रविवार, 29 अक्तूबर 2023

प्रसंगवश

 

गाँधी, सरदार और शास्त्री : कद छुए आसमान

प्रो. हसमुख परमार


 कहते हैं कि एक व्यक्ति से, एक शख्स़ से उम्दा व्यक्तित्व का, दमदार शख्सियत का बनना बड़े मायने रखता है । हर किसी के लिए इस प्रक्रिया से गुजरना और अंततः सफल होना सरल नहीं है । दरअसल समाजोपयोगी, लोककल्याणकारी, राष्ट्रहितकारी विचार-व्यवहार से, विशेष कर्मण्यता से सजे-सँवरे समृद्ध व्यक्तित्व के निर्माण हेतु उस व्यक्ति को अपने स्व से, अपने स्वार्थ से परे केवल परमार्थ की चिंता करते हुए जीवनपथ पर अग्रसर होना है; जो वाकई में बड़ा कठिन है, चुनौतीपूर्ण है । वैसे तो समाज के हर क्षेत्र में इस तरह के व्यक्तित्व मिलते ही हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र में आदर्श बने हुए हैं । परंतु ऐसे विरलों की संख्या बहुत कम है जो एक-दो क्षेत्रों में अपनी विशेष दखल रखते हुए भी वहीं तक ही सीमित नहीं रहते; बल्कि अपने वैचारिक व व्यवहारिक व्यक्तित्व से, अपने विशेष योगदान एवं उपलब्धियों से समाज को, जीवन के अनेकानेक क्षेत्रों को, पूरे राष्ट्र को प्रभावित करते हैं । ऐसे व्यक्तित्व समाज में सदैव स्मरणीय होते हैं । अपनी जयंती या पुण्यतिथि के अवसर पर तो ये व्यक्तित्व अपनी पूरी अस्मिता समेत समाज में, समाज द्वारा जीवंत रूप में स्मरण किये जाते हैं ।

वैसे तो अक्टूबर माह में कई महात्माओं- महापुरुषों को उनकी जन्मतिथि या पुण्यतिथि के निमित्त याद किया जाता है, परंतु यहाँ पर हम अपनी इस प्रसंगवश बात को सीमित रखते हैं अक्टूबर में तीन शख्सियतों की जयंती के निमित्त उनके स्मरण तक । ०२ अक्टूबर महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री  तथा ३१ अक्टूबर सरदार पटेल के अवतरण की, उनके शुभोदय की तिथि । मूलतः भारतीय राजनीति से जुड़े इस व्यक्तित्वत्रय ने अपने बहुआयामी चिंतन, व्यवहार, कार्यशैली आदि से एक विशाल व वैविध्यपूर्ण सामाजिक दायरे को अपने समय से लेकर आज तक प्रभावित किया है । समय के साथ इनकी प्रासंगिकता बढ़ती ही जा रही है ।

स्वतंत्रता संग्राम की अगुआई करनेवाले महानायक महात्मा गाँधी, अपने जीवन के इस मुख्य ध्येय के साथ साथ भारतीय समाज को, भारतवासियों के जीवन को और ज्यादा उज्ज्वल बनाने, समाज के वंचित, पीडित-शोषित जनसमुदाय का जीवन स्तर ऊँचा उठाने हेतु आजीवन सक्रिय रहे । एक साथ-एक जगह, एक चिंतक के रूप में, एक देशभक्त के रूप में, एक समाजसुधारक के रूप में गाँधी जी का परिचय देना लगभग  असंभव-सा कार्य ही कहा जा सकता है ।

