‘बुरा ना मानो होली है।’ यह कहते हुये एक मनचले युवा
ने अजनबी युवती पर रंग डालते हुए कहा। युवती ने बड़े प्यार से उस युवक को
घूरा..... और उसे पास बुलाते हुए कहा, ‘जानते हो होली क्या
होती है?’
युवक
बोला – एक-दूसरे पर रंग डालना और मजा लेना.......
युवती
बोली – मेरे नादान भ्राता, होली माने ‘पूरी तरह से “पवित्र” बनना होता है।’ तन, मन और धन से ना कि किसी कुत्सित भावना से दूसरों के साथ अभद्र व्यवहार कर
उसे मनोरंजन या मजा कहना/करना होली है। वैसे भी होली का शाब्दिक अर्थ ‘पवित्र’ होता है और जिसकी याद में इसे मनाया जाता है
वह भी ‘असत्य पर सत्य विजय होने से’ अपवित्रता
और अधर्मी पाप अपने ही कर्मों से जल जाता है और शेष रह जाती है पूर्ण नारायण मय
पवित्रता। जिसकी याद में ये होली मनाई जाती है। होली ईश्वर से एकरूप होने का
त्यौहार है भक्त प्रहलाद की भांति । ना कि वर्तमान चलन की तरह गंदे आचरण यथा मद्य
पान कर नाचना। लड़कियों को बहाने से छेड़ना..... आदि। युवक और उसके साथियों की
निगाहें नीची थी।
पुन:
करबद्ध कर युवक बोला मुझे माफ कर दो ‘दीदी’
हमें ऐसा किसी ने समझाया ही नहीं लेकिन जिन बातों की आपने स्मृति
दिलाई है सभी सत्य है भक्त प्रहलाद की भक्ति परीक्षा में ईश्वरावतार की खुशी और
स्मृति में ही यह ‘फागोत्सव’ मनाया
जाता है क्योंकि ये घटना सदियों पहले इसी ऋतु में घटित हुई थी। युवती बोली – हाँ
भाई अब ये सत्य ज्ञान सबको सुना ‘सच्ची होली मनाना’ मेरी तरफ से शुभकामनाएँ तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिए।’
(‘संवेदना के पथ’ लघुकथा संग्रह से साभार )
डॉ. आशा
पथिक
आयुर्वेदिक
चिकित्सक
जयपुर
(राजस्थान)
सुंदर सीख भरी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसच है, बहुत बार संस्कार देने में रही कमी समाज की हानि पहुंचाती है।
Best Message...By this 'लघुकथा'
जवाब देंहटाएंThank You Mam.☺