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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

पुस्तक परिचय

भारतीय ज्ञान-विज्ञान और चिंतन : कुछ संदर्भ

(प्रो.हसमुख परमार /डॉ. पूर्वा शर्मा) 

कुलदीप आशकिरण

    भारतीय ज्ञान-विज्ञान और चिंतन की सतत धारा वैदिक युग से जन-मानस के बीच अक्षुण्ण रूप से प्रवाहमान है । वेदों, उपनिषदों, शास्त्रों , शिल्प और चिकित्सा के साथ हमारी मौखिक ज्ञान परम्परा की भी विश्व पटल पर एक विशेष पहचान रही है । इसी समृद्ध विरासत से सम्बद्ध को आधार बनाकर गुरुवर प्रो. हसमुख परमार सर और डॉ. पूर्वा शर्मा जी की 'भारतीय ज्ञान-विज्ञान और चिंतन : कुछ संदर्भ' शीर्षक यह पुस्तक छात्रों-शोधार्थियों के साथ-साथ अध्यापक साथियों के लिए भी उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है । यह कृति लेखक द्वय के अथक परिश्रम और लगन के बाद त्रुटि रहित पाठकों के बीच है । माया प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक की शुभाशंसा प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक डॉ. योगेंद्रनाथ मिश्र जी ने लिखी है, जिसमें वे लेखक द्वय की अनुशंसा में लिखते हैं कि 'आलेखों को देखने से लगता है कि लेखक द्वय का दृष्टि-पथ बहुत विस्तृत है।’ आदरणीय मिश्र जी की इसी अनुशंसा का मैं भी समर्थक हूँ क्योंकि प्रो. हसमुख परमार जी मेरे गुरु हैं और किताबों से इतर इनके सानिध्य में रहकर मैं इनके ज्ञान और चिंतन से लाभान्वित होता रहता हूँ।  अगर इस कृति की कुछ आलोचना की जा सके तो बस इतना ही कहा जा सकता है कि कृति में विषय-वैविध्य का अति-संक्षिप्तिकरण है । किंतु फिर भी इतने कम पृष्ठों में वैदिक परम्परा से लेकर  बौद्ध, जैन, रामायण, महाभारत से होते हुए दयानंद सरस्वती, जगदीशचन्द्र बसु और डॉ. कलाम तक के विस्तृत क्षेत्र पर इतनी सलरता से बात रखना इस कृति की बहुत बड़ी विशेषता है । इतना ही नही लेखक द्वय ने साहित्य को लेकर लोकसाहित्य, लोकवार्ता, हाइकु एवं पर्यावरणीय चिंतन पर भी संक्षिप्त में अपने विचार प्रकट किए हैं । पुस्तक के संदर्भ में इतना विस्तार से कहना मेरे लिए कठिन है और यह कठिनता तब है कि इस कृति में मेरे गुरु की अथक मेहनत शामिल है । इस महत्वपूर्ण पुस्तक को सरसरी निगाह से एक बार मैंने भी बाँचा है इसलिए मैं कह सकता हूँ कि कहीं -कहीं उदाहरणों की अधिकता है और लेखक की बात कम फिर भी यह उदाहरण उपयुक्त और महत्वपूर्ण हैं जिन्हें खोजना विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए सहज नहीं है । सहजता तो कृति की भूमिका में लेखक द्वय की दृष्टव्य होती है जहाँ वे लिखते हैं 'यदि यह पुस्तक पाठकों को, खासकर विद्यार्थियों को भारतीय ज्ञान-विज्ञान परम्परा, आधुनिक भारतीय चिंतकों-वैज्ञानिकों तथा ज्ञान-चिंतन से संस्पर्शित हिन्दी साहित्य को विस्तार व गहराई से जानने हेतु उनमें रुचि जगाकर इस दिशा में अग्रसर होने में सहायक सिद्ध हुई तो हम अपने श्रम को सार्थक समझेंगे ।' तीन खण्डों में  पुस्तक कि विषय वस्तु को प्रस्तुत करते हुए लेखक द्वय का यही ध्येय रहा होगा कि संचारयंत्र के भँवर में डूबी अपनी इस नई पाठक पीढ़ी को भारतीय ज्ञान परम्परा और चिंतकों से परिचित कराकर उनमें इनके प्रति जिज्ञासा उत्पन्न कर सकें । इस संदर्भ में यह पुस्तक बड़ी कारगर साबित होगी । इस महत्वपूर्ण कृति के लिए गुरुवर प्रो. हसमुख परमार सर और डॉ. पूर्वा शर्मा जी को हार्दिक बधाई देते हुए इनके स्वस्थ एवं मंगलमय जीवन की कामना करता हूँ । आपका स्नेह और सानिध्य हम पर ऐसे ही बना रहे । आप हमेशा स्वस्थ रहें और अपनी रचनाधर्मिता से हमें लाभान्वित करते रहें । 

