गुरुवार, 14 सितंबर 2023

विचार स्तवक

 

 डॉ. अशोक गिरि


हिन्दी मात्र हमारी मातृभाषा, राजभाषा, राज्य भाषा एवं सम्पर्क भाषा ही नहीं, अपितु यह हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर है।

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भाषायी (हिन्दी) विकास एक तरह से हमारी संस्कृति का विकास है। क्योंकि भाषा संस्कृति का अभिन्न अंग होती है।

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हिन्दी अध्यापक, हिन्दी साहित्यकार, हिन्दी अधिकारी तथा हिन्दी विद्वान होना सामान्य बात है। परन्तु हिन्दी सेवक होना सामान्य बात नहीं है।

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किसी भाषा (हिन्दी) में दूसरी भाषाओं के शब्दों की सहजता से स्वीकार्यता(प्राय: तत्सम रूप में) उसको महान बनाती है।

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केवल कविता लिखना ही हिन्दी सेवा, साहित्य सेवा तथा भाषा सेवा नहीं है।

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हमारी वेशभूषा तथा भाषा-शैली हमारे व्यक्तिव के महत्वपूर्ण कारक हैं । 

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हमें ‘हिन्दी’ को देश में जन-जन तक पहुँचाने के लिए, इसका सरल एवं सहज रूप अपनाना होगा।

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किसी भाषा की बोलियाँ उसको समृद्ध करती हैं। अत: बोलियों का विकास, भाषा का विकास है और भाषा का विकास बोलियों का विकास है।

 



डॉ. अशोक गिरि

बी-36, बी.ई.एल. कॉलोनी,

कोटद्वार (उत्तराखण्ड)

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