भोजपुरी
लोकगीत
(1)
गाँधी
के आइल जमाना देवर जेलखाना अब गइले
जब
से तपे सरकार बहादुर, भारत मरे बिनु दाना ।।१।।
देवर
जेलखाना.
हाथ
कथकड़िया बा गोड़वा में बेड़िया;
देसवा
भरि होइल दिवाना ।।२।।
देवर
जेलखाना.
इज्जत
राखि लेहु भारत मइया;
चरखा
चलाबहु मसताना ।।३।।
देवर
जेलखाना.
कमला,
सरोजिनी, विजय के लछमी;
काम
कइली मरदाना ।।४।।
देवर
जेलखाना.
(भोजपुरी
लोक-गीत, डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय, पृ- ३३५
से साभार)
(
शब्दार्थ: जमाना- समय,
गइले- जाना होगा, गोड़वा-पैर, दीवाना-पागल, मसताना-मस्त या लीन )
(2)
होइ
गइले कंगाल हो विदेसी तोरे रजवा में ।। टेक ।।
सोनवा
के थाली जहवाँ जेवना जेवत रहली ।
कठवा
के डोकिया के होइ गइल मुहाल हो ।।१।।
विदेसी.
भारत
के लोग आज दाना बिना तरसै भइया ।
लन्दन
के कुत्ता उड़ावे माजा माल हो ।।२।।
विदेसी.
आवे
असोक,
चन्द्रगुप्त हमरे देसवा में ।
लोरवा
बहाने देखि तोहरो हवाल हो ।।३।।
विदेसी.
जुग
जुग जीयसु हमार गाँधी, जवाहर ।
जे
दूर करले मोर गरीबन के हाल हो ।।४।।
विदेसी.
(भोजपुरी
लोक-गीत, डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय, पृ- ३३८
से साभार)
(
शब्दार्थ: कंगाल- अत्यन्त गरीब,
रजवा- राज्य, डोकिया- काठ का बना हुआ छोटा कटोरा,
मुहाल- दुर्लभ,
दाना-
अन्न, माजा- आनंद ( सुंदर भोजन),
लोरवा- आँसू, हवाल-दुर्दशा, जीयसु- जीते रहें, जे- जो )
(3)
“
गाँधी के लड़इया नाहीं जीतबे फिरंगिया,
चाहे
करु कतनो उपाई
भल
भल मजवा उड़वले एहि देसवा में,
अब
जइहें कोठिया बिकाई । ”
(भोजपुरी
लोकसाहित्य: सांस्कृतिक अध्ययन, दृष्टव्य : श्रीधर
मिश्र, पृ- २१० से
साभार)
(भावार्थ: ‘ हे फिरंगी ! कितने भी उपाय करो,
तुम गाँधी की लड़ाई नहीं जीत सकते । तुमने इस देश में खूब मज़े उड़ाये
। अब तुम्हारी कोठियाँ बिक जायेंगी ।)
(4)
झंडा
तीन रंग के भारत में फहरात बा
देखे
में सुहात बा ना
बम्बई,
दिल्ली ओ कलकत्ता,
सगरे
फहरत बा पताका,
घर
घर गीत खुसी के
भारत
में सुनात बा, देखे सुहात बा ना ।
(भोजपुरी
लोकसाहित्य: सांस्कृतिक अध्ययन, श्रीधर मिश्र, पृ- २१२ से साभार )
संदर्भ
ग्रंथ:
१. डॉ.कृष्णदेव उपाध्याय,
भोजपुरी लोक-गीत, प्रकाशक : हिन्दी साहित्य
सम्मलेन, प्रयाग, तृतीय संस्करण : १९९९
२. श्रीधर मिश्र,
भोजपुरी लोकसाहित्य: सांस्कृतिक अध्ययन प्रकाशक :हिन्दुस्तानी
एकेडेमी,इलाहाबाद , प्रथम : संस्करण
१९७१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें