रविवार, 29 अक्तूबर 2023

कविता

 



एक सफ़र.... मेरे गाँव की ओर

श्रुति झा

 

मेरे गाँव जाने के लिये तुम

तीन ट्रेन, दो रिक्षा, तीन पक्के और दो कच्चे रास्ते पकड़ लो।

 

धान-गेहूँ के खेतों से गुज़रते हुए

कहीं रुककर, दो-चार खेतों और खलिहानों की महक लो।

 

रास्ते में कुछ पोखर-तालाब दिखाई दे,

तो उतरकर कुछ कदम चलना,

मुँह-हाथ धोकर,

पास वाले मंदिर के दर्शन करना।

 

कहीं से तेज़ सुगंध आए मधुर मिठाई की, तो उतरना

एक डब्बा छैनेवाली बालूशाही खरीदना

एक वहीं खाना और बाकी मेरे घर के लिये लाना

 

बस!

मेरे दादू-दादीमाँ और बुआ रहते हैं वहाँ,

उनसे मिलना

उनका आशीर्वाद लेना

मेरी दादी ढ़ेर सारी बातें करेंगी

मेरी बुआ भी बहुत आदर करेंगी

मेरे दादू को ऊँचा सुनाई देता है

उनके साथ थोड़ा धैर्य रखना..

 

भरपेट भात-दाल, तरकारी

आलू का तरुआ, दही-अचार

और मधुर मिठाई खाना

अब आना सफल है तुम्हारा

यह समझना !

 

क्योंकि हमारे गाँवों की पहचान

यहाँ के आदर-सत्कार से है

यहाँ के पोखर-तालाबों से है

अनाज, बीज, खेत, खलिहान

दक्षिण काली के दर्शन से है

अब आना सफल है तुम्हारा

यह समझना !

और इस सफ़र को

शहरों की महफिलों में सुनाना !


 

श्रुति झा

वड़ोदरा

2 टिप्‍पणियां:

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