रविवार, 1 नवंबर 2020

विचार स्तवक



 


1.

प्रेम का तत्त्व रूपांतरकारी है । तुम जिसे प्रेम करोगे उसके जैसे ही बन जाओगे । - धूमकेतु   

2.

सभी कलाओं में जीवन जीने की कला श्रेष्ठ है, जो अच्छी तरह जीना जानता हो, वही सच्चा कलाकार है । - थोरो

3.

मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गतिहीनता और परमुखापेक्षिता से बचा न सकेजो उसकी आत्मा को तेजोद्दीप्त न बना सकेजो उसके ह्रदय को परदु:खकातर और संवेदनशील न बना सकेउसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है । - आ. हजारीप्रसाद द्विवेदी


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अगस्त 2025, अंक 62

  शब्द-सृष्टि अगस्त 2025 , अंक 62 विशेषांक दिन कुछ ख़ास है! प्रसंगवश परामर्शक (प्रो. हसमुख परमार) की कलम से....  1. पुष्प और पत्थर की...