वर्तमान युग में
बौद्धधर्म की प्रासंगिकता
डॉ. राजकुमार
शांडिल्य
महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व नेपाल
स्थित लुम्बिनी में वैशाख पूर्णिमा को राज परिवार में हुआ था। इनका बचपन का नाम
सिद्धार्थ था। वे बौद्ध धर्म के संस्थापक दार्शनिक धर्मगुरु थे। इन्हें सृष्टि के
पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु का नौवाँ अवतार माना जाता है। इन्होंने विश्वमित्र
के पास वेद उपनिषद की शिक्षा प्राप्त की। राजकाज, युद्धविद्या, कुश्ती, घुड़दौड़,
धनुर्विद्या तथा रथ हाँकने में भी प्रवीणता प्राप्त की।
बचपन
में भी यह गम्भीर ही थे बच्चों की तरह चञ्चल नहीं थे। इनके मन में विरक्तभाव को
देखकर पिता ने इन्हें विवाह बंधन में बाँध दिया। इनकी पत्नी का नाम यशोधरा और
पुत्र का नाम राहुल था। "प्रत्येक मनुष्य के जीवन में दुःख तथा तथा मृत्यु
निश्चित है" इस तथ्य से इन्होंने दुःखों के कारण और उनके निवारण को जानने के
लिए गृहस्थ जीवन त्यागकर भ्रमणशील तपस्वी
का जीवन आरम्भ किया। घोर तपश्चर्या से 35 वर्ष की आयु में बोधगया में बोधिवृक्ष के
नीचे इन्हें बुद्धत्व(ज्ञान) की प्राप्ति हुई।
इनकी
शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का विकास हुआ। बौद्ध धर्म के अनुसार हम सभी घृणा लालच,
अज्ञानता द्वारा बनाए भ्रम के कोहरे में रहते हैं। वे सभी को अपने ज्ञान और अनुभव
से स्वयं प्रकाश प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं। दुःख इच्छा से आता है, इच्छा
और दुःख के चक्र से बचकर निर्वाण प्राप्त होता है। निर्वाण प्राप्ति के लिए ध्यान,
ज्ञान और नैतिकता की आवश्यकता होती है। आत्म ज्ञान प्राप्ति के लिए ध्यान और साधना
जरूरी है। सत्य, अहिंसा, अस्तेय और संयम पर इन्होंने विशेष बल दिया है। शान्ति का
सन्देश मानवता के लिए जीवन मन्त्र है। इन्होंने आत्मश्लाघा और दूसरों से ईष्या न
करने का भी सन्देश दिया है।
हमारे
ऋषियों ने तपश्चर्या से सत्य, अहिंसा, अस्तेय और सदाचार जैसे जीवन मूल्यों और
मानवीय उच्चादर्शों की स्थापना की है। सत्य से बढ़कर तप नहीं है और वह कभी छिप
नहीं सकता है। मन, वाणी और कर्म से किसी प्राणी को पीड़ा पहुँचाना हिंसा कहलाता
है। हिंसा के त्याग से समाज में सद्भावना बढ़ती है। धन सम्पदा के संग्रह की
लालसा, सत्ता की लालसा, भोगों की लालसा सभी पाप कर्मों का मूल है। लोभ त्याग से ही
मनुष्य अस्तेय का मार्ग चुन सकता है। इन्द्रियों पर संयम न होने से मनुष्य
व्यभिचार के पथ पर चलता है और चरित्र के पतन के कारण नष्ट हो जाता है।
वर्तमान
युग में मनुष्य भौतिकता की दौड़ में नैतिकता का त्याग कर रहा है असत्य भाषण से
धनार्जन में लगा रहता है। जिह्वा के वश में होकर वह जीवों का माँस भक्षण और अखाद्य
पदार्थों के सेवन, मदिरापान से प्रसन्न होता है। लोभ के वश में होकर लूट, चोरी को
भी त्याज्य नहीं समझता है वह पापकर्मों को नहीं पहचानता है। विषयों के भोग, तृष्णा
और लोभ में संयम का त्याग करने से दुराचारी मनुष्य अनेक रोगों का शिकार हो जाता
है।
आज
आत्म ज्ञान के लिए ध्यान और साधना से आत्मोन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ना, अपना दीपक
स्वयं बनना, तृष्णा से बचना, विश्व में युद्ध की विभीषिका से मानव को बचाना, मादक
पदार्थों के सेवन में लगे युवावर्ग तथा देश को बचाने के लिए महात्मा बुद्ध का
शान्ति का सन्देश और जीवन दर्शन सर्वाधिक प्रासंगिक और बहुमूल्य है।
डॉ. राजकुमार शांडिल्य
हिन्दी प्रवक्ता
एस. सी. ई. आर. टी. चंडीगढ़
#1017 सेक्टर 20-बी
चण्डीगढ़ 160020
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