सरदार कवि
प्रो. पुनीत बिसारिया
सरदार कवि बुन्देलखण्ड के अत्यंत महत्वपूर्ण कवि हैं,
जिनका जन्म ललितपुर में हुआ था। ये रीतिकाल के महत्त्वपूर्ण
कवि और टीकाकार थे, जिनकी रचनाओं में शृंगारिकता साँस लेती है। सरदार कवि ने कवित्त और सवैया लिखे
हैं। इनके द्वारा रचित षटऋतु हजारा लखनऊ के नवल किशोर प्रेस से सन 1894 में प्रकाशित हुआ था। इसकी विशेषता यह है कि इसमें कालिदास
से लेकर उनके समकालीन कवियों तक के ऋतु वर्णन को काव्यात्मक रूप देते हुए एक हजार
कवित्त और सवैया रचे गए हैं। प्रस्तुत हैं कुछ कवित्त और सवैया
कवित्त -1
होली
डरो ना अहीरन तैं अगर अबीरन तैं,
चारि जनी चारु चार ओरन तें धावो री।
एक हाथ ओड़ो पिचकारी की अगारी मार,
एक हाथ ओट राखि आँखिन बचवो री॥
कबि सरदार आयो बड़ो खिलवारी ताहि,
खेल को सवाद रंग रंगन बतावो री।
कीरति कुमारी कह्यो हेरि कै कुमारी कोऊ,
हौरी गुन वारी बनवारी बाँधि लावो री॥
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कवित्त -2
बसंत
संग की सहेली रहीं पूजत अकेली शिवा,
तीर यमुना के बीर चमक चपाई है।
हौं तो आई भागत डरत हियराते घेरे,
तेरे सोच करी मोहिं सोचत सवाई है॥
बचिहै बियोगी योगी जान सरदार ऐसी,
कंठ ते कलित कूक कोकिल कढ़ाई है।
बिपिन समाज में दराज सी अवाज़ होति,
आज महाराज ऋतुराज की अवाई है॥
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सवैया -1
सावन
श्रावन पूरन मास भये यह कौन लला चित में अभिलाखी।
छोड़त प्राणप्रिया अपनी पर भूमि तकावन को मति माखी।
ए सरदार बिचार करो किनका सुध सोध सबै सुचि नाखी।
साखी दै देवन को कर मैं घर राखत है परकी बर राखी॥
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सवैया -2
बसंत
थोरी सी बैस किशोरी सबै भरि झोरी अबीर उड़ावती हैं।
करताल दै ढोलन की धँधकी धुनि बांध धमार बजावती हैं।
सरदार लिये मिथिलेश कुमारि उदार ह्वै भाग सरावती हैं।
मुसिक्याय के नैन नचाइ सबै रघुनाथै वसंत बँधावती हैं॥
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ये हरिजन कवि के पुत्र तथा प्रतापसाहि के शिष्य थे और काशी
नरेश ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह के राजकवि थे। इन्होंने केशवदास की कविप्रिया की
टीका काशिराज प्रकाशिका नाम से लिखी थी।
ऐसे महत्त्वपूर्ण कवियों को प्रकाश में लाना चाहिए,
तभी हम हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि के महत्त्व को
जनसामान्य के समक्ष ला सकते हैं।
प्रो. पुनीत बिसारिया
आचार्य एवं पूर्व
अध्यक्ष-हिन्दी विभाग,
बुन्देलखण्ड
विश्वविद्यालय
झाँसी (उत्तर प्रदेश)
आपका आभार संपादक श्रेष्ठ।
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