बुधवार, 31 दिसंबर 2025

सामयिक टिप्पणी


स्त्रीविमर्श : सेक्स शिक्षा से डरती है इटली की सरकार?

डॉ. ऋषभदेव शर्मा

इटली की दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की सरकार ने हाल ही में एक प्रतिगामी विधेयक पेश किया है, जिसे वह जेंडर विचारधाराऔर वोक बबलपर निर्णायक प्रहार बता रही है। दरअसल जेंडर विचारधारादक्षिणपंथी हलकों में इस्तेमाल होने वाला एक भयावह शब्द है जिससे उनका मतलब हैलिंग (जेंडर) को जैविक लिंग (सेक्स) से अलग एक सामाजिक संरचना मानना, सेक्सुअल ओरिएंटेशन की तरलता को स्वीकार करना, ट्रांसजेंडर पहचान को मान्यता देना और समलैंगिक विवाह या सरोगेसी जैसे मुद्दों को सामान्य करना। इसी तरह, यह वर्ग उन प्रगतिशील विचारों के लिए वोक बबलभी इस्तेमाल करता है जिन्हें वह अतिवादी, अमेरिकी-प्रभावित, और पारंपरिक परिवार-संस्कृति के लिए खतरा मानता है। विडंबना यह है कि इन दोनों शब्दों को हथियार बनाकर मेलोनी सरकार अब स्कूलों में सेक्स शिक्षा को और सिकोड़ना चाहती है।

विधेयक की मुख्य बातें स्पष्ट हैं। प्राथमिक स्कूलों में सेक्स व भावनात्मक शिक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध, मिडिल स्कूल (11-14 वर्ष) में केवल माता-पिता की लिखित सहमति से ही अनुमति, और हाई स्कूल में मौजूदा सीमित व्यवस्था। 1975 से अब तक विपक्षी दलों ने 34 बार अनिवार्य सेक्स शिक्षा का प्रस्ताव रखा, पर कैथोलिक चर्च और गर्भपात-विरोधी लॉबी के दबाव में हर बार उसे ठुकराया गया। वर्तमान सत्तारूढ़ दक्षिणपंथी गठबंधन प्रगति के चक्र को उल्टा घुमाने का काम कर रहा है। शिक्षा को और कड़ा करना उल्टी दिशा में जाना ही तो है न? शिक्षा उप-मंत्री रॉसानो सासो ने संसद में कहा, “इस कानून से हम जेंडर विचारधारा और वोक बबल को हमेशा के लिए अलविदा कह रहे हैं।उन्होंने पुराना फासीवादी नारा दोहराया- “भगवान, देश और परिवार!”

स्त्री विमर्श के नजरिए से यह विधेयक ख़ासा चिंताजनक है। यह सिर्फ शिक्षा का मामला नहीं, पितृसत्ता को पुनर्जीवित करने का घोषणापत्र है! यूनेस्को की 2018 और 2023 की रिपोर्टें स्पष्ट कहती हैं कि व्यापक व वैज्ञानिक सेक्स शिक्षा किशोर गर्भावस्था को 50 प्रतिशत तक, यौन संचारित रोगों को 40 प्रतिशत तक और महिलाओं के खिलाफ हिंसा को उल्लेखनीय रूप से कम करती है। ग़ौरतलब है कि इटली में हर तीन दिन में एक हत्या महिला-हत्या (फेमिसाइड) होती है। सयाने याद दिला रहे हैं कि 2023 में ग्यूलिया चेचेतिन की हत्या के बाद उनके परिवार ने खुलकर कहा था – “अगर स्कूल में सहमति, सम्मान और लिंग समानता की बात होती, तो शायद मेरी बेटी आज जिंदा होती।पर सरकार ने उनकी पुकार अनसुनी कर दी।

बेशक, इस विधेयक के प्रभाव बहुआयामी और विनाशकारी होंगे। यह सहमति (कंसेंट) की अवधारणा को स्कूल से बाहर कर देगा, जिससे युवा पीढ़ी का मतलब समझने में असमर्थ रहेगी। ट्रांसजेंडर व समलैंगिक बच्चों के लिए स्कूल और भी खतरनाक जगह बन जाएगा। जबकि इटली में पहले ही 35 प्रतिशत एलजीबीटीक्यू+ छात्र आत्महत्या के विचार रखते हैं!

कहना न होगा कि यह विधेयक मेलोनी सरकार के अन्य कदमों - सरोगेसी पर पूर्ण प्रतिबंध, समलैंगिक जोड़ों के बच्चों को कानूनी मान्यता न देना, ट्रांस युवाओं के लिए हार्मोन थेरेपी पर रोक - का पूरक है। विश्व आर्थिक मंच की 2025 की लिंग-अंतर रिपोर्ट में इटली 148 देशों में 85वें स्थान पर है; यह विधेयक उसे और नीचे धकेलेगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इटली जैसे देश जेंडर विचारधाराके नाम पर शिक्षा का गला घोंट रहे हैं। उन्हें समझना होगा कि स्कूलों में वैज्ञानिक, समावेशी और अनिवार्य सेक्स व लिंग शिक्षा लागू करने का समय आ गया है। माता-पिता की अनुमति के नाम पर, या धार्मिक लॉबी के दबाव में इसे सिकोड़ना किसी भी प्रकार उचित नहीं; क्योंकि शिक्षा दमन का हथियार नहीं, मुक्ति का औजार होती है।

अंततः, भारत के लिए भी यह एक चेतावनी है। हमारे यहाँ भी तो सेक्स शिक्षा को पश्चिमी साजिशया संस्कृति-विरोधीकहकर खारिज करने की आवाजें उठती रहती हैं न!

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डॉ. ऋषभदेव शर्मा

सेवा निवृत्त प्रोफ़ेसर

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा

हैदराबाद


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