हिंदी के चंद रचनाकारों में एक प्रेमचंद
डॉ. धीरजभाई वणकर
कथा शिल्पी, गरीबों, शोषितों के मसीहा प्रेमचंद का जन्म 31जुलाई 1880 को बनारस जिले के लमही
नामक गाँव में हुआ था । उनकी तुलना शरतचंद्र, टाल्सटाय, गोर्की एवं लूशुन जैसे महान साहित्यकारों के साथ की जाती है।
पिता अजायब लाल ने उनका बचपन का नाम। धनपतराय
रखा था। किंतु घर में प्यार से सभी
लोग नवाबराय कहते थे। उनकी
माता का नाम आनंदीदेवी था तथा पत्नी का नाम शिवरानी देवी था। पढाई
के दौरान उन्होंने अंग्रेजी के साथ उर्दू का भी गहन अध्ययन किया। उन्हें अपनी
प्रतिभा के आधार पर मिडल स्कूल में
हेडमास्टर की नियुक्ति मिली। तत्पश्चात
पदोन्नति हमीरपुर जिले के प्राथमिक शिक्षा विभाग में इंस्पेक्ट पद पर हुई। प्रेमचंद
ने अपनी साहित्यिक प्रतिभा एवं अनुभव के आधार
पर साहित्य तथा लेखन क्षेत्र में
नये प्रतिमान स्थापित किये थे। एक
कहानीकार के रूप में उन्होंने चार सौ से
अधिक कहानियाँ लिखी, जो 'मान सरोवर' नाम से आठ खंडों में प्रकाशित हैं। प्रारंभ में रानी
सारन्धा,
राजा हरदौल, विक्रमादित्य
का तेगा -जैसी कहानियाँ लिखी गई थी। राष्ट्रीयता
से ओतप्रोत ' सोजेवतन'
कहानी संग्रह में
पराधीनता की विवशता एवं देश-प्रेम का
संदेश निहित था। सोजेवतन का अर्थ है
- देश का दर्द । हिंदी उपन्यास को ऊँचाई पर ले जाने का श्रेय उन्हें जाता है।
इसलिए उन्हें उपन्यास सम्राट से अलंकृत प्रेमचंद ने सेवासदन, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, गबन, वरदान, काया कल्प, प्रतिज्ञा, मंगलसूत्र
(अधूरा)और गोदान आदि उपन्यास लिखें। कर्बला, संग्राम व प्रेम की वेदी उनके नाटक है। प्रेमचंद
ने हंस,
माधुरी ,जागरण पत्रिका का कुशल संपादन किया। वे
समाज सुधार व राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत थे। सामाजिक
और राजनीतिक परिस्थितियों का पूरा प्रतिनिधित्व करते हैं। दरअसल
प्रेमचंद जमीन से जुड़े जागरूक रचनाकार थे।
भारतीय
जीवन की असलियत को निकटता से देखने एवं परखने के कारण ही उन्होंने दीन-दु:खी, दुर्बल, अशिक्षित, रूढ़ियों तथा परंपराओं से जर्जरित, नवयुग के जागरण से अपरिचित समाज का यथार्थ निरूपण करने का प्रयास किया हैं।
गौरतलब कि मुंशी प्रेमचंद का
साहित्य संवेदना से ओतप्रोत है, वेश्याओं की समस्याओं को लेकर,
अनमेल विवाह तथा दहेज को लेकर,
जमींदारी प्रथा की अमानुषिकता को लेकर,
पढ़े- लिखे लोगों को अत्याचारों,छुआ छूत, खोखले धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक आडंबरों का उन्होंने जीवंत चित्रण किया
हैं। 'गोदान'
में मौजी पात्र के
द्वारा कहलवाया है-" मैं भूत की चिंता नहीं करता। भविष्य
चिंता हमें कायर बना देती है, भूत भार हमारी कमर तोड़ देता है। हमारे जीवन की शक्ति इतनी
कम है कि भूत और भविष्य में फैला देने से वह और क्षीण हो जाती है। हम व्यर्थ का
भार अपने ऊपर लादकर रूढ़ियों और विश्वास
तथा इतिहासों के मलबे के नीचे दबे पड़े हैं। उठने का नाम ही नहीं लेते। प्रेमचंद
की संवेदना सतही अखबारी नहीं थी। प्रेमचंद
पर गांधी जी का प्रभाव प्रत्यक्ष और स्पष्ट था। उनकी
'कफन' कहानी बहुत चर्चित सामाजिक विसंगतियों
की यथार्थ परक है। निम्न वर्ग के दो पात्र
घीसू व माधव के द्वारा मोटे- मोटे सेठ- साहूकारों तथा पूंजीपति वर्ग पर करारा व्यंग्य करते है। सामाजिक कुप्रथा पर
लिखते है- "कैसा बुरा रिवाज है कि
जिसे जीते जी तन ढंकने को चीथड़ा भी न मिले ,उसे मरने पर नया कफन चाहिए । "
'पूस की रात' कहानी
में हल्कू अपनी परिस्थितियों के साथ संघर्षरत
हैं। उनकी दुनिया बडी निर्मम ,तलवार की धार जैसी है। ' ठाकुर का कुंआ' कहानी में मानववीय सरोकार की बात है। दलित
