शुक्रवार, 28 मई 2021

व्यंग्य

 

एकआदर्श भारतीय गाँव

(व्यंग्य सुनने-देखने के लिए 👆क्लिक करें)

संपत सरल

आज भी जो ये मानते हैं कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती हैमेरे ख़याल से उन्होंने गाँव उतने ही देखें हैं जितनी कि आत्मा।

जिस आदर्श गाँव  का जिक्र आज मैं करने जा रहा हूँ वैसे तो वह राजधानी दिल्ली से दसेक किलोमीटर पश्चिम में है।

चूँकि रास्ते में शराब के कई ठेके पड़ते हैं अतः यह दूरी घटती-बढ़ती रहती है।

कहते हैं उक्त आदर्श गाँव  किसी जालिम सिंह नामक डाकू ने बसाया थाजो की निहायत ही ईमानदार और परोपकारी डाकू थेक्योंकि निर्वाचित नहीं थे।

हालाँकि बाद में उन्होंने भी डाकू जीवन से VRS लेकर पॉलिटिक्स join कर ली थी। उनको यह समझ आ गया होगा कि एक डाकू को जिनके यहाँ डकैती करने जाना पड़ता है चुनाव जीत लेने पर वे ही लोग घर बैठे दे जाते हैं।

यों भी अपराध व राजनीति में वोटिंग का ही अंतर तो रह गया है।

संसद पर जिन आतंकियों ने हमला किया था सुरक्षा प्रहरियों ने उन्हें गोली मारने से पहले निश्चित ही कहा  होगा कि मानते हैं आप लोग बहुत बड़े अपराधी हैंलेकिन चुनाव जीते बिना अंदर नहीं जाने देंगे।

आदर्श गाँव  में दशों  दिशाएँ तीनों मौसम, बारहों महीने व सातों वार होते हैं

बस  एक तो गाँव के उत्तर में हिमालय नहीं है और तीनों तरफ से समुद्र से घिरा हुआ नहीं है।

गाँव  वालों का दावा है कि अगर डाकू जालिम सिंह आज जीवित होते तो यह दोनों चीजें भी गाँव  में होती।

गाँव  के लोग किफायती इस हद तक हैं कि किसी को मिस्ड काल भी अपने फोन से नहीं करते हैं। और दरियादिल ऐसे कि मिस्ड कॉल करने के बाद फोन करके पूछते रहते हैं की मिस्ड कॉल मिला क्या।

गाँव में कुल तेरह पर्यटक स्थल हैं तीन शराब के ठेकेएक मंदिरएक प्राइमरी स्कूलएक पुलिस चौकीदो कुएँ  तथा पाँच शमशान घाट।   

सरकारी ठेको के बावजूद  हस्त निर्मित शराब को ही वरीयता दी जाती है ताकि ग्लोब्लाइजेशन  के इस भीषण दौर में स्वदेशीपन बना रहे।

गाँव के अधिकांश लोग शराब पीते हैं कई लोग नहीं भी पीते हैं। जो नहीं पीते हैं वो पीने वालो को समझते बुझाते रहते हैं। उनके समझाय से जब पीने वाले नहीं समझते हैं तो दुखी होकर वे भी पीने लगते हैं।

लोगो में सरकारी नौकरियों के प्रति बड़ा मोह हैंसबका प्रयास रहता है कि  काम ऐसा हो जिसमे काम न होजहाँ तक मेहनत मजदूरी  का सवाल हैं मेहनत करने वाले को मजदूरी नहीं मिलती। और जिसे मजदूरी मिल जाती है वो मेहनत बंद कर देता हैसबके आपसी सम्बन्ध गठबंधन सरकारों जैसे हैं अर्थात स्वार्थ ही दो लोगों को जोड़ता है।

उम्र का फासला भी रिश्तों में बाधक नहीं बनता, दिन में जो बेटे का क्लासफेलो  होता हैशाम को वही बाप का ग्लासफेलो  होता है।

गाँव में जबसे हैंडपंप लगे हैं दोनों कुएँ शर्त लगाकर कूदने के काम आ रहे हैं।

स्कूल उतनी ही देर चलता है जितनी देर मिड-डे मील चलता है।

पुलिस चौकी को लेकर मतभेद हैं, कि अपराध बढ़ने से चौकी खुली है या चौकी खुलने से अपराध बढ़े हैं।

पाँच श्मशान घाटों से स्वतः सिद्ध है कि गाँव में पाँच जातियाँ  रहती हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि मुर्दे के राख हो चुकने पर भी उसकी जाति राख न हो जाए। एक दफा ‘’ जाति के लोगों ने अपना एक शव गफलत में ‘’ जाति के श्मशान घाट में जला दिया। बसफिर क्या था। ‘’ जाति वालों ने फटाफट अपना एक व्यक्ति मारा और उसे ‘’ जाति के श्मशान घाट में जलाकर हिसाब चुकता किया। इससे विवाद इतना बढ़ा कि दोनों जातियों ने अपने दो-दो लोग और मारकर एक-दूसरे के श्मशान घाट में जलाए। अंततः जैसा कि होता है राजनेताओं ने हस्तक्षेप किया। दोनों जातियों से चार-चार लोग मरवाकर आठों मुर्दे स्वयं की उपस्तिथि में उनके अपने-अपने श्मशान घाट में जलवाए तब जाकर कहीं आग बुझी।

एक मात्र मंदिर का जीर्णोद्धार डाकू जालिम सिंह ने कराया था। कहते हैं कि एक दिन पुजारी ने उन्हें फटकार दिया था कि मूर्ख! लूट का माल यूँ ही नहीं पचेगाथोड़ा दान-पुण्य भी किया करो। पुजारी की बात ऐसी चुभी कि डाकू जालिम सिंह ने एक रात पास-दूर के पाँच-सात मंदिरों को लूटा और उसी श्रमधन से इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

घरों में दो चीजे सब के यहाँ फायनेंनसित है – मोटर साइकिल और टेलीविज़न। मोटर साइकिल इसलिए कि गाँव सड़क मार्ग से शहर जा सके और टेलीविज़न इसलिए कि शहर आकाश मार्ग से गाँव आ सके। टी.वी. ने तो ज्ञान के क्षेत्र में क्रांति कर दी। कक्षा में मास्टर जी महाभारत के रचयिता का नाम पूछते हैं तो बच्चे बी. आर. चोपड़ा बताते हैं।

जो भी हो गाँव वालों में परिहास वृत्ति लाज़वाब है। चरणदास जी हड़बड़ी में ज़रा छोटे जूते खरीद लाए, दुकानदार ने बिका हुआ सामान वापस नहीं लिया क्योंकि दिनभर में एक ही बिका। लाचार चरणदास जी को ठाँसे गए जूते काट रहे हैं और वो लंगडाते हुए चल रहे हैं।  रास्ते में टकरा गाया रामधन। पूछ बैठा – चरणदास जी यह जूते कहाँ से मार लाय! (मतलब कितने के पड़े?) चरणदास झल्ला कर कहा – पेड़ से तोड़े। रामधन बोला – महाराज कच्चे तोड़ लिए।


संपत सरल

2 टिप्‍पणियां:

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...