एक साहित्यकार
का जाना....
डॉ. पूर्वा
शर्मा
साहित्य जगत
में अपने बहुआयामी सर्जनात्मक कौशल तथा सुधी समीक्षा व शोध दृष्टि के बल पर अपनी एक
विशेष पहचान कायम करने वाले सर्जक के विशाल सृजन-संसार से गुजरना मतलब एक विस्तृत एवं
वैविध्यपूर्ण अनुभवजगत से रूबरू होना,
एक बहुरंगी व
गहन-गंभीर संवेदना से जुड़ना, सचराचर के अनेकों सरोकारों से अवगत होना, भाषा-भाव के
मणिकांचन संयोग से प्रभावित होना, सृजन-समीक्षा के अनुशासन और इसके कर्ता के
दायित्वों-कर्तव्यों से परिचित होना आदि...आदि। ऐसे किसी महान साहित्य सेवी का इस
दुनिया से जाना कोई महज एक व्यक्ति का जाना भर नहीं है, बल्कि साहित्यजगत
की कितनी बड़ी क्षति...... इस सच्चाई को हम बखूबी जान सकते हैं, समझ सकते हैं।
18 नवम्बर, 2023 को हिन्दी
जगत की एक बड़ी शख्सियत डॉ. सुधा गुप्ता का हमारे बीच से जाना हिन्दी
साहित्य की जितनी बड़ी क्षति और कितनी बड़ी रिक्ति है, जिसका अनुभव और एहसास सुधा जी
के लेखकीय अवदान से परिचित प्रत्येक पाठक-सर्जक कर सकता है।
डॉ. सुधा
गुप्ता यानी जिनका जीवन ही साहित्य का पर्याय। साहित्य के प्रति, कविता के प्रति इतना
अनुराग कि ‘तुम’ के बहाने ‘स्वयं’ की ही एक मात्र
इच्छा व्यक्त करते हुए कहती रहीं – और इस भूतल पर ही नहीं.... पर मानो अनंत यात्रा
में भी साथ तो कविता का ही.... प्रेम तो कविता से ही....
तुम ले जाना
कविता-अनुराग
अपने साथ।
-
डॉ. सुधा गुप्ता
अब चल पड़ी हैं उस राह पर तब.....
अनंतयात्रा
हमसफ़र कौन ?
साहित्य राग
मातृभाषा हिन्दी तथा कविता से अगाध प्रेम करने वाली एक सहृदय
एवं सौन्दर्य प्रिय सर्जक, एक विदुषी, हिन्दी हाइकु की शीर्षस्थ हाइकुकार एवं
सरलमना व्यक्तित्व वाली डॉ. सुधा गुप्ता का अपने शैशव काल से ही कविता के प्रति
जो अगाध
प्रेम-आकर्षण रहा वह उनके नश्वर शरीर के छूटने तक बना ही रहा। अपने जीवन के लगभग सत्तर
वर्षों तक वह पूर्ण समर्पित भाव से काव्य-सृजन से जुड़ी रही। अति अध्ययन-प्रिय, अध्ययन-शील
सुधा जी ने अपने जीवन में पढ़ाई को ही सबसे ज्यादा तवज्जो दिया। उन्होंने बीमारी
में, अवसाद में, अनिंद्रा
में, तनाव में, आर्थिक
कष्टों में, संपन्नता
में, खुशहाली में… हर
परिस्थिति में बस पढ़ा ही पढ़ा। और उसी
का परिणाम उनके साहित्य में झलकता है। सुधा जी की रुचियों को उन्होंने स्वयं कुल
तीन शब्दों में रेखांकित किया है, वे हैं – ‘कविता, बच्चे, फूल।’
डॉ. सुधा
गुप्ता की पचास पुस्तकों का प्रकाशन इस बात का प्रमाण है कि उनका रचना
संसार कितना व्यापक है। कविता से विशेष प्रेम करने वाली इस कवयित्री ने जापानी
काव्य विधा ‘हाइकु’ के क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। सुधा जी के
हिन्दी हाइकु के कुल 15 संग्रह और जापानी विधाओं ताँका, चोका, सेदोका, हाइबन, यात्रा-काव्य
एवं हाइगा के 6 संग्रह यानी जापानी विधाओं में कुल 21 संग्रह प्रकाशित हो
चुके।
जापानी विधाओं के अतिरिक्त डॉ. सुधा गुप्ता के द्वारा लिखित
उनके सभी कविता संग्रह बेजोड़ है और गहन अर्थ की अनुभूति देते हैं। उनकी आत्मकथा(एक
पाती : सूरज के नाम) में भी कलात्मकता एवं कवितापन नज़र आता है। उनके सभी
शोध-समीक्षात्मक ग्रंथ ज्ञानवर्धक तो है ही, और इसमें उनका आलोचकीय विवेक एवं
परिश्रम भी झलकता है। उनका सम्पूर्ण साहित्य शोधार्थियों, साहित्य-प्रेमियों एवं
पाठकों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
मृत्यु के
पश्चात भी हजारों-लाखों लोगों की स्मृति में चिरकाल तक जीवित रहने वाले और उन्हें सुख-सुकून
एवं मानसिक ऊर्जा प्रदान करते रहने वाले व्यक्तित्व बहुत विरले होते हैं। 18
नवंबर, 2023 को इस चल जगत, इस फ़ानी दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह डॉ. सुधा
गुप्ता अपनी अगली यात्रा पर निकल गई। उन्हीं के शब्दों में –
“मैं / अपने
सूरज को ढूँढने / अगली यात्रा पर / निकल पड़ी ।”
उनका जाना यानी एक अनुभव जगत का चले जाना। उनका जाना यानी
हाइकु की एक भरीपूरी दुनिया का जाना। उनका जाना यानी एक बहुरंगी एवं बड़े आशयों से
पूरित एक रचनात्मक स्त्री-संवेदना का जाना। उनके जाने से हाइकु जगत एवं स्त्री
लेखन को गहरी क्षति पहुँची है।
कहते हैं कि
साहित्यकार कभी मरते नहीं वे तो अमर होते हैं। वे प्रतिपल अपने जीवन के खट्टे-मीठे
अनुभवों को अपने साहित्य में सहेजकर बड़ी सरलता से पाठकों को जीवन का फलसफ़ा सीखा
जाते हैं। सुधा जी अब पार्थिव रूप में हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके
शब्द, उनकी
स्मृतियाँ तो हमारे साथ ही है। अपने लेखन से साहित्य सागर में वृद्धि करने वाली डॉ.
सुधा गुप्ता साहित्यानुरागियों के स्मरण में सदैव अपना वजूद बनाए रखेंगी। उनकी
स्मृति को मेरा नमन –
लो रिक्त हुआ
अमृत से भरा वो
‘सुधा’ कलश।
डॉ. पूर्वा शर्मा
वड़ोदरा
बहुत अच्छा अंक।
जवाब देंहटाएंआ. सुधा गुप्ता दीदी हमारे बीच न होकर भी ,आज भी अपनी कविता , हाइकु व जापानी विधाओं के भावमय व विस्तृत लेखन के जरिए वे हमारे बीच हमेशा मौजूद रहेंगी । पूर्वा ने शब्द दृष्टि का उनकी स्मृति में एक संग्रहणीय अंक प्रकाशित किया है ।
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