बुधवार, 30 अक्तूबर 2024

खण्ड-1

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ज्ञान-विज्ञान के अन्य विषय-क्षेत्र

[प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के संदर्भ में ]

प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत में व्यक्त-निरूपित ज्ञान के अतिरिक्त और भी कई ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों से संबंधी ग्रंथों का विशेष अवदान रहा है। योग, आयुर्वेद, व्याकरण, ज्योतिष, खगोल, गणित, कला आदि विषयों में हमारे अनेकों ऋषि-मुनियों, प्रकांड पंडितों, विषय विशेषज्ञों ने अपनी प्रतिभा से भारतीय ज्ञान परंपरा को समृद्धि के साथ अग्रसारित किया।

वैसे तो प्राचीन काल से ही भारतीय ज्ञान परंपरा या भारतीय चिंतन धारा भौतिकता की अपेक्षा आध्यात्मिकता को महत्त्व देती रही है, फिर भी एक वैज्ञानिक दृष्टि भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रारंभ से ही बनी रही है और तत्संबंधी नये नये अनुसंधान-आविष्कार होते रहे हैं।

भारतीय ज्ञान परंपरा की ये भी एक खास बात है कि यहाँ के धार्मिक-दार्शनिक ग्रंथों में भी बड़ी विस्तृत व गहराई से विज्ञान की भी सैद्धांतिक जानकारी उपलब्ध होती है।

भारतीय ज्ञान-विज्ञान संबंधी अन्य विविध अनुशासनों में योग, व्याकरण, वास्तुकला, गणित, खगोल, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति, नीतिशास्त्र, भूगोल, कृषि, व्यापार, वाणिज्य, चिकित्सा, जीवविज्ञान प्रभृति से संबंधी ज्ञान व विशेष जानकारी भारतीय शास्त्रों-ग्रंथों में उपलब्ध है।

‘योग’ जो कि विश्व को भारत की एक महान देन कही जा सकती है। इस क्षेत्र में प्राचीन काल में पतंजलि योग सूत्र तथा हठयोग जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ जिनमें इस विद्या की सुव्यवस्थित - वैज्ञानिक जानकारी दी गई है। दरअसल हमारे प्राचीन ऋषि पतंजलि का नाम विशेषतः दो क्षेत्र – व्याकरण और योगद‌र्शन में प्रसिद्ध है। योगदर्शन के साथ-साथ पतंमलि ने महान वैयाकरण पाणिनी के अष्टाध्यायीकी टीका और व्याख्या को लेकर महाभाष्यनामक महान व्याकरण ग्रंथ लिखा। इस ग्रंथ की विशेषता के बारे में कहा जाता है –“महाभाष्य है तो व्याकरण का ग्रंथ, किन्तु उन्होंने जो बहुत से उदाहरण दिए हैं, उनसे उस समय के चाल-ढाल, रहन-सहन, भूगोल, साहित्य, धर्म, समाज और इतिहास का पता लगता है, और आज हम उस समय की बहुत-सी बातों को जान सकते हैं।” [ हमारे पूर्वज, कृष्णदेव प्रसाद गौड़, पृ. 24]

इसी तरह यहाँ आयुर्वेद-चिकित्सा ज्ञान पद्धति की परंपरा भी प्राचीन काल से बड़ी विकसित रही है। इस विषय में महर्षि चरक जो एक आयुर्वेद विशेषज्ञ थे और उनके द्वारा रचित चरक-संहिता जैसे प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रंथ को हम देखते हैं। असल में प्राचीन भारत में विकसित योग और आयुर्वेद ज्ञान परंपराएँ व पद्धतियाँ जो शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक स्वस्थता प्रदान कर हमारे जीवन में एक संतुलन स्थापित फरती है।

ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में भी प्राचीन ऋषि-मुनियों की प्रतिभा ने विशेष आविष्कार व प्रगति की थी। ग्रहों की गति, उनकी दिशा, उदय-अस्त की गणना इन ऋषि-मुनियों ने बड़ी सूझ बूझ से की है। इस तरह ग्रहों- नक्षत्रों की गति के आधार पर भविष्यवाणी करने की विधि या कहिए विद्या हमारे यहाँ बहुत प्राचीन है।

आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे नाम विशेषतः गणित और खगोलविज्ञान से जुड़े हैं। पाणिनि, यास्क, भर्तृहरि पतंजलि आदि भाषाशास्त्र भाषाविज्ञान-व्याकरण के विशेषज्ञ थे । भरतमुनि और भामह-दण्डी आदि आचार्यों का क्षेत्र विशेषतः नाट्यशास्त्र - काव्यशास्त्र था ।

नीतिपरक तथ्य व उपदेश की भी भारतीय ज्ञानपरंपरा में बड़ी महत्ता रही है। वेद, पुराण, रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों में नीति संबंधी ज्ञान, प्रचुर मात्रा में मिलता है। संस्कृत के और भी कई ग्रंथ जो कि विशेष रूप से नीतिग्रंथ ही हैं। जैसे भतृहरि का नीतिशतक साथ ही अन्य कई सुभाषितों तथा चाणक्यनीति आदि में नीतिवचनों का आधिक्य है।

सेना संगठन, राज्यकला, युद्ध, कूटनीति जैसे विषयों की जानकारी भी पर्याप्त मात्रा में प्राचीन भारतीय ज्ञान साहित्य में प्राप्त होती है।

अखंड भारत के निर्माण के उद्देश्य से कार्यरत और चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री या कहिए गुरु चाणक्य अर्थनीति और राजनीति के महान विद्वान थे, जो कौटिल्य के नाम से भी जाने जाते हैं। अर्थशास्त्र उनके द्वारा रचित संस्कृत का प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसमें राज्यव्यवस्था- कृषि, न्याय एवं राजनीति के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है। “ मौर्यवंश के इतिहास-लेखन हेतु चाणक्य के अर्थशास्त्र को एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है। सैन्य राजनीति के बारे में कौटिल्य द्वारा बताए गए सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस समय थे, जब वे लिखे गए थें।” (वेबसाइट)  

रसायन शास्त्र या रसायन विज्ञान भी भारतीय ज्ञान-विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा रही है जो वैदिक काल से लेकर वर्तमान तक विद्यमान है। प्राचीन काल में अथर्ववेद में प्राप्त इस विद्याशाखा संबंध विविध संदर्भों को एकत्र कर व्यवस्थित रूप से पुस्तक रूप में भारतीय विद्वान आचार्य प्रफुल्ल चन्द रे ने प्रकाशित किया। उनकी इस पुस्तक का शीर्षक है – द हिस्ट्री ऑफ केमिस्ट्री इस पुस्तक को रसायन शास्त्र के भारतीय स्वरूप का आधारभूत गंथ माना जाता है।  “इस ग्रंथ में लेखक ने प्राचीन काल से अबतक रसायन शास्त्र की विकास प्रक्रिया को क्रमबद्ध रेखांकित किया है। पहले चरण में वैदिक काल का रसायन शास्त्र है, जिसके अंतर्गत ऋग्वेद से लेकर अथर्ववेद तक में वर्णित रसायनों का वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक की प्रस्तावना के प्रथम अध्याय में किया है।” (वेबसाइट)  

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