रविवार, 30 नवंबर 2025

आलेख

 


यदि आज सरदार होते!

यदि सरदार न होते!

(काल्पनिक सवाल के ज़मीनी जवाब)

लगभग हर क्षेत्र से जुड़े कुछ काल्पनिक सवाल बहुत ही महत्त्वपूर्ण व आकर्षक होते हैं, लेकिन वे सवाल महत्त्वपूर्ण व आकर्षक तब कहे जा सकते हैं जब उनके जवाब सिर्फ कल्पना, भावुकता और वाक्-चातुर्य से  संबद्ध न होकर ज़मीनी हो तथा तथ्य-तर्क व बुद्धि-विचार से जुड़े हों। इसे हम कह सकते हैं सवाल काल्पनिक पर जवाब ज़मीनी। सरदार पटेल के रूप में भारतभूमि पर एक व्यक्ति का अवतरण, इस व्यक्तित्व के विचार व कर्म, भारतीय समाज व राजनीति को उनकी महती देन, ‘न किंचित शाश्वतमके नियमानुसार उस महान व्यक्तित्व का कालकवलित होना और उनके निधन के बाद उनकी कमी का खलना, ये कुछ ऐसे बिंदु हैं जिन पर विशेष गौर करते हुए कुछ सवाल स्वाभाविक हैं और ये सवाल एक तरह से वास्तविक जमीन से उठे काल्पनिक जरूर पर जवाब यदि ज़मीनी ढूँढे तो ये विषय भी अध्ययन का अच्छा विषय क्षेत्र कहा जा सकता है, और उन पाठकों व अध्येताओं के लिए तो यह विषय अत्यधिक रसप्रद व विचार व्यायाम का जो सरदार पटेल के जीवन चरित्र से अच्छी तरह से गुजरे हैं। सरदार पटेल को लेकर ख़ासकर तीन सवालों - यदि आज सरदार होते! यदि सरदार पटेल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते! यदि सरदार न होते!  सवाल बड़े रसप्रद हैं बशर्ते जवाब तर्कसंगत होने चाहिए।

हमारे देश के जिन नेताओं व समाजसेवियों को उनके दिवंगत होने के बाद हम विशेष याद करते हैं, विशेष स्थिति-परिस्थिति में उनकी कमी का अनुभव करते हैं, किसी राष्ट्रीय संकट के समय उनको याद याद किया जाता है, ऐसे नेताओं व समाजसेवियों में से एक सरदार पटेल हैं। “व्यक्ति जब अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को अपने लिए ही सीमित, संकुचित न रखकर राष्ट्र व समाज के स्तर पर नियोजित करता है तो वह निश्चित रूप से श्रेय व सम्मान का अधिकारी बनता है। सरदार पटेल इस दृष्टि से निश्चित ही उस श्रेय तथा सम्मान के अधिकारी हैं जो उन्हें दिया जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जिन राष्ट्र नेताओं की कमी को हमारे देशवासी अनुभव करते हैं उन्हीं में से वे एक हैं। आज देश के सामने कोई समस्या आती है तो बरबस मुँह से निकल पड़ता है – काश! आज सरदार पटेल जीवित होते।” [पं. श्रीराम शर्मा, पृ.4.16]