इस बात को कोई भी नकार नहीं सकता कि महात्मा गाँधी को समझे बिना भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास को नहीं समझा जा सकता । इसमें कोई संदेह नहीं कि ब्रिटिश सत्ता के कारावास से हिन्दुस्तान को मुक्त कराने में ‘बापू’ की अहम भूमिका रही । और यही भगीरथ कार्य उनके जगविख्यात पहचान का प्रधान कारण रहा है ; किन्तु इसके साथ इनके व्यक्तित्व ने, इनकी जीवनशैली ने, इनके चिंतन ने, विविध क्षेत्रों में इनके सराहनीय योगदान ने इन्हें अबालवृद्ध का लोकप्रिय नायक बनाया ।  दरअसल गाँधीजी के समस्त अवदान का मूल्य निर्धारित करना संभव नहीं है ।  भारतीय संस्कृति, धर्म, समाज, राजनीति, आर्थिक व्यवस्था, भाषा, शिक्षा प्रभृति विषयक्षेत्रों से संबंधी गाँधीजी का चिंतन बहुत ही महत्वपूर्ण है ।  ‘गाँधी दर्शन’ या ‘गाँधीवाद’ को कौन नहीं जानता ? इसके प्रभाव से कौन अछूता है ? गाँधी इर्विन समझौते के पश्चात महात्मा गाँधी ने कहा था कि “गाँधी मर सकता है पर गाँधीवाद सदा जीवित रहेगा ।”

‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है’ का मंत्र देनेवाले इस महात्मा की कथनी और करनी में साम्यता ने समाज में इन्हें पूजनीय व आदर्श बना दिया । प्रीतम शर्मा के शब्दों में- “राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का नाम आते ही उनका विश्ववंद्य व्यक्तित्व साकार हो जाता है । मानवता के संपोषक और संवर्धक, सत्य-अहिंसा और न्याय के पक्षधर और कथनी-करनी की एकता के मूर्तिमंत उदाहरण महात्मा गाँधी ने विश्व को जो वैचारिक अवदान अपने सूक्ष्म और गहन चिंतन के माध्यम से प्रदान किया, वह प्रशंसनीय और श्लाघनीय तो है ही, अनुकरणीय और पालनीय भी है । यही कारण है कि उन्हें विश्वमानवतावादी, अप्रतीम मनस्वी और नीतिवान दार्शनिक कहा जाता है ।......गाँधी जी का चिन्तन युग सापेक्ष ही नहीं वरन् शाश्वत जीवन मूल्यों की चिरंतन अभिव्यक्ति है ।” ( गाँधीजी ने कहा था, सं. भँवरलाल, फ्लेप से )

जैसाकि हमने कहा देश को गुलामी की बेडियाँ से मुक्त कराना गाँधीजी के जीवन का मुख्य लक्ष्य जरूर था, पर यही एक लक्ष्य को लेकर वे नहीं चले, बल्कि इससे भी आगे वे चाहते थे मनुष्यता, मानवप्रेम का प्रचार । हरिवंशराय बच्चन के शब्दों में-

लक्ष्य उसका था नहीं, करके महज

इस देश को आजाद

चाहता  वह था कि दुनिया आज की

नाशाद हो फिर शाद

नाचता उसके दृंगों में था नए

मानवजात का ख्वाब

हिन्दी का एक अद्भुत उपन्यास है – ‘उत्तर कबीर नंगा फ़कीर’। लेखक के.एन.तिवारी ने अपने इस उपन्यास में बहुत ही रोचक ढंग से हमारे इतिहास के दो महापुरुषों- कबीर और गाँधी- की तुलना करते हुए उनके समय की सच्चाई, साथ ही मौजूदा माहौल की समस्याएँ व  इनके समाधान के संकेत को प्रस्तुत किया है । रचना के प्रारंभ में प्रकाशकीय पृष्ठ में व्यक्त दीपंकर श्रीज्ञान के विचार देखिए- “ गाँधी पर कुछ भी कहना, लिखना या पढ़ना....महज छोटी कोशिश बनकर रह जाती है, क्योंकि उनका कद ही इतना विराट है कि उसके आगे, सबकुछ बौना-सा नजर आता है, फिर भी गाँधीजी के बारे में जो भी लिखा,पढ़ा या कहा जाता है, वह गाँधी को और विस्तार देता है । दरअसल, गाँधी ने हिन्दुस्तान की आजादी की मशाल तो जलाई थी साथ ही पूरी दुनिया को तकरीबन हर समस्या का समाधान भी बनाया ।”

