रविवार, 14 अप्रैल 2024

गीत

 


सुरेश चौधरी

जीवन के दिन बीत रहे जाने न चैन मिले कहाँ

कब केसर-क्यारी महके जाने न फूल खिले कहाँ

रात अमावस की घनघोर छा रही

क्यूँ तड़पन हृदय की बढ़ती जा रही

क्यूँ रह रह विगत की याद सता रही

क्यूँ लालसा देह पर हक़ जता रही।

 

अवसाद हृदय के बढ़े तो रुके ये सिलसिले कहाँ

जीवन के दिन बीत रहे जाने न चैन मिले कहाँ

जीवन भर थी मुझको तलाश जिसकी

खामोशियाँ सदा रही पास उसकी

हर खुशनसीब लम्हों की आस सबकी

आज तो विकट है मिलन प्यास उसकी।

 

मेरी अंतस की पीड़ा के दुर्मिल स्वर मिले कहाँ

जीवन के दिन बीत रहे जाने न चैन मिले कहाँ

अंतः समर्पित संज्ञान मिला मुझको

हर याम कर्तव्य ध्यान मिला मुझको

कहा अधिकार तो ज्ञान मिला मुझको

समर्पण था क्यूँ न मान मिला मुझको।

 

जीवन के दिन बीत रहे जाने न चैन मिले कहाँ

कब केसर क्यारी महके जाने न फूल खिले कहाँ।

 

सुरेश चौधरी

एकता हिबिसकस

56 क्रिस्टोफर रोड

कोलकाता 700046

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