अनंत चतुर्दशी 2024
सुरेश चौधरी
अनंत चतुर्दशी अर्थार्थ भगवान विष्णु के अनंत रूप की आराधना
का दिन है। अनंत चतुर्दशी का हिंदू धर्म के ग्रंथों में विशेष महत्व है। यह दिन
भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा के लिए समर्पित है। पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों
में इसका वर्णन विस्तार से मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की
जाती है,
और अनंत सूत्र (एक विशेष प्रकार का धागा) को धारण करने का
महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि इस धागे को धारण करने से व्यक्ति के जीवन से
सभी समस्याएँ समाप्त होती हैं और सुख-समृद्धि आती है।
आज ही के दिन कहते हैं गणेश जी ने महाभारत का लेखन पूर्ण कर
अपने ऊपर दस दिनों के अथक परिश्रम के चलते हुए स्वेद कण धूल कण से निवृति लेने
हेतु जल में स्नान कर उन्हें विसर्जित किया था अतः गणेश विसर्जन मनाया जाता है
जबकि यह विसर्जन उनके मैल का है।
महाभारत के अनुसार, पांडवों के वनवास के समय भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को
अनंत चतुर्दशी का व्रत करने का उपदेश दिया था। उन्होंने बताया कि इस व्रत को करने
से सभी कष्टों का नाश होता है और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
"अनंत" शब्द वेदों में भगवान के अनंत और असीमित स्वरूप का प्रतीक है।
भगवान विष्णु को उनके अनंत रूप में आदिकाल से माना गया है। वेदों में भगवान को
निराकार,
अनादि, और अनंत कहा गया है, जो इस बात की पुष्टि करता है कि ईश्वर का स्वरूप सीमाओं से
परे है।
ऋग्वेद और यजुर्वेद जैसे ग्रंथों में भगवान के अनंत स्वरूप
की महिमा गाई गई है। इस दृष्टिकोण से, अनंत चतुर्दशी एक धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है,
जो बाद के काल में पुराणों और अन्य धर्मग्रंथों के माध्यम
से विकसित हुआ है।
मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु ने 14 लोकों की रचना के बाद इसके सरंक्षण और पालन के लिए चौदह
रूप में प्रकट हुए थे और अनंत प्रतीत होने लगे थे, इसलिए अनंत चतुर्दशी को 14 लोकों और भगवान विष्णु के 14 रूपों का प्रतीक माना गया है।
ज्योतिषों के अनुसार अनंत सूत्र की चौदह गाठें भूलोक,
भुवलोक, स्वलोक, महलोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल,
सतल, रसातल, तलातल,
महातल, और पताल लोक का
प्रतीक है।
जैन कैलेंडर के उत्सवों में यह एक महत्वपूर्ण दिन है। जैन
भादो महीने के आखिरी 10 दिनों में पर्युषण पर्व मनाते हैं- दिगंबर जैन दस दिन तक दस लक्षण पर्व मनाते
हैं और चतुर्दशी (जिसे अनंत चौदस भी कहते हैं) दसलक्षण पर्व का आखिरी दिन होता है।
क्षमावाणी , वह
दिन जब जैन जानबूझकर या अनजाने में की गई गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं,
अनंत चतुर्दशी के एक दिन बाद मनाई जाती है। यह वह दिन है जब
वर्तमान ब्रह्मांडीय चक्र के 12वें तीर्थंकर वासुपूज्य ने निर्वाण प्राप्त किया था।
आईये परम ईश की आराधना में यह वन्दना पढ़ें।
नमन नमन आपको, हे सृष्टि की सजग रचनाकार
आप ही ईश्वर
ब्रह्माण्ड मध्य,
प्रकृति-त्रय गुणाकार
प्रत्यक्ष
सृष्टा स्वप्नातित परम
नियामक पृथककार
अप्रतिम परम ब्रह्म
आदिरूप निराकार साकार
अक्षय अक्षर अमर
अनादि अनंत अभिराम
ईश्वर
हे गोलोक स्वामी
सर्व साधक शरण
देह नश्वर
श्वेत वस्त्र प्रसन्न
बदन चंद्र वर्ण
चतुर भुज स्वामी
विस्तारक
स्थावर स्थायी विश्व
प्राण अंतर्यामी
हो मनःप्रसाद देख
आमुख, शेशशैया विभूषित
सुरपति,
पद्मनाभ, जगदाधार, मेघवर्ण,
गगन स्थित
रमापति,
रमेश, राजीव, लोचन, छवि-मनोहर
चित्त
हे त्रिभुवन स्वामी
भयहर, कोटि शीश हो
नतश्रीत
हे विश्वात्मा, जन्म-मरण के
बंधन से आप हैं मुक्त
प्रादुर्भाव
होता जन कल्याण
हेतु, जब जग
सुप्त
करे सब कुछ
आप ही,
आप ही साक्षात्
कालयुक्त
निरंतर मनन,
चिंतन, पूजन कर दिव्य
रूप संयुक्त
जयति अविकारी शुद्ध
नित्य परमात्मन श्री हरि विष्णु
काम क्रोध मद मोह लोभ अहंकार विजित प्रभु जिष्णु
ॐ नमो भगवते
वषटकार भूत भव्य
भवत प्रभो
ॐ नमो परम
पुरुष अमोघ पुंडरीकाक्ष
निरत प्रभो
सुरेश चौधरी
एकता हिबिसकस
56 क्रिस्टोफर रोड
कोलकाता 700046
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