प्रस्तुत उपन्यास में एक जगह लेखक ने काल्पनिक अंदाज से कबीर के माध्यम से गाँधी के महान व विश्ववंद्य व्यक्तित्व को अंकित किया है । इस अंश को उपन्यास के फलेप पर भी दिया गया है । देखिए यह अंश- मोहनचन्द नाम सुनते ही कबीर सन्न रह गए । उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । आँखें खुली रह गयीं । सोचने लगे- “ क्या ये सचमुख वही गाँधी हैं । जिनका नाम मैंने काशी की गलियों से लेकर पूरे भारत में सुना था ।  या कोई और हैं ? सचमुच !  यदि ये वही गाँधी हैं तो इन्हें मेरा शत् शत् प्रणाम ।” कहते हैं कि गाँधी का स्मरण होते ही उस समय कबीर के मन में आत्मीयता का ऐसा संचार हुआ कि उनका रोम-रोम  पुलक उठा । वे एकटक  गाँधी को देखते रहे । बहुत देर तक देखते रहने के कारण कबीर को अपने आप पर झल्लाहट भी हुई । सोचने लगे – “ मैं क्यों नहीं पहचान पाया इस व्यक्ति को ? इस शख्सियत को ? क्यों नहीं दे सका अन्तरात्मा में इस महात्मा को । जिसको पूरा देश ‘बापू’ कहकर पुकारता है उसे अन्तर्मन से तो पहचानना ही चाहिए ।

सत्य और अहिंसा गाँधी जीवन का पर्याय था । गाँधीजी कहते थे कि मेरे धर्म का पहला नियम अहिंसा है, यही मेरे पंथ का अंतिम नियम भी है । “ आजादी की लड़ाई में गाँधी का अहिंसक अस्त्र दिखने में बहुत साधारण और जोखिमरहित लगता है । परंतु सच्चाई इससे ठीक उलटी है । अहिंसक संघर्ष के सैनिकों के लिए तो सशस्त्र युद्ध के सैनिकों से भी ज्यादा प्रशिक्षण आवश्यक होता है ।

आदर्शवादी-यथार्थवादी–व्यावहारिक तीनों दृष्टिकोण से महात्मा गाँधी का व्यक्तित्व संबद्ध था । ‘मेरे सपनों का भारत’ पुस्तक में भारत की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक मतलब लगभग सभी स्थितियों को लेकर गाँधी के विचार रेखांकित हैं । गाँधीजी के सपनों का भारत- “ मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूँगा, जिसमें गरीब से गरीब आदमी भी यह महसूस करे कि यह उसका देश है, जिसके निर्माण में उसकी आवाज का महत्व है । मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूँगा, जिसमें ऊँच-नीच का कोई भेद न हो । जातियाँ मिलजुल कर रहती हों । ऐसे भारत में, अस्पृश्यता व शराब तथा नशीली चीजों के अनिष्टों के लिए कोई स्थान न होगा । उसमें स्त्रियों के पुरूषों के समान अधिकार मिलेंगे । सारी दुनिया से हमारा संबंध शांति और भाईचारे का होगा । यह है मेरे सपनों का भारत ।”

काश ! बापू के सपनों का यह भारत, पूर्णतः वास्तविक रूप में आज हमारी आँखें  देखतीं !

