बुधवार, 26 अप्रैल 2023

कविता

 



प्रेम-बीज

डॉ. पूर्वा शर्मा

 

क्या तोहफ़ा दूँ

आज मैं तुम्हें !

दिए थे तुमने ही

बरसों पहले मुझे

‘प्रेम-बीज’

रख लिया था जिसे मैंने

दिल में दबाकर,

और फिर

वक्त की वही कहानी...

जुदा हुई राहें

और... जुदा ज़िंदगानी

लेकिन अरसे बाद

फिर से वक्त ने ली

कुछ करवटें

और आ गए सामने

तुम....

मुझे लगा था कि

वक्त के ताप में दबकर

नष्ट हो गए होंगे

यह नन्हे प्रेम-बीज,

मगर

वक्त और हालात की मार ने

इस प्रेम-बीज को बना दिया

प्रेम का ‘कल्पवृक्ष’

पनप रहे हैं अब इस वृक्ष पर

प्रेम के असंख्य बीज-पुष्प

यदि तुम स्वीकार करो तो

देना चाहती हूँ आज तुम्हें

वही पुष्प, वही बीज...

जो है मेरे जीवन के मंत्र-बीज ।

 


डॉ. पूर्वा शर्मा

वड़ोदरा

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर मार्मिक कविता - प्रेम बीज

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  2. प्रेम का कल्पवृक्ष
    सुंदर अवधारणा

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  3. सुंदर कविता। सुदर्शन रत्नाकर

    जवाब देंहटाएं
  4. मन के कोमल भाव को उकेरती सुंदर कविता पूर्वा जी। बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रिय पूर्वा जी!

    जवाब देंहटाएं

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