गुरुवार, 14 सितंबर 2023

सामयिक टिप्पणी

 


दिल्ली घोषणा : नई विश्व व्यवस्था की राह

डॉ. ऋषभदेव शर्मा

दिल्ली में संपन्न दो-दिवसीय जी-20 शिखर सम्मेलन में सर्वसम्मति से इसके घोषणापत्र की स्वीकृति को उचित ही भारत की बड़ी कूटनैतिक सफलता कहा जा रहा है। कहना न होगा कि इस सहमति का आधार यह साझा समझ रही कि जी-20 अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के लिए प्रमुख मंच है और यह भू-राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों का समाधान करने का मंच नहीं है। इसमें भारत के इस दृष्टिकोण को दोहराया जाना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि आज का युग युद्ध का युग नहीं है।  इसी के मद्देनजर घोषणापत्र में सभी देशों से क्षेत्रीय अखंडता तथा संप्रभुता सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों को बनाए रखने का आह्वान किया गया। ज़ोर देकर कहा गया कि संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के साथ-साथ कूटनीति और संवाद भी जरूरी है। बेशक आदर्श के रूप में ये बातें बहुत खूबसूरत लगती हैं, लेकिन इनसे सचमुच लड़ने वालों और लड़ाने वालों के चरित्र में कोई बदलाव आएगा, ऐसी उम्मीद अभी नहीं की जा सकती! इतना ज़रूर है कि यह घोषणापत्र किसी हद तक   इस संगठन के अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबदबे से बाहर निकलने की छटपटाहट का भी आईना है। कहना न होगा कि इस छटपटाहट में से ही नई विश्व व्यवस्था की राह निकल सकती है!

निराशावादियों और विघ्नसंतोषियों के आक्षेपों को कुछ देर के लिए किनारे करके सोचें, तो यह कहने में किसी को संकोच नहीं होना चाहिए कि दिल्ली घोषणा का सबसे महत्वपूर्ण निहितार्थ बहुपक्षवाद पर जोर देना है। इसका एक अर्थ यह भी है कि यदि आने वाला समय दो-ध्रुवीय खींचतान का नहीं है, तो गुटनिरपेक्षता का भी नहीं है।  घोषणापत्र में विश्व व्यापार संगठन और संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय संस्थानों को मजबूत करने का आह्वान किया गया है। यह ट्रंप प्रशासन के बहुपक्षवाद के उस दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण विचलन है, जिसकी विशेषता अंतरराष्ट्रीय समझौतों और संगठनों से पीछे हटना या उनकी उपेक्षा करना था।

दिल्ली घोषणापत्र वैश्विक मामलों में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते महत्व को भी दर्शाता है। घोषणा में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया गया है। यह एक बड़ा कदम है, क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन से निपटने की आवश्यकता पर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच आम सहमति का प्रतिनिधित्व करता है। यह घोषणापत्र सतत विकास के मुद्दे को भी संबोधित करता है। घोषणापत्र में समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा का भी आह्वान किया गया है। यह इस बढ़ती मान्यता का प्रतिबिंब है कि आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण परस्पर निरपेक्ष नहीं हैं।

साथ ही दिल्ली घोषणा ने एक बार फिर मुक्त व्यापार और खुले बाज़ारों के प्रति जी-20 देशों की प्रतिबद्धता की पुष्टि की है। घोषणापत्र में वैश्विक वित्तीय ढाँचे में सुधार का आह्वान किया गया है ताकि इसे भविष्य के संकटों के प्रति अधिक लचीला बनाया जा सके। सदस्य देशों ने गरीबी, असमानता और भूख की चुनौतियों से निपटने के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्धता जताई। राष्ट्रीय हितों के साथ समूची मानवजाति के प्रति ज़िम्मेदारी को रेखांकित किए जाने को कोरोना काल से उपजी समझ का प्रतिफलन कहा जा सकता है। उसके अलावा, घोषणापत्र में महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता के महत्व को भी स्वीकार किया गया है पहचानता है। दुनिया भर में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने का आह्वान तो किया ही गया है। देखना यह होगा कि आने वाले समय में ये देश किस हद तक इन घोषणाओं को अपनाते हैं। डर है कि ये सार्वजनिक मौकों पर दोहराई जाने वाली सूक्तियाँ बनकर न रह जाएँ! फिलहाल  इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों से निपटने के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्धता जता रही हैं।


यहाँ यह भी कहना प्रासंगिक होगा कि यूक्रेन और रूस के साथ भारत के रिश्तों पर जी20 दिल्ली घोषणा के असर का पता वक़्त के साथ सामने आएगा।  युद्ध की समाप्ति के लिए घोषणा के आह्वान और बहुपक्षवाद पर इसके जोर को यूक्रेन के साथ भारत के रिश्तों के लिए सकारात्मक कदम कहा जा सकता है, तो रूस की स्पष्ट रूप से निंदा न करवा पाने से यूक्रेन का हताश होना स्वाभाविक है। भारत ने यह साफ कर दिया है कि हम कई बार की आजमाई रूस की दोस्ती को दाँव पर लगाने को तैयार नहीं हैं। उधर अमेरिका को भी समझ आ गया है कि प्रतिबंधों का डर दिखाकर अब भारत को ब्लैकमेल नहीं किया जा सकता।

अंततः दिल्ली शिखर सम्मेलन को इस संगठन में अफ्रीकन संघ को शामिल किए जाने की आधिकारिक घोषणा के लिए भी याद किया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के भारत के दावे को अमेरिका के अलावा तुर्किए का समर्थन भी नई राह का इशारा है।

***

 

डॉ. ऋषभदेव शर्मा

सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा

हैदराबाद

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अप्रैल 2024, अंक 46

  शब्द-सृष्टि अप्रैल 202 4, अंक 46 आपके समक्ष कुछ नयेपन के साथ... खण्ड -1 अंबेडकर जयंती के अवसर पर विशेष....... विचार बिंदु – डॉ. अंबेडक...