पं. जवाहरलाल नेहरू महात्मा गाँधी के विराट व्यक्तित्व को उस विशाल मूर्ति सदृश बताते हैं जो बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में समग्र भारत में अपने पाँव फैलाये खडी है । आज भी गाँधी विचार, गाँधी संदेश, गाँधी आदर्श की प्रासंगिकता बराबर बनी रही है । “ आज की पीढ़ी के सामने यह स्पष्ट हो रहा है कि गाँधीजी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है, जितने उस समय थे । यह तथ्य है कि गाँधीगीरी आज के समय का मंत्र बन गया है । यह सिद्ध करता है कि गाँधीजी के विचार इक्कीसवीं सदी के लिए भी सार्थक और उपयोगी है ।” (मेरे सपनों का भारत- फलेप से)

30 जनवरी, 1948 को दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में प्रार्थना  सभा के बाद गोडसे द्वारा महात्मा गाँधी की हत्या होती है । इस तरह एक युग और उसका सूरज डूब जाता है । पूरा देश और विश्व इस आघात से विक्षुब्ध हो जाता है । महात्मा गाँधी की हत्या किस राजनीतिक परिवेश में हुई उसका यथार्थ और सटीक चित्रण शमशेरसिंह नरूला के उपन्यास ' एक पंखडी की तेज धार’ में हमें उपलब्ध होता है ।

महात्मा गाँधी की ही तरह गुजरात की भूमि पर जन्मे और भारतभूमि को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले, उन्नतिशील भारत हेतु आजीवन सक्रिय, सरदार पटेल का नाम आधुनिक भारत के महान कर्मवीरों की फेहरिस्त में शामिल है । स्वतंत्रतापूर्व के तथा स्वातंत्र्योतर भारत के उत्थान में सरदार पटेल की अनूठी भूमिका रही ।

भारत जब स्वाधीन हुआ तो हमारा देश अनेक छोटे राज-रजवाडों में विभाजित था । उनको एकत्र करके एक राष्ट्र बनाने का भगीरथ कार्य हमारे लौह-पुरुष और आधुनिक युग के चाणक्य कहे जाने वाले सरदार पटेल ने किया । जूनागढ़ और हैदराबाद के नवाबों को समझाने का और एतदर्थ शाम, दाम, दण्ड, भेद इत्यादि के प्रयोग द्वारा इन दो राज्यों को भारत के गणतंत्र में मिलाने का जो असंभव कार्य सरदार पटेल ने किया उसे अभूतपूर्व ही कहा जाएगा । अंतिम वाइसरोय लार्ड माउण्ट बेटन भी सरदार की कूटनीतिज्ञता  से आतंकित रहते थे । किंतु आजादी के बाद 15 दिसम्बर, 1950 को सरदार पटेल का देहांत हो जाता है । सरदार पटेल की मृत्यु से भारत के राजनीतिक इतिहास में जो अवकाश [vacuum] पैदा हुआ वह शायद आज भी पूरा नहीं गया है । आज भी हम देखते हैं कि राजनीति में तथा राष्ट्रीय स्तर की कोई समस्या यदि ज्यादा परेशान कर रही हो तो बहुत ही गंभीरता से सरदार को याद किया जाता है ।

पं. श्रीराम शर्मा, सरदार पटेल को राष्ट्र मंदिर के कुशल शिल्पी बताते हुए लिखते हैं –“ जर्मनी के एकीकरण में जो भूमिका बिस्मार्क ने और जापान के एकीकरण में मो भूमिका मिकाडो ने निभाई उन्हें विश्व के इतिहास में आश्चर्य माना गया है । ये देश अपने एकीकरण के समय तो चार-पाँच करोड़ की संख्या वाले ही थे । किन्तु सरदार पटेल द्वारा किये गए भारत के एकीकरण को क्या संज्ञा दी जाय जिसे दुनिया के अन्य देश उसके विशाल आकार और अपरिमित जनशक्ति को देखते हुए 'उप महाद्वीप' कहा करते हैं । निश्चय ही यह एक आश्चर्य ही कहा जायेगा ।”