 

कुलदीप आशकिरण

शोधार्थी हिन्दी विभाग 

सरदार पटेल विश्वविद्यालय 

वल्लभ विद्यानगर 

बुधवार, 31 जुलाई 2024

पुस्तक परिचय

 

कुछ कृती व्यक्तित्व : सरोकार और उपलब्धियाँ

पुस्तक का शीर्षक ही बखूबी संकेतित करता है कि पुस्तक की विषय-वस्तु का सरोकार तथा उसकी सीमा किसी एक व्यक्ति या किसी विशेष विषय क्षेत्र-संदर्भ या कोई एक-दो प्रवृत्ति-संवेदना से ही संबद्ध नहीं है। दरअसल साहित्य एवं साहित्येतर क्षेत्र, इन क्षेत्रों से जुड़े कतिपय ख़ास व्यक्तित्व तथा इन व्यक्तित्वों के सृजनात्मक तथा देश व समाज उपयोगी कार्यों के विस्तार-वैविध्य को एक छोटे कद की पुस्तक में आकलित करने की इच्छा ने ही इस पुस्तक को एक अलग आकार-प्रकार दिया है। यहाँ हमारी ओर से मूलतः साहित्य, समाज और राजनीति, इन क्षेत्रत्रयी से जुड़ी कुछेक  ख्यात प्रतिभाओं के बृहत् अवदान के चंद प्रमुख पक्षों-संद‌र्भों का एक परिचयात्मक संक्षिप्त  ब्यौरा, जिसे स्तरीय शोध या गंभीर-गरिष्ठ समीक्षा तो नहीं कह सकते, किंतु इन प्रतिभाओं का स्मरण, इनके कार्यों का एक विहंगावलोकन और आकलन, इनके प्रति हमारी रुचि व दायित्व, विद्यार्थियों तथा कुछ अन्य जिज्ञासु पाठकों के संदर्भ में इसकी थोड़ी-बहुत उपयोगिता आदि के संदर्भ में हम अपने इस लेखकीय प्रयास को देख रहे हैं

वैसे पुस्तक की अधिकांश विषय-सामग्री पहले हमारे ‘शब्द-सृष्टि’ ब्लॉग-ई पत्रिका के माध्यम से प्रस्तुत हो चुकी है, परंतु लेखनी के विशेष स्थायित्व तथा अधिक प्रसार हेतु अब हम इसे पुस्तकाकार दे रहे हैं। पुस्तक में प्रतिपादित सामग्री दो फॉर्म में हैं – शोध आलेख तथा निबंध। साहित्य संबंधी लेखन शोध आलेख के रूप में जबकि साहित्येतर क्षेत्रों से जुड़ा लेखन  विशेषतः निबंध के ढाँचे में।

अमीर खुसरो से लेकर आज इक्कीसवीं सदी के दूसरे तीसरे दशक तक हिन्दी सृजनकर्ताओं की बड़ी लम्बी व मजबूत फेहरिस्त में से महज़ पंद्रह-सोलह साहित्यकारों, अंतर्राष्ट्रीय मंच से जुड़े एक बड़े हिन्दीसेवी-हिन्दी प्रचारक तथा भारतीय समाज व राजनीति से जुड़े कुछेक महान देशभक्तों-समाजसुधारकों-चिंतकों को लेकर लिखे गए कुल 19 शोधालेख-निबंध पुस्तक में संकलित हैं। इन आलेखों- निबंधों में संबंधित प्रतिभाओं के विचारों व कार्यों को शब्दबद्ध करने का एक छोटा-सा प्रयास किया है।

