शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

काव्यास्वादन

 


पत्थर

-           डॉ. सुधा गुप्ता 

समकालीन परिवेश, मानवीय संवेदना, प्रतीकात्मकता, सामाजिक विषमता-विवशता, मनोजगत के विविध भाव, स्त्री चेतना, प्रेम, प्रकृति आदि अनेक स्थूल-सूक्ष्म विषयों का स्पर्श करते हुए डॉ.सुधा गुप्ता की लेखनी हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं व काव्य की विभिन्न शैलियों में पिछले लगभग पाँच दशकों से निरंतर चलती रही है । विशेषतः हाइकु सृजन में उनका योगदान कुछ खास ही रहा है । सन् १९८८ में  ‘आदमकद वसन्त’ नामक कविता संग्रह प्रकाशित हुआ । यह संग्रह शब्दों के बहाव में मानव हृदय को पिघलाने और पाठकों को विशेष रूप से अपनी ओर खींचने वाली कई भावपूर्ण एवं मार्मिक रचनाओं से शोभित है । इसी संग्रह में एक कविता है - ‘पत्थर’ ।


हमारे विचार से इस ‘पत्थर’ नामक कविता को हम एकाधिक दृष्टियों से भी देख सकते हैं। सबसे पहले तो हम कह सकते हैं कि कवयित्री के वैयक्तिक जीवनानुभव की जमीन से उगी यह एक सामाजिक सरोकार की कविता है। दूसरी तरफ यह कहना भी गैरवाजिब नहीं होगा कि इसमें एक स्त्री की केवल व्यक्तिगत सोच तथा इसी सोच के पीछे अपना एक निजी अनुभव को बताने वाली यह कविता है, जिसे सामान्यीकृत मानना ज्यादा ठीक नहीं है ।

आकार में बहुत ही छोटे कद की इस कविता का  प्रारंभ होता है - 

बचपन में

दादी माँ की देखा देखी

पत्थर की प्रतिमा

पूजती थी

यहाँ एक स्वाभाविक बात कही गई है - एक सहज प्रक्रिया को बताया गया है । बचपन का मतलब – एक अवस्था तो है ही पर इसके साथ-साथ बचपन यानी बोध की कमी । समझ की कमी ।  ज्ञान की कमी। इसीलिए तो जब कविता में दृश्य बदलता है - और कवयित्री कहती है कि बचपन बीत गया और बड़ी हो गई तब उस पत्थर की प्रतिमा की पूजा निरर्थक लगी - पर आदतन उस कार्य से जुड़ी रहीं । मतलब पूजा- मूर्तिपूजा में कोई आस्था नहीं- विशेष लगाव-भावना नहीं, यह पूजा महज़ आदतन ही हो रही है ।

अब यह जो है वह कवयित्री की निजी मान्यता है, इस व्यक्तिगत सोच को सामान्यीकृत करना ठीक नहीं है ।

पत्थर की प्रतिमा की पूजा को निरर्थक बताने वाली कवयित्री यहाँ तक ही नहीं बल्कि आगे कहती है कि तन्हा जीवन सफ़र को पार करने के बाद जब एक साथ मिलता है और अब उसकी पूजा शुरू होती है और यह पूजा भी मानो पत्थर पूजा के आदत के कारण ही।

हमने पहले भी कहा है कि यह विचार कवयित्री का वैयक्तिक है।       

संदर्भ :-

    आदमकंद वसन्त(कविताएँ), सुधा गुप्ता, विमल प्रकाशन, गाज़ियाबाद, प्रथम संस्करण फ़रवरी १९८८, पृष्ठ-०३

  

विमल चौधरी

शोधछात्र हिंदी विभाग,

सरदार पटेल विश्वविद्यालय

वल्लभविद्यानगर

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