भारत की भौगोलिक सीमाओं की सुरक्षा हो या प्रशासनिक व्यवस्था या फिर राष्ट्रीयता की पूर्ण छवि या ग्रामीण व किसान जीवन.... ऐसे और भी विषय व तत्संबंधी भारत की सांप्रत स्थिति को लेकर सरदार पटेल का स्मरण बहुत ही स्वाभाविक और इनकी उपस्थिति [जो कि संभव नहीं लेकिन तर्कसंगत कल्पना-अनुमान ] मतलब उक्त क्षेत्रों की समस्याओं का अचूक निराकरण। यही उनकी आज के संदर्भ में उपयोगिता है, प्रासंगिकता है। उनके विचार व कर्म आज भी प्रेरक हैं। दूसरी एक बात यह भी कि अपने समय में सरदार पटेल के सामने जैसी और जितनी चुनौतियाँ थीं वैसी गंभीर एवं अनेकानेक चुनौतियाँ आज भी हैं , लेकिन विश्वास है कि यदि आज वो महापुरुष होते तो लड़ने और जीतने में रत्तीभर पीछे नहीं रहते। असल में स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद, मतलब साढ़े तीन वर्षों के अल्प समय बीतते ही सरदार पटेल ने इस दुनिया से विदाई ले ली। लोग कहते हैं, और बिल्कुल सही ही कहते हैं कि - सरदार इस दुनिया को ऐसे समय छोड़कर गए जब उनकी जरूरत देश को, भारत की राजनीति को ज्यादा थी। कहते हैं – यदि सरदार और दस एक वर्ष रहते नो देश की स्थिति कुछ और ही बेहतर होती। कुछ ऐसी समस्याएँ - और बड़ी गंभीर समस्याएँ जो आजादी के साथ ही मिलीं - और कह सकते हैं कि यदि सरदार कुछ और समय-साल रूक जाते तो उनकी दूरदर्शिता से ये समस्याएँ भी सुलझ सकती थीं।

सरदार पटेल भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री। इस संदर्भ में एक काल्पनिक सवाल यह भी उठाया जाता है कि यदि सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते! विचारक-विश्लेषक-मीडिया अपने-अपने ढंग से-अपने विचारों-मतों-तर्कों  के आधार पर इस प्रश्न और इसके उत्तर की चर्चा करते हैं। सरदार पटेल जयंती और राष्ट्रीय एकता दिवस पर उक्त विषय पर भी विविध न्यूज चैनल बहुत ही अच्छी तरह से कतिपय बिंदुओं को हमारे समक्ष रखते हैं। जैसे एक न्यूज चैनल से बताया जा रहा था कि अगर सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री बन गए होते तो देश की तस्वीर कुछ अलग हो सकती थी, इसी क्रम में आगे बताया कि जम्मू कश्मीर की समस्या, धार्मिक राजनीति, चीन-पाकिस्तान को लेकर विदेशनीति, अलगाववादी आंदोलन, आर्थिक स्थिति, भाषा नीति प्रभृति विषय को लेकर कुछ अलग स्थिति हो सकती थी सरदार पटेल के प्रथम प्रधानमंत्री बनने पर। इस विषय में और भी कहा जाता है यदि सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री बनते तो देश का विकास कुछ खास दिशा में.... और देश आज जिन समस्याओं से जूझ रहा है और पटेल सुलझा देते। 

यदि नेहरू जी की जगह सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री हुए होते!  इस विषय में गुजरात के प्रसिद्ध चिंतक व लेखक जय वसावडा का मत भी देखिए- जय वसावडा का कहना है कि इस काल्पनिक सवाल के जवाब में रंगीन-ख्वाबों में खो जाने की हमारे चिंतन-चतुरों की अतिप्रिय एक प्रवृत्ति है। और यह कार्य एक तरह से भाषा का भ्रष्टाचार और मन का मनोरंजन है। और इस प्रश्न की चर्चा में कभी-कभी विचार-तथ्य-तर्क के स्थान पर भावुकता-संवेदना का पुट ज्यादा रहता है।

