प्रीति अग्रवाल
1.
देखो बचना
खुदगर्ज़ ज़माना
धोखा न खाना।
2.
थोड़ी बहुत
खामियाँ हैं सबमें
खूबियाँ गिनो!
3.
बेच रहा है
थोड़ा थोड़ा आदमी
रोज़ खुद को।
4.
भेड़ियें कई
अपनो के भेष में
छुपे हैं यहाँ।
5.
साथी न संगी
सोशल मीडिया पे
पंगत लम्बी!
6.
मन बेचारा
घुटता कब तक
रोया जी भर।
7.
राह बुहारी
पलकों से अपनी
तुम न आए।
8.
तुम ही हो न
जो रात सपने में
आते, जगाते?
9.
कह न पायी
बेरुखी तुम्हारी मैं
सह न पायी।
10.
मैं चुप रही
प्रभु क्या तुम ने भी
चुप्पी न सुनी?
11.
सिले हैं घाव
यादों, मत कुरेदो
खुल जाएँगे।
12.
महकी बूँदें
माटी से जो मिली
सौंधी खुशबू।
13.
रात्री ये घोर
निःसन्देह लाएगी
उजली भोर!
14.
प्रेम की बूटी
भर रही है घाव
नए पुराने।
-0-
प्रीति
अग्रवाल
कैनेडा
सुन्दर हाइकु सृजन । हार्दिक बधाई प्रीति अग्रवाल जी ।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार विभा रश्मि जी, आपने समय निकाल कर रचनाएं पढ़ी, सराही!!
जवाब देंहटाएंLovely
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार!!
हटाएंBahut sunder
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद वनिता जी!
हटाएंपत्रिका में स्थान देने के लिए आदरणीया पूर्वा जी का हृदयतल से आभार!!
जवाब देंहटाएंभाव जगत के द्वंद्व को चित्रित करते सुंदर हाइकु, हार्दिक बधाई प्रीति जी
जवाब देंहटाएंवाह । सभी हाइकु एक से बढ़कर एक हैं । हार्दिक बधाई स्वीकारें प्रीति ।सविता अग्रवाल “सवि “
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