बहुत
दिनों के बाद (नागार्जुन)
डॉ.
योगेन्द्रनाथ मिश्र
इस कविता के
रचयिता नागार्जुन हैं। नागार्जुन जमीन से जुड़े हुए कवि थे। उनको गाँव तथा गाँव के
लोग बहुत प्रिय थे।
इस कविता का
नायक मूलतः गाँव का रहने वाला है।
परंतु वह
बहुत समय से रोजी रोजगार के चलते शहर में जा कर रहता है। गाँव तथा शहर के जीवन में
बहुत अंतर होता है। शहर में रहते हुए भी कविता का नायक गाँव को भूल नहीं पाया है।
इसलिए जब उसे
गाँव जाने का मौका मिलता है, तब वह बहुत खुश
होता है। कविता के नायक के मन की खुशी इस कविता में व्यक्त हुई है।
शहर में खेत
तो होते नहीं। खेती कहाँ से होगी। इसलिए कविता का नायक जब गाँव पहुँचता है,
तब चारों तरफ खेतों में लहराती फसल को देखता है, तो उसका मन खुशी से झूम उठता है। वह कहता है – आज मैंने पकी सुनहली फसलों
की मुस्कान बहुत दिनों के बाद देखी है।
पकी हुई फसल
का रंग पीला हो जाता है। सोने का रंग भी पीला होता है। इसी लिए कवि ने पकी फसलों
को सुनहली (सोने के रंग जैसी) कहा है।
मुस्कान खुशी
का प्रतीक है। खुश होने पर ही कोई मुस्कराता है। फसल पेट भरती है। सुख देती है।
इसलिए पकी फसल कविता के नायक को मुस्कुराती हुई लगती है।
दूसरे दृश्य
में कविता का नायक किशोरियों यानी युवतियों को धान कूटते देखता है। किशोरियाँ धान
कूटते हुए मधुर स्वर में गीत गा रही थीं। काम करते हुए गीत गाने से थकावट नहीं
होती। वातावरण बहुत आनंददायक होता है।
चावल जिस
अनाज से निकलता है, उसे धान कहा जाता है।
धान से चावल निकालने के लिए धान को ओखली में कूटा जाता है। ओखली मोटी लकड़ी का एक
साधन होती है। ओखली में गहरा गड्ढा होता है। उसी में धान डालकर डंडे जैसे मूसल से
धान को कूटा जाता है।
मौलसिरी एक
पेड़ का नाम है। उसमें छोटे-छोटे बहुत सुंदर फूल लगते हैं। फूल बहुत सुगंधित होते
हैं। कविता का नायक कहता है कि आज बहुत दिनों के बाद मैंने मौलसिरी के ढेर सारे
ताजे फूलों को सूँघा। शहरों में बासी फूल मिलते हैं। वह भी थोड़ी मात्रा में।
उन्हें खरीदना पड़ता है। परंतु गाँव में एकदम ताजे फूल मिलते हैं। उन्हें खरीदना
नहीं पड़ता। ताजे फूलों में ताजी खुशबू होती है। उसका आनंद ही कुछ अलग होता है।
शहर की तरह
गाँव में पक्के रास्ते या सड़कें नहीं होतीं। शहर की सड़कें गरमी से गरम हो जाती
हैं। शहरों में धूल बहुत कम होती है। परंतु गाँवों में तो धूल भरी पगडंडी होती है।
पगडंडी की
धूल की तुलना कवि ने चंदन से की है। चंदन में शीतलता (ठंडक) होती है। गाँव की धूल
से कवि को भी तथा कविता के नायक को भी बहुत प्रेम है। इसी लिए गाँव की धूल का
स्पर्श होने से कविता के नायक को बहुत प्रसन्नता होती है।
तालमखाना एक
पौधा होता है। वह गाँव में ही होता है। शहर में तो होता नहीं। उसके बीज (फल) खाने
में बड़े स्वादिष्ट होते हैं। गाँव जाने के बाद कविता के नायक को तालमखाने के मीठे
फल खाने का मौका मिला।
गन्ना भी
गाँव में ही होता है। गन्ना शहर में भी मिलता है। परंतु उसे खरीदना पड़ता है। जबकि
गाँव में तो गन्ना अपने खेत में ही होता है। जितना चाहे उतना हम चूस सकते हैं।
कविता के नायक ने गन्ना चूसने का भी आनंद लिया।
हमारी पाँच
इद्रियों के पाँच विषय होते हैं – रूप, रस,
गंध, शब्द और स्पर्श। रूप आँख का विषय है। रस
जीभ का विषय है। गंध नाक का विषय है। शब्द कान का विषय है। स्पर्श छूने का विषय
है।
ये सारे विषय
गाँव में एक साथ मिलते हैं। कविता के नायक को इन सारे विषयों का आनंद लेने का मौका
गाँव में मिला। इसी लिए कविता का नायक गाँव जाकर बहुत प्रसन्न हुआ। गाँव में उसे
बहुत आनंद आया।
कविता
बहुत
दिनों के बाद
नागार्जुन
बहुत
दिनों के बाद
अब
की मैंने जी-भर देखी
पकी-सुनहली
फसलों की मुसकान
—
बहुत दिनों के बाद
बहुत
दिनों के बाद
अब
की मैं जी-भर सुन पाया
धान
कुटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान
—
बहुत दिनों के बाद
बहुत
दिनों के बाद
अब
की मैंने जी-भर सूँघे
मौलसिरी
के ढेर-ढेर से ताजे-टटके फूल
—
बहुत दिनों के बाद
बहुत
दिनों के बाद
अब
की मैं जी-भर छू पाया
अपनी
गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल
—
बहुत दिनों के बाद
बहुत
दिनों के बाद
अब
की मैंने जी-भर तालमखाना खाया
गन्ने
चूसे जी-भर
—
बहुत दिनों के बाद
बहुत
दिनों के बाद
अब
की मैंने जी-भर भोगे
गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श
सब साथ-साथ इस भू पर
—
बहुत दिनों के बाद
वाह
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