आगे नेहरू जी की जगह सरदार पटेल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते तो! प्रश्न का बड़ी ही सहजता से स्पष्ट उत्तर देते हुए जय वसावड़ा भी लिखते हैं कि यदि सरदार पटेल प्रथम प्रधानमंत्री होते तो नेहरू भारत को दूसरे प्रधानमंत्री होते, इसलिए कि 1947 में भारत आजाद हुआ और 1950 में सरदार पटेल का निधन, नेहरू इसके बाद एक दशक से भी ज्यादा जिए। यदि सरदार पटेल प्राइम मिनिस्टर के रूप में फर्स्ट चोइस होते तो उनकी नैचुरली मृत्यु के बाद नेहरू ही सेकंड चॉइस होते। लेकिन वसावड़ा जी इस बात को बड़ी गंभीरता से रखते हैं कि यदि सरदार कुछ साल और जिए होते तो आजादी के साथ ही मिली कश्मीर एवं और कुछ समस्याएँ उनकी दूरंदेशी दृष्टि-सूझबूझ से सुलझ सकती थीं। लेकिन वह तब जब सरदार कुछ समय रहते - सरदार का जाना देश के लिए कितना दुखद - कितनी बड़ी क्षति थी।  इस संदर्भ में भी जय वसावड़ा एक उद्धरण के माध्यम से लिखते हैं कि सरदार पटेल अपने अंतिम समय में अस्वस्थ थे तब उनकी तबीयत पूछने-देखने का अनुरोध करने वालों को देश के प्रथम राष्ट्रपति बाबू राजेन्द्रप्रसाद ने बड़ी मार्मिक बात कही कि ‘हमें उनकी तबीयत की नहीं अपितु उनके बगैर हमारी तबीयत की चिंता करनी है।’ [ दृष्टव्य - सुपर हीरो सरदार, गुजराती पुस्तक, ले. जय वसावड़ा, पृ० 14]

अगर सरदार पटेल न होते! – ये भी एक अलग तरह का सवाल है। अलग तरह का इसलिए कि इसका उत्तर देना मुश्किल बिल्कुल नहीं। सीधा उत्तर है कि सरदार का जो योगदान है वह न होता यदि वे न होते। और इनके इस योगदान के बगैर देश की स्थिति का अनुमान हम अच्छी तरह से कर सकते हैं। सबसे पहले तो स्वाधीनता संघर्ष के उन महानायकों की सूची में शामिल नामों में से किसी के उस समय न होने का मतलब देश ने आजादी प्राप्ति में जितना संघर्ष किया, जितनी कठिनाइयों का सामना किया उसकी मात्रा व अवधि निश्चित रूप से ज्यादा होती, और उसमें भी सरदार पटेल जैसे बड़े स्वातंत्र्य सेनानी के न होने की कल्पना करना, जिनके स्वाधीनता आंदोलन में योगदान को लेकर इतिहास का एक बड़ा अध्याय हमारे समक्ष है, मतलब इनके बगैर की स्थिति का अनुमान-कल्पना अच्छी तरह से हम कर सकते हैं। आजादी की लड़ाई के साथ-साथ गाँव-शहर-स्त्री-किसान की सेवा-उनसे जुड़ी विविध समस्याओं का सरदार पटेल द्वारा निवारण, इसे भी हम यहाँ-इस प्रसंग में याद कर सकते हैं। सरदार पटेल का सबसे बड़ा काम – सबसे बड़ी उपलब्धि 562 रियासतों का एकीकरण - देश की एकता-अखंडता के विषय में सरदार का होना और न होने का अंतर भी हम बखूबी बता सकते हैं। स्वतंत्रता के बाद सरदार न होते - उनकी सूझबूझ - नीति बुद्धि न होती तो देश का एक बड़ा भाग राजनैतिक दृष्टि से अलग हो गया होता। 562 रियासतों का भारत संघ में विलय-एकीकरण न होता यदि सरदार न होते, देश की स्थिति, एकता-अखंडता के लिहाज से इतनी अच्छी न होती जैसी आज है।


1 टिप्पणी:

  1. दुष्यन्त कुमार व्यास14 दिसंबर 2025 को 11:17 pm बजे

    सरदार होते या न होते
    हैं तो काल्पनिक प्रश्न पर उत्तर बिल्कुल सही और जमीनी है ।यदि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री सरदार पटेल होते तो भारत वीटो पावर वाला देश होता न तो गोवा की समस्या, न काश्मीर समस्या और न ही तुष्टिकरण की नीति होती।
    हो सकता है उचित उपचार न मिलने के कारण सरदार का असमय निधन हुआ कह नहीं सकते पर इतना तो तय है किगाँधी का अनावश्यक हस्तक्षेप न होता तो पटेल ही दैव के प्रधानमंत्री होते।

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