ववर्ती रचनाएँ

3.      मधुरेश, "हिंदी कहानी का विकास, प्रकाशन, लोक भारती,2018 

4.      कमलेश्वर, नई कहानी की भूमिका, राजकमल प्रकाशन, 2020

5.      चतुर्वेदी, रामस्वरूप, हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास, लोकभारती प्रकाशन, 2005 

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डॉ.सुषमा देवी

एसोसिएट प्रोफेसर

हिंदी विभाग

बद्रुका कॉलेज

हैदराबाद-27, तेलंगाना


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