कर्ता के विविध रूप
डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
सामान्यतः लोगों की यह निजी धारणा होती है कि कुछ करने वाला ही कर्ता होता है।
अर्थात् कर्ता के लिए कुछ करना आवश्यक है।
परंतु व्याकरण में ऐसा नहीं है। व्याकरण में कर्ता के विविध रूप हैं।
सचेतन तथा अचेतन (निर्जीव) पदार्थों के आधार पर कर्ता के मुख्य दो भेद हैं –
(क) सचेतन कर्ता तथा अचेतन कर्ता।
1. सचेतन कर्ता को वास्तविक या लौकिक कर्ता कहा जाता है तथा
अचेतन कर्ता को व्याकरणिक कर्ता कहा जाता है।
कुछ कर सकने की क्षमता रखने वाला वास्तविक कर्ता होता है।
सचेतन ही कुछ कर सकने की क्षमता रखता है। इसलिए वास्तविक कर्ता सचेतन कर्ता
होता है।
2. वाक्य में क्रिया को नियंत्रित करने वाला व्याकरणिक कर्ता
कहा जाता है।
व्याकरणिक कर्ता सचेतन कर्ता भी होता है तथा अचेतन कर्ता भी होता है।
बच्चा दूध पीता है।
दरवाजा खुल गया।
इन दो वाक्यों पर विचार करते हैं –
3. पहले वाक्य में बच्चा सचेतन है। दूध पीने का काम बच्चा करता
है। इसलिए वह वास्तविक कर्ता है। वास्तविक कर्ता को ही लौकिक कर्ता भी कहते हैं।
साथ ही ‘पीता है’ क्रिया बच्चा के लिंग-वचन के अनुसार है। इसलिए बच्चा
व्याकरणिक कर्ता भी है।
4. दूसरे वाक्य में ‘दरवाजा’ शब्द पुल्लिंग एकवचन है और ‘खुल
गया’ क्रिया भी पुल्लिंग एकवचन है। अर्थात् ‘दरवाजा’ शब्द दूसरे वाक्य का
व्याकरणिक कर्ता है।
‘दरवाजा’ चूँकि अचेतन (निर्जीव) है। इसलिए वह वास्तविक कर्ता
नहीं हो सकता। वास्तविक कर्ता तो कोई सचेतन ही हो सकता है।
परंतु वाक्य की क्रिया दरवाजा के लिंग-वचन के अनुसार है। इसलिए वह (दरवाजा)
व्याकरणिक कर्ता है।
इतनी बात हुई वास्तविक कर्ता तथा व्याकरणिक कर्ता की।
(ख) प्रयोग और संदर्भ के अनुसार सचेतन कर्ता के कई अन्य भेद
भी हैं –
1. प्रेरक कर्ता/प्रेरित कर्ता/मध्यस्थ कर्ता
इन तीन कर्ताओं का संबंध प्रेरणार्थक क्रिया से है।
जिस क्रियारूप से यह पता चलता है कि क्रिया द्वारा सूचित कार्य को करने वाला
अपने मन से नहीं, बल्कि किसी दूसरे की प्रेरणा से कार्य करता है, उस क्रियारूप को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं।
सभी प्रेरणार्थक क्रियाएँ सकर्मक होती हैं।
प्रेरणार्थक क्रिया दो प्रकार की होती है – प्रथम प्रेरणार्थक तथा द्वितीय
प्रेरणार्थक।
प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया के दो कर्ता होते हैं।
यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि दोनों कर्ता सचेतन होते हैं। प्रथम
प्रेरणार्थक क्रिया की यह शर्त है।
(क) प्रेरक कर्ता – प्रेरणा देने वाला कर्ता। प्रेरक कर्ता
क्रिया द्वारा सूचित कार्य स्वयं नहीं करता। वह किसी और को (प्रेरित कर्ता को)
क्रिया द्वारा सूचित कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।
(ख) प्रेरित कर्ता – प्रेरक कर्ता की प्रेरणा से काम करने
वाला कर्ता। प्रेरित कर्ता वास्तविक कर्ता होता है। कारण कि कार्य तो वही करता है।
भले ही किसी की प्रेरणा से।
माँ बच्चे को दूध पिलाती है।
इस वाक्य में ‘माँ’ प्रेरक कर्ता है। वह बच्चे को दूध पीने के लिए प्रेरित
करती है। स्वयं दूध नहीं पीती।
वाक्य की क्रिया (पिलाती है) माँ के लिंग-वचन के अनुसार है। इसलिए माँ
व्याकरणिक कर्ता भी है।
बच्चा प्रेरित कर्ता है। क्रिया द्वारा सूचित कार्य (दूध पीना) वही करता है।
इसलिए वह वास्तविक कर्ता है। परंतु बच्चा व्याकरणिक कर्ता नहीं है। कारण कि वाक्य
