जीवन में ठहराव
मीनू बाला
जीवन में थोड़ा
ठहराव अब मुझे अच्छा लगता है,
अपने आप से
बातें करना अब मुझे अच्छा लगता है।
ऐसा लगता है
भाग दौड़ करते-करते थक चुकी हूँ
आसमान को छूना
चाहती हूँ परंतु धरती से लगाव अब मुझे अच्छा लगता है।
बचपन में मॉं
ने चलना सिखाया था, उँगली पकड़कर
आगे बढ़ाना सिखाया था
गिरोगी तो कोई
बात नहीं, फिसलोगी तो भी
कोई घात नहीं
परंतु रुकना मत, थकना मत, चलने का नाम
ही जीवन है
मॉं का वह कथन
अब भी मुझे अच्छा लगता है
जीवन में थोड़ा
ठहराव मुझे अच्छा लगता है।
मैं भागती नहीं
अब भी अपनी जिम्मेदारियों से,
सुलझाती हूँ हर
चुनौती अपनी कुशलगारियों से
परंतु अपने
अतीत के पलों को संजोना,अब मुझे अच्छा
लगता है,
कभी-कभी
बोलते-बोलते चुप होना अब मुझे अच्छा लगता है,
अब पहुँच चुकी हूँ
जीवन के उस पड़ाव पर ,
जहॉं लोगों की
चुस्त चालाकियॉं समझ जाती हूँ
गलती देखकर भी
ठीक होने की उम्मीद जताती हूँ,
परंतु अब किसी
से बहस ना करना मुझे अच्छा लगता है
जो दिया कइओं
से बेहतर दिया, जो नहीं मिला
वो भी अच्छा किया
हर परिस्थिति
में उसका शुकराना करना अब मुझे अच्छा लगता है।
जीवन में थोड़ा
ठहराव अब मुझे अच्छा लगता है,
अपने आप से
बातें करना अब मुझे अच्छा लगता है।
ऐसा लगता है
भाग दौड़ करते-करते थक चुकी हूँ
आसमान को छूना
चाहती हूँ परंतु धरती से लगाव अब मुझे अच्छा लगता है।
***
मीनू बाला
हिंदी
अध्यापिका
राजकीयआदर्श
वरिष्ठमाध्यमिक विद्यालय
विभाग 39 सी ,चंडीगढ़
अति सुन्दर विचार 🙏🌹
जवाब देंहटाएंअति सुंदर!👌
जवाब देंहटाएंAmazing!
जवाब देंहटाएंBahut khoob
जवाब देंहटाएंExcellent words
जवाब देंहटाएंवास्तव में हृदय स्पर्शी एवं भावभीनी कविता है मीनू मैम जी। बधाई हो आपको यह उपलबधि के लिए।
जवाब देंहटाएंDakna nahi rukna nahi
जवाब देंहटाएंआप सभी की शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंWah
जवाब देंहटाएंAmazing darling
जवाब देंहटाएंजितनी बार पढो, आनंद उत्तर दायित्व भूलें,मां,ईश्वर सब याद आता है.कवियित्री को धन्यवाद उत्तम रचना के लिए
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