 मूलत: गुजराती के ख्यातनाम लेखक एवं वक्ता जय वसावडा की सरदार पटेल के जीवन, उनके जीवन संबंधी विविध संदर्भ-सामग्री, उनके जीवन के अविस्मरणीय प्रेरक प्रसंग साथ ही सरदार पटेल  संबंधी  अपने दृष्टिकोण को लेकर एक पुस्तक है -  ‘सुपर हीरो सरदार , भारत के असली आयर्न मेन !’ इस पुस्तक से सरदार विषयक हिन्दी के मूर्धन्य कवि हरिवंशराय बच्चन के कुछ काव्यांश प्रस्तुत है –

यही प्रसिद्ध लौह का पुरुष प्रबल

यही प्रसिद्ध शक्ति की शिला अटल,

हिला इसे सका कभी न शत्रु दल,

पटेल पर, स्वदेश को गुमान है ।

सुबुद्धि उच्च शृंग पर किये जगह,

हृदय गंभीर है समुद्र की तरह,

कदम छुए हुए जमीन की सतह,

पटेल देश का निगाह-बान है ।

हरेक पक्ष को पटेल तोलना,

हरेक भेद को पटेल खोलता,

दुराव या छिपाव से उसे गरज ?

सदा कठोर नग्न सत्य बोलता,

पटेल हिंद की निडर जबान है

स्वतंत्र भारत की राजनीति में बड़ी मजबूत भूमिका का निर्वाह करने वाले लाल बहादुर शास्त्री की भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भी महत्वपूर्ण शिरकत रही । असहयोग आंदोलन, दांडी मार्च, भारत छोडो आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आंदोलनों में शास्त्री जी की सक्रिय भूमिका विशेष उल्लेखनीय रही है।

नेहरू जी के पश्चात लघुकाय वामन किन्तु विराट ऐसे स्वनामधन्य लाल बहादुर शास्त्री जी ने देश का सुकान सँभाला । थोडे ही समय में शास्त्री जी ने भारतीय जनता का प्रेम और विश्वास संपादित कर लिया । उन्हीं दिनों भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ, जिसमें शास्त्री जी ने भारत की ताकत का लोहा पाकिस्तान से मनवाया । किन्तु युद्ध विराम के बाद ताश्कंद करार करते समय विदेश में ही शंकास्पद स्थितियों में उनकी मृत्यु हुई । ‘गढ़ आला पर सिंह गेला’ की उक्ति का एक बार पुन: ऐतिहासिक पुनरावर्तन हुआ । युद्ध में विजेता हुए पर शास्त्रीजी को खोना पड़ा ।

भारत के इस लाल को गुदड़ी का लाल ऐसे ही नहीं कहा जाता ! सादगी, देशभक्ति, निष्ठा व प्रमाणिकता इनके जीवन का पर्याय था । खादी के प्रति विशेष प्रेम रखने वाले शास्त्री कहा करते थे कि ‘ ये सब खादी के कपड़े है, बड़ी मेहनत से बनाए हैं बीनने वालों ने । इसका एक एक सूत काम आना चाहिए ।” कहते हैं कि एक बार फटा हुआ कुर्ता अपनी पत्नी को देते हुए कहा ‘इनके रूमाल बना दें।’ प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए भी एक सादगीपूर्ण जीवन, विचार-जीवनशैली और कार्यशैली में साम्यता कैसे बनाए रखें, अपने पद एवं सरकारी संसाधनों का उपयोग कैसे और कहाँ तक करें; इन तमाम बातों में शास्त्री जी का उम्दा व्यक्तित्व भारतीय राजनीति एवं नेतागण में एक उम्दा उदाहरण बना हुआ है ।




प्रो. हसमुख परमार

प्रोफ़ेसर

स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर

जिला- आणंद (गुजरात) – 388120

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. साहित्य ही नहीं बल्कि अन्य विषयों के विद्यार्थियों के लिए भी बहुत उपयोगी आलेख। हार्दिक बधाई सर 🙏💐

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  2. भारत की तीन महत विभूतियों के व्यक्तित्व का सम्यक मूल्यांकन करता सुंदर आलेख।हार्दिक बधाई प्रो.परमार जी।

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  3. उपयोगी आलेख। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

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