हिन्दी साहित्येतिहास में खड़ी बोली हिन्दी काव्य, गीत-ग़ज़ल-कव्वाली, पहेलियाँ-मुकरियाँ-निस्बतें-ढकोसला-दो सखुन, हास्य रस आदि के लिहाज़ से हिन्दी की पहली आवाज़ कहे जाने वाले अमीर खुसरो के सृजन-कर्म का महत्त्व • मध्यकालीन हिन्दी निर्गुण काव्य के महान संत कवि दादूदयाल के काव्य में भक्ति, दर्शन तथा सामाजिक चेतना का स्वर • गुजराती साहित्य के मध्यकालीन कृष्णभक्त कवि नरसिंह मेहता का काव्यसंसार-भावलोक • हिन्दी के प्रबुद्ध मार्क्सवादी आलोचक डॉ. शिवकुमार मिश्र का आलोचना कर्म-आलोचना दृष्टि तथा मध्यकालीन कृष्णभक्त कवयित्री मीरा तथा उनके काव्य को आधु‌निक स्त्री विमर्श के परिप्रेक्ष्य में देखने-परखने की मिश्र जी की दृष्टि • समकालीन हिन्दी साहित्य में एक अहिन्दी भाषी प्रांत में एक अहिन्दीभाषी हिन्दीसेवी प्रो. पारुकांत देसाई का सृजन-लेखन • हास्य-व्यंग्य के एक बड़े और पूर्ण पर्याय काका हाथरसी का जीवन व सृजन सफ़र • स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी व्यंग्य के पुरोधा हरिशंकर परसाई की नुकीली कलम का प्रसार व प्रभाव • सृजन-समीक्षा उभय दृष्टि से हिन्दी हाइकु को समृद्ध-संपन्न करने वाले डॉ. अग्रवाल • हिन्दी व्यंग्य निबंध विधा तथा हाइकु व अन्य साहित्य रूपों में लंबे अर्से से लेखनी चला रहे डॉ. गोपाल बाबू शर्मा के सृजन संसार का वैशिष्ट्य • समकालीन हिन्दी कवयित्रियों, विशेषतः हाइकु एवं अन्य जापानी काव्यरूपों में अपने योगदान से अपनी एक विशेष पहचान कायम करने वाली डॉ. सुधा गुप्ता तथा डॉ. कृष्णा वर्मा के लेखकीय अवदान का अवलोकन • जापानी काव्य विधा हाइकु का हिन्दी में सृजन तथा विकास, साथ ही हिन्दी हाइकु को सात समंदर पार भारतेतर देशों में प्रचारित कर इसे विश्व मंच पर प्रतिष्ठित करने वाली कुछेक महत्त्वपूर्ण कवयित्रियों की हाइ‌कु-दुनिया • भवानी दयाल संन्यासी का हिन्दी-प्रेम तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु उनका अत्यंत प्रशंसनीय कार्य • महात्मा गाँधी-सरदार वल्लभभाई पटेल- डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर-डॉ. राममनोहर लोहिया, इन महान शख़्सियतों तथा देश तथा समाज को इनकी महती देन • स्वाधीनता संग्राम में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देशप्रेम-देशभक्ति की महान मिसाल बनी कतिपय वीरांगनाओं का स्मरण।

उपरोक्त बिंदुओं की संक्षेप में सोदाहरण व्याख्या एवं विवेचन से प्रस्तुत पुस्तक का कलेवर तैयार किया गया है।

***

कृति : कुछ कृती व्यक्तित्व : सरोकार और उपलब्धियाँ, लेखक : प्रो. हसमुख परमार/डॉ. पूर्वा शर्मा,

मूल्य : 400 /-, संस्करण : 2024, प्रकाशक : माया प्रकाशन, 64/540, आवास विकास हंसपुरम्, नौबस्ता, कानपुर)


बुधवार, 26 जुलाई 2023

पुस्तक परिचय

 


शिक्षा और समाज के यथार्थ से रूबरू कराती दिलीप मेहरा की कहानियाँ

कुलदीप कुमार ‘आशकिरण’

