शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

कविता

 मनहरण घनाक्षरी


हिंदी भाषा

 

मालिनी त्रिवेदी पाठक

प्यारी हिंदी राजभाषा,

बने शीघ्र राष्ट्रभाषा,

यही सुर, लय, ताल,

आप भी मिलाइए।

 

हिंदी है दुलारी माता,

हिंदी गुरु ज्ञान दाता,

हिंदी भाषा का सम्मान,

आप भी बढ़ाइए।

 

बंध द्वार तोड़ कर,

वातायन खोल कर,

हिंदी भाषा के पंछी को,

उन्मुक्त उड़ाइए।

 

हिंदी में हो भाषा कर्म,

शुद्ध हिंदी मानो धर्म,

हिंदी शब्द समिधा से,

यज्ञ करवाइए।

*** 



मालिनी त्रिवेदी पाठक

वड़ोदरा, गुजरात


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