जाति की गंगी अपने बीमार पति के लिए शुद्ध
पानी लेने ठाकुर के कुए पर जाती है किंतु
ठाकुर के घर का दरवाजा खुलते ही भागती है। ' दो
बैलों की कथा' में हीरा और मोती
जानवर के माध्यम से - आदमियत की तुलना में जानवर का जानवरपन ज्यादा बहुमूल्य, मानवाधिकार
एवं संवेदनशील है।
'इदगाह' कहानी में हामिद का चिंतन एवं उसके कार्य-कलाप,
उसे सामान्य बालकों से कुछ अलग करता है। हामीद
की समझदारी,वृद्ध
के प्रति आदर ध्यानाकर्षक है। उसे
मेले में खयाल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे
से रोटियां उतारती तो हाथ जल जाता है,अगर वह चिमटा खरीद कर ले जाएगा तो दादी कितनी प्रसन्न होगी। इतना
ही नहीं वह ले जाता है। 'नमक का दारोगा' प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी है जिसमें कथा नायक मुंशी
बंसीधर सिद्धांतनिष्ठ व कर्तव्य पालन में सत्यव्रती है। 'घासवाली' में मुलिया चमार जाति की है,एक दिन सवर्ण युवा चैनसिंह खूबसूरत मुलिया का हाथ पकड़ता है,तब मुलिया का क्रोध उच्च वर्ग के मुखौटा को उघाडने का
काम करता है। '
सद्गति' कहानी में दुखी चमार बेटी की सगाई का .मुहूर्त निकालने के लिए पंडित घासीराम के घर जाता है तो
पंडित बेगारी कराते है। लकडी फाड़ते उसकी मौत हो जाती है,लोग कहने लगे ब्राह्मण का काम करते मरा इसलिए सद्गति हुई।
‘ गोदान'उनका बहुत चर्चित एक युग- प्रवर्तनकारी उपन्यास है, जिसे कृषक समाज का महाकाव्य कहा गया है,जिसमें नायक होरी के जीवन- संघर्ष की दुख भरी गाथा है। 'कर्मभूमि' उपन्यास में मुख्यत:
मध्यमवर्ग की राजनैतिक चेतना,धार्मिक पाखंड, छुआछूत, आर्थिक वैषम्य, पारिवारिक समस्याओं
का चित्रण किया हैं।
'निर्मला' उपन्यास में दहेज प्रथा व अनमेल विवाह की प्रथा को मुखरित किया
है। दहेज
के कारण सोलह वर्षीय निर्मला की शादी दुहाजू मुंशी तोताराम से होती है, आखिर उनकी जिंदगी बर्बाद हो जाती है। यह
उपन्यास आज भी प्रासंगिक है। पुनर्जन्म को लेकर' कायाकल्प ' उपन्यास को लिखा गया है। सेवासदन
एवं 'प्रेमाश्रम' सामाजिक वस्तु प्रधान
उपन्यास हैं।
कलम के सिपाही प्रेमचंद भारतीय आत्मा के साहित्यकार थे। गरीबी
में जीकर गरीबों के लिए लिखकर, गरीबों के मसीहा बनने का श्रेय सर्वप्रथम प्रेमचंद को मिला,क्योंकि हिन्दी साहित्य में उन्होंने पहली बार उन पर कलम
चलाई जो दिन-रात कड़ी मेहनत करके खूब पसीना बहाते है। प्रेमचंद
ने भारतीय मुक्ति संग्राम का समर्थन किया, नारी को अधिकार दिलान का सशक्त प्रयास
किया। संत तुलसीदास के बाद
प्रेमचंद ही ऐसे लेखक थे,
जो सीधे जनता तक पहुँचे थे। प्रेमचंद
हिंदी के ही नहीं बल्कि समग्र भारतीय
साहित्य के महान रचनाकार थे। वे
शोषणमुक्त समतामूलक समाज की स्थापना के सच्चे व पक्के हिमायती थे। प्रसिद्ध लेखक अमृतराय ने सच कहा है- " तुलसी के
बाद प्रेमचंद ही एक ऐसे लेखक हैं, जो सीधे जनता तक पहुँचे हैं और वह भी बिना किसी
धार्मिक आसंग के,जो और भी बडी
बात है। अत: उनके लिए यह बिल्कुल
स्पष्ट है कि प्रेमचंद आज भी प्रासंगिक हैं, बल्कि
यह प्रासंगिकता भी और बड़ी है। हिन्दुस्तान
आज भी मुख्यत: किसानों का देश है और शायद अभी
बहुत दिन रहने वाला है- किसानों का
इतना बड़ा लेखक हिन्दी ने ही नहीं,दूसरी किसी भारतीय
भाषा ने भी आज तक पैदा नहीं किया । ( संकल्प-त्रैमासिक-अक्तूबर-दिसंबर-2005 पृष्ठ-78) प्रेमचंद यथार्थवादी रचनाकार थे,जिन्हें उच्च कोटि के साहित्यकार के रूप में सदैव याद किया
जाएगा ।
डॉ. धीरजभाई
अध्यक्ष हिंदी विभाग,
जीएलएस कॉलेज फोर गर्ल्स,
अहमदाबाद
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