      शिक्षा और समाज का संबंध अन्योन्याश्रित है। व्यक्ति के लिए जितना आवश्यक समाज है, उतना ही समाज के लिए शिक्षा। कह सकते हैं कि शिक्षा और समाज दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। इन सबके अलावा भी वर्तमान में तमाम सवालात हमारे सामने खड़े हैं। वर्तमान समाज कितना शिक्षित है (किस वर्ग के लोग शिक्षित है) शिक्षा के अलावा समाज का अपना एक अलग रूप है वह कितने लोगों में विभक्त है.. लिंग, जाति , धर्म वग़ैरहा.. वग़ैरहा स्तरों पर लोगों को इस समाज में किन-किन स्तरों से गुजरना पड़ता है। इन सबकी यथार्थ झाँकी पेश करती हैं दिलीप मेहरा की कहानियाँ।

         हाल ही में गुजरात साहित्य अकादमी से पुरस्कृत प्रो० दिलीप मेहरा का कहानी संग्रह ‘मकान पुराण’ ऐसा कहानी संग्रह है जो वर्तमान शिक्षा व्यवस्था और समाज से हमें रूबरू कराता है। मकान पुराण की एक एक कहानी शैक्षिक जगत और समाज को परत-दर-परत उधेड़ती हुई नजर आती है। इस संग्रह की कहानियों पर बात करने से पहले हम इसके रचनाकार से थोड़ा रूबरू हो लें। कहानी संग्रह के रचनाकार प्रो० दिलीप मेहरा है जो एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हैं। कहानियाँ पढ़कर आपको हैरानी होगी कि वर्तमान चाटूकारिता के दौर में एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय का प्रोफेसर कितनी बेबाकी से बिना डरे, कहानियों के माध्यम से  शैक्षिक जगत की पोल खोलता हुआ किस प्रकार से समाज को स्वच्छ आईने के सामने खड़ा कर देता है। प्रोफेसर मेहरा की कहानियाँ मात्र कहानियाँ नही हैं.. उनका स्वयं का जिया हुआ यथार्थ है.. स्वानुभूति है और रचनाकार के स्वयं का संघर्ष है, जो इनकी कहानियों में दृष्टव्य है।

      कहानी कला की दृष्टि से देखा जाए तो मकान पुराण की कहानियाँ लघु कहानियों की श्रेणी में आतीं हैं, पर यह कहानियाँ हूबहू बिहारी के दोहों की तरह हैं 'देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर' अपनी इन लघु कहानियों के माध्यम से रचनाकार ने बड़ी ही बेबाक़ी से शिक्षा व्यवस्था हो या समाज दोनों को उकेरने का सफल प्रयास किया है। ‘मैं पीएच.-डी. हो गया’ प्रस्तुत संग्रह में संग्रहित प्रथम कहानी है। इस कहानी में वर्तमान उच्च शिक्षा व्यवस्था की परत उधेड़ते हुए पीएच.-डी. प्रवेश से लेकर आचार्य बनने तक के सफ़र का यथार्थता से अंकन करते हैं। कहानी के आरंभ में ही करारा व्यंग्य है जो सौ फीसदी वास्तविक है 'हर फैकेल्टी में अध्यापक इस तरह पीएच.-डी. हो रहे हैं जैसे जमीन के बिल से निकलती धड़ा-धड़ चीटियाँ। जिस प्रकार हिंदी के ख्यातिलब्ध निबंधकार परसाई जी लिखते हैं 'डॉक्टरेट योग्यता से नहीं गुरुकृपा से मिलती है। इसी का प्रतिरूप हमें इस कहानी में दृष्टव्य है। 'आचार्य पद योग्यता और डिग्री से नहीं चाटूकारिता और ट्रस्टी के रिश्तेदार होने से मिलता है ।' इस कहानी में रचनाकार पीएच.डी. जो शिक्षा की सबसे बड़ी उपाधि है, को प्राप्त करने और उसे प्राप्त करने के बाद युवा मन की मनोदशा को तटस्थता से उकेरते हैं।

     शिक्षा का सच, मारफाड़ ट्रस्टी और विदाई समारोह जैसी कहानियाँ शिक्षा व्यवस्था पर तंज कसती हुई नजर आती  हैं। ‘शिक्षा का सच में’ रचनाकार वर्तमान  युवा बेरोजगारी और  शैक्षिक जगत में परिवारवाद के सच को उजागर करते हैं। मारफाड़ ट्रस्टी में शैक्षिक जगत में प्रबंधक की तानाशाही को बखूबी उकेरते हुए विदाई समारोह में शैक्षिक जगत की चमचागीरी का यथार्थता से अंकन करते हैं।

