रविवार, 30 नवंबर 2025

आलेख

 


सरदार : शैक्षिक और व्यावसायिक सफ़र

[विद्यार्थी से वकालत तक]

करमसद, पेटलाद, नडियाद, वडोदरा और इंग्लैंड तक के शैक्षिक संस्थान से सरदार पटेल ने अपनी शिक्षा प्राप्त की। 22 वर्ष की उम्र में वर्ष 1897 में सरदार पटेल ने मैट्रीक की परीक्षा उत्तीर्ण की। बचपन से ही छात्र वल्लभभाई पटेल की प्रबल इच्छा थी पढ़ लिखकर वकील बनने की। अपनी इसी इच्छा की पूर्ति हेतु उन्होंने मैट्रीक पास करने के बाद घर पर ही दो-तीन वर्ष पढ़ाई-लिखाई कर सन् 1900 में ‘डिस्ट्रिक्ट प्लीडरकी परीक्षा उत्तीर्ण की। जिला वकील की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात इसी वर्ष यानी 1900 ई. में सरदार पटेल ने पंचमहाल मिले के मुख्य शहर गोधरा में वकालत का प्रारंभ किया। यहाँ उन्होंने वकील का एक स्वतंत्र कार्यालय स्थापित किया। वहाँ दो वर्ष रहकर 1902 ई. में वे बोरसद आ गए और यहाँ वकालत करने लगे। इसी दरमियान इनकी एक बड़ी मंसा थी इंग्लैंड जाकर बेरिस्टर की उपाधि प्राप्त करने की । वल्लभभाई पटेल की इंग्लैंड जाने की मंशा के पीछे दो वजहें थीं, एक लंदन से बेरिस्टर की पढाई व डिग्री प्राप्त कर यहाँ वकालत के व्यवसाय से ज्यादा आय प्राप्त करना, और दूसरी चाह थी जिस अंग्रेज शासन ने हिन्दुस्तान को गुलाम बनाया, उन अंग्रेजों के देश को देखना ।

सन् 1910 में बेरिस्टर की पढाई के लिए वल्लभभाई पटेल इंग्लैंड गए, वहाँ मिडल टेम्पल नामक प्रसिद्ध कानून कॉलेज में प्रवेश लिया। वहाँ तीन साल की पढाई कुछ समय पहले ही पूर्ण कर और आला दर्जे में परीक्षा उत्तीर्ण कर लंदन से 1913 में वे स्वदेश लौटे और वकालत करने लगे। अहमदाबाद रहते हुए वहाँ अहमदाबाद बार में आपराधिक कानून के अग्रणी बेरिस्टर बन गए। अपनी तीक्ष्ण बुद्धि, कड़ी मेहनत तथा स्पष्टवादिता के चलते सरदार पटेल ने अपनी एक बड़े वकील के रूप में पहचान बना ली थी।

वल्लभभाई(दाएँ) एवं विट्ठलभाई (1913) 

सरदार वल्लभभाई पटेल के, विशेषतः वकालत जीवन का उस समय के व्यक्तित्व का सजीव चित्रण उनके सत्तरवें जन्मदिन पर जी. बी. मावलंकर ने एक लेख में इन शब्दों में किया है –  “युवक बैरिस्टर पटेल ने एक प्रतिभा संपन्न युवक के रूप में, जो अच्छे ढंग से सिले हुए अंग्रेजी लिबास तथा हेट-एक तरफ जरा झुकी हुई लगाए जूलियट बार में प्रवेश किया। इस युवक की आँखें चमकीली तथा दृष्टि गहरी और पैनी थी। उसे ज्यादा बोलने की आदत नहीं थी। वह अपने मुलाकातियों का भी एक मुस्कराहट के साथ स्वागत करता था और उनसे प्राय: नहीं ही बोलता था। उसकी दृष्टि दृढ़ और मजबूत थी। ऐसा प्रतीत होता था कि वह उच्चावस्था की भावना के साथ ही दुनिया के लोगों को देख रहा है। वह जब कभी भी बोला तो शब्दों पर वजन डालते हुए गर्व के साथ बोला । उसके चहरे पर हमेशा ही दृढ़ता और मौन के भाव झलकते थे।” (सरदार वल्लभभाई पटेल : पृ. 15-16)

वर्ष 1918 में खेडा सत्याग्रह का नेतृत्व, इसी समय के आसपास महात्मा गाँधी से विशेष संपर्क तथा इनके प्रभाव और कांग्रेस द्वारा असहयोग आंदोलन की घोषणा के चलते सरदार वल्लभभाई का स्वतंत्रता आंदोलन तथा देश व समाज सेवा की ओर झुकाव बढ़ने लगा और वकालत में ध्यान कम होता गया।

सरदार पटेल की शिक्षा-दीक्षा, उनका व्यवसाय, स्वाधीनता आंदोलन में अहम शिरकत, भारतीय समाज व राजनीति के एक सच्चे सेवक प्रभृति संबंधी उनके अवदान के एवज में उन्हें 25 नवम्बर, 1948 को बनारस यूनिवर्सिटी तथा 27 नवम्बर, 1948 को इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की ओर से  ‘डॉक्टर ऑफ लॉज’ की मानद उपाधि प्रदान की गई तथा 26 फरवरी, 1949 को उस्मानिया यूनिवर्सिटी की ओर से भी उन्हें ‘डॉक्टर ऑफ लॉज’ की उपाधि प्राप्त हुई ।


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