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आधुनिक भारतीय ज्ञान-विज्ञान : सरोकार व उपलब्धियाँ
ज्ञान-विज्ञान के विविध विषयों,
तत्संबंधी संदर्भों व स्रोतों की बहुलता से हमारे साक्षात्कार
का दौर। वैसे भारतीय इतिहास का आधुनिक काल
राजनीतिक-सांस्कृतिक दृष्टि से उथल-पुथल का दौर होने के साथ-साथ अन्य कई दृष्टियों
से महत्त्वपूर्ण रहा है। कंपनी सरकार और उसके बाद ब्रिटिश शासन लागू हो गया था। इस
प्रकार ब्रिटिश शासन और सुदृढ़ हो गया था। इसके पूर्व 1801 में कलकत्ते में फॉर्ट विलियम
कॉलेज की स्थापना हो चुकी थी। मैकाले शिक्षा नीति के तहत कलकत्ता यूनिवर्सिटी,
डेकन यूनिवर्सिटी, बनारस यूनिवर्सिटी, बोम्बे यूनिवर्सिटी प्रभृति विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई
और अंग्रेज शिक्षा नीति के कारण भारत में नौकरी पेशा मध्यम वर्ग का उदय हुआ। मध्यम
वर्ग का उदय, औद्योगिकरण, नगरीकरण, अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार प्रसार, मुद्रण कला का विकास, गद्य का प्रचार प्रसार, पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन। इन सबके साथ साथ ब्रह्मसमाज,
प्रार्थना समाज, आर्य समाज, थियोसोफिकल सोसायटी जैसी संस्थाओं का उदय हुआ। जिसके कारण
सामाजिक,
धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक जीवन में एक नई चेतना का संचार हुआ। आधुनिक काल
के अग्रदूत राजा राममोहन राय, केशवचंद्र सेन, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती, पंडित रमाबाई, ज्योतिबा फुले, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी, बाबा साहब आंबेडकर जैसे महानुभावों के प्रयत्नों से
सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से युग एक नई करवट लेता है।
आधुनिक काल के प्रारंभ में पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान से
हमारा संपर्क, भारतीय-पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान की मूल पहचान तथा भारतीय ज्ञान-विज्ञान की
प्रगति के बारे में डॉ. बच्चन सिंह लिखते हैं – “18 वीं शताब्दी के अंत में इस देश
को जिस पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान के संपर्क में आना पड़ा वह भारत के ज्ञान-विज्ञान
से प्रकृति में ही भिन्न था। भारतीय ज्ञान गतानुगतिक और परंपरा युक्त हो चला था।
पाश्चात्य ज्ञानविज्ञान नए संदर्भों की ताजगी लिए हुए था। भारतीय ज्ञान विज्ञान का
लक्ष्य आध्यात्मिक और पारलौकिक था तो पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान का लक्ष्य भौतिक और
इहलौकिक । इस देश की विद्या वर्ग या जाति विशेष तक थी पर पाश्चात्य विद्या सर्व
सुलभ थी। फिर भी ज्ञान-विज्ञान के अनेक क्षत्रों में इस देश ने अभुतपूर्व प्रगति
की थी – दर्शन, ज्योतिष, गणित, औषधि, विज्ञान, धर्मशास्त्र, काव्य शास्त्र, व्याकरण आदि में इसकी जोड़ का कोई अन्य देश नहीं था।” (आधुनिक
हिन्दी साहित्य का इतिहास, बच्चन सिंह, पृ. 19)
आधुनिक काल में भी आध्यात्मिक- दार्शनिक,
सामाजिक- सांस्कृतिक भारतीय ज्ञान के अंतर्गत यहाँ के कतिपय
महात्माओं की मेधा को दुनिया ने भी स्वीकार किया है। जैसे दयानंद सरस्वती,
रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, श्री अरबिंदो,
रमन महर्षि, स्वामी कुवलयानंद, पंडित श्रीराम शर्मा, श्री श्री रविशंकर, योग गुरु स्वामी रामदेव तथा इसी क्रम में आज भारतभर में
धार्मिक-आध्यात्मिक कई संस्थाएँ हैं, पंथ और संप्रदाय हैं जो भारतीय ज्ञान को अपनी अपनी
विचारधाराओं व विषय क्षेत्रों के अनुसार प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं।
आधुनिक काल-वर्तमान युग मतलब-वैज्ञानिक युग,
संचार क्रांति का युग, ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार का युग । बौद्धिकता और
वैज्ञानिकता की प्रमुखता व प्रचुरता के इस युग में भारतीय ज्ञान चाहे वह पूरी तरह
पारंपरिक हो या युगीन स्थिति-परिस्थिति के अनुसार व्याख्यायित-विवेचित ज्ञान या
आधुनिक मस्तिष्क से उपजा नवीन ज्ञान। चाहे वह ज्ञान व्यक्ति विशेष से जुड़ा हो या
संस्था-समूह के स्तर पर । अकादमिक संस्था से जुड़ा हो या गैरअकादमी। इतना स्पष्ट
है कि आधुनिक ज्ञान में पर्याप्त विषय-वैविध्य है। धर्म,
दर्शन, अध्यात्म, विज्ञान, चिकित्सा, कृषि, साहित्य, समाज, प्रकृति-पर्यावरण आदि से संबंधित इस ज्ञान-विज्ञान ने भी
विश्व में भारत को एक विशेष पहचान दी।
भारतीय ज्ञान परंपरा में आधुनिक काल के पूर्व विशेषतः
प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों व तपस्वियों ने जहाँ मुख्यतः ज्ञान व अध्यात्म की
ज्योति प्रज्जवलित करने के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान के अन्य क्षेत्रों को भी अपनी
प्रतिभा से संपन्न-समृद्ध किया, वही परंपरा विकसित होते हुए आगे बढ़ती है और आधुनिक काल में
धर्म-ज्ञान-दर्शन के साथ-साथ यहाँ अनेकों प्रखर बुद्धि के धनी वैज्ञानिक भी हुए,
जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान व प्रयोग करके
प्राकृतिक व विज्ञान जगत को महत्वपूर्ण उपलब्धियों से लाभान्वित किया। इस तरह
आधुनिक काल में ज्ञानी महात्माओं के साथ-साथ वैज्ञानिकों ने भी समस्त मानव समाज की
प्रगति व विकासक्रम में सर्वोत्तम योगदान दिया, जिनमें – डॉ. जगदीश चंद्र बोस, श्री निवास रामानुजन, डॉ. विक्रम साराभाई, ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, डॉ. सी.वी. रमन, होमी भाभा आदि नाम विशेष रूप से लिए जाते हैं।
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