     मकान पुराण, दापा और सौदा सामाजिक विसंगतियों पर आधारित कहानियाँ हैं। इन कहानियों के माध्यम से रचनाकार समाज के भिन्न भिन्न पहलुओं पर दृष्टि डालते हुए बड़ी ही मार्मिकता के साथ हमें समाज और उसकी मनोदशा से रूबरू कराता है। मकान पुराण आज के दौर का सच बयाँ करने वाली कहानी है। इस कहानी में दलित वर्ग की व्यथा को बड़ी ही मार्मिकता से सहेजते हुए रचनाकार देश की जातीय व्यवस्था और उसकी खामियों को समाज सापेक्ष प्रस्तुत करते हैं कि आज भी देश जब 21वीं सदी में है तब भी दलित वर्ग के किसी भी व्यक्ति को शहर में भी मकान मिल पाना कितना कठिन है । कह सकते हैं कि मकान पुराण आज के दौर का सच बयाँ करने वाली कहानी है। आप किसी शहर में जाएँ सरकारी पेशेवर हों या प्राइवेट, किंतु अगर आप दलित हैं तो आपके लिए मकान मिल पाना असंभव ही है। इस कहानी में वर्तमान जातीयवादी सोच को रचनाकार ने बड़ी ही बखूबी से दृष्टित किया है।

        अंततः हम कह सकते हैं कि रचनाकार का यह कहानी संग्रह (मकान पुराण) सफल कहानी संग्रह है जो हमें शैक्षिक और सामाजिक जगत में व्याप्त बुराइयाँ जो आज भी ज्यों का त्यों बनी हुई हैं से रूबरू कराता हुआ वर्गीय चेतना उत्पन्न करता है।

 


कुलदीप कुमार ‘आशकिरण’

शोधार्थी- हिन्दी विभाग

सरदार पटेल विश्वविद्यालय

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

पुस्तक परिचय

  


उठो, आसमान छू लें! : काव्य-संग्रह,

कवयित्री : सुदर्शन रत्नाकर,

मूल्य :220/- , पृष्ठ :110संस्करण : 2021,

प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030 

प्रवासी मन : हाइकु-संग्रह,

हाइकुकार : डॉ. जेन्नी शबनम,

मूल्य : 240/-, पृष्ठ :120, संस्करण : 2021,

प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030  

काँच-सा मन : हाइकु-संग्रह,

हाइकुकार : भावना सक्सैना,

मूल्य :210 /-, पृष्ठ :104, संस्करण : 2021,

प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030  



मीलों चलना  है : काव्य-संग्रह

कवयित्री : डॉ कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’

मूल्य : 200/- , पृष्ठ :144संस्करण : 2021,

प्रकाशक :राघव पब्लिकेशंसमंगोलपुरी नई दिल्ली-110083

गद्य-तरंग( अनुशीलन)

सम्पादक: डॉ कविता भट्ट,

मूल्य :380 , पृष्ठ :184, संस्करण : 2021,

प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030

भाव प्रकोष्ठ : हाइकु-संग्रह,

हाइकुकार : डॉ. सुरंगमा यादव,

मूल्य : 230/-, पृष्ठ :112संस्करण : 2021,

प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030  

रविवार, 1 नवंबर 2020

पुस्तक परिचय

 


समकालीन हिन्दी साहित्य में डॉ. पारूकांत देसाई ‘कबिरा’ का योगदान (अभिनंदन-ग्रंथ)

संपादक : डॉ. दिलीप मेहरा / डॉ. हसमुख परमार

मूल्य : 595

पृष्ठ : 232 

संस्करण : 2020      

प्रकाशक : अमन प्रकाशन, कानपुर





जुलाई 2025, अंक 61

  शब्द-सृष्टि जुलाई 2025 , अंक 61 परामर्शक की कलम से.... – ‘सा विद्या या विमुक्तये’ के बहाने कुछेक नये-पुराने संदर्भ..... – प्रो. हसमुख प...