की क्रिया (पिलाती है) ‘बच्चा’ के लिंग-वचन के अनुसार नहीं है।
(ग) द्वितीय प्रेरणार्थक में तीन सचेतन कर्ता होते हैं –
प्रेरक,
प्रेरित तथा मध्यस्थ।
माँ आया से बच्चे को दूध पिलवाती है।
(1) माँ – प्रेरक कर्ता तो है। परंतु अब वह सीधे ‘बच्चा’ को
प्रेरित नहीं करती। प्रेरित कर्ता ‘बच्चा’ से अब उसका सीधा कोई संबंध नहीं है। वह
मध्यस्थ कर्ता ’आया’ को प्रेरित करती है। फिर आया बच्चे को प्रेरित करती है।
(2) आया – मध्यस्थ कर्ता है। उसकी भूमिका प्रेरक कर्ता माँ तथा
प्रेरित कर्ता बच्चा के बीच की है। इसलिए आया मध्यस्थ कर्ता है।
(3) प्रेरणार्थक क्रिया का प्रेरित कर्ता ही कार्य करता है।
परंतु किसी दूसरे की प्रेरणा से।
2. सक्रिय कर्ता/निष्क्रिय कर्ता
ये दोनों सचेतन कर्ता के ही भेद हैं।
(क) व्यापारबोधक
क्रिया का सचेतन कर्ता सक्रिय कर्ता होता है।
लड़का पढ़ता है।
‘पढ़ना’ व्यापारबोधक क्रिया है। लड़का सचेतन है तथा वह पढ़ने
का कार्य करता है। इसलिए इस वाक्य में लड़का शब्द सक्रिय कर्ता है। कुछ कर रहा है।
(ख) व्यापार रहित
क्रिया का सचेतन कर्ता निष्क्रिय कर्ता होता है।
लड़के को भूख लगी है।
‘लगना’ व्यापारबोधक क्रिया नहीं है। ‘लगना’ क्रिया में कुछ
करने का भाव नहीं होता। इसलिए उसका कर्ता लड़का निष्क्रिय कर्ता है। वह कर्ता तो
है। परंतु कुछ कार्य न करने के कारण उसे निष्क्रिय कर्ता कहा जाता है।
‘लड़के को भूख लगी है’ वाक्य में ‘भूख लगी है’ क्रिया है तथा
उसका कर्ता है ‘लड़का’। इस वाक्य में ‘लड़का’ कुछ कर नहीं रहा है। इसीलिए उसे
निष्क्रय कर्ता कहा गया है। वह कर्ता तो है। परंतु कुछ करता नहीं है।
कुछ लोग कहेंगे कि जब कुछ करता नहीं है, तो कर्ता कैसे?
उन्हें यह जान लेना चाहिए कि कुछ करने से ही कर्ता नहीं होता। कुछ न करने वाला
भी कर्ता होता है।
वाक्य है, तो
क्रिया होगी ही। बिना क्रिया के वाक्य बन नहीं सकता; और जब क्रिया है, तो कर्ता तो होगा ही। कारण कि वाक्य में बिना कर्ता के
क्रिया हो नहीं सकती। कर्ता भले ही लुप्त हो।
जिन वाक्यों के कर्ता के साथ ‘को’ परसर्ग लगा होता है,
उन वाक्यों को ‘को-वाक्य’ कहा जाता है। को-वाक्य के कर्ता
को ‘को-कर्ता’ कहा जाता है। अर्थात् ‘को-कर्ता’ निष्क्रिय कर्ता होता है।
सुधीर को बुखार है/शीला को खुशी है/छात्र को उसकी किताब मिल गई/सुरेश को गाने
का शौक है/मुझको वह आदमी चोर लगता है/कुत्ते को प्यास लगी है/पिता जी को क्रोध
आया/मुझको यह जानकारी मिली है/रमेश को इस बात की जानकारी है/बच्चे को कविता कंठस्थ
है।
ये सभी को-वाक्य हैं और इनके कर्ता को-कर्ता हैं। वे सभी निष्क्रिय कर्ता हैं।
‘को-कर्ता’ को अनुभावक कर्ता भी कहते हैं। कारण कि वह कोई
कार्य तो नहीं करता। परंतु तरह-तरह के भावों को अनुभव करता है।
3. अपदस्थ कर्ता –
कर्मवाच्य के वाक्य में वास्तविक कर्ता को व्याकरणिक कर्ता के पद से हटा दिया
जाता है और कर्म को कर्ता (व्याकरणिक कर्ता) का पद मिल जाता है। तभी तो कर्मवाच्य
बनता है।
ऐसा तब किया जाता है, जब कर्ता में अशक्तता का भाव दिखाना होता है।
मरीज से रोटी नहीं खाई जाती।
इस वाक्य में वास्तविक कर्ता तो ‘मरीज’ है। परंतु वह व्याकरणिक कर्ता नहीं है।
व्याकरणिक कर्ता रोटी है। कारण कि उसी के लिंग-वचन के अनुसार ‘खाई जाती’ क्रिया
है।
इस वाक्य में ‘मरीज’ अपदस्थ कर्ता है।
डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र
40,
साईंपार्क सोसाइटी, वड़ताल रोड
बाकरोल-388315, आणंद (गुजरात)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें