स्वाधीनता
सेनानी, समाजसेवी और राजनीतिज्ञ : सरदार वल्लभभाई पटेल
बतौर
एक समाजसेवी, स्वाधीनता आंदोलन के महान नेता तथा
कुशल राजनेता सरदार पटेल का अवदान सिर्फ इतिहास के पृष्ठों पर ही नहीं, अपितु भारतीय जनों के मन और जीवन में अंकित है, सदैव
स्मरणीय है।
1917
में पटेल के जीवन की मानो दिशा ही बदल गई जब वे गाँधीजी के संपर्क में आए और
स्वतंत्रता की लडाई में ज्यादा सक्रिय हुए । एक स्वतंत्रता सेनानी व सत्याग्रही के
रूप में सरदार पटेल ने विशेष रूप से 1918 के खेड़ा सत्याग्रह से प्रारंभ कर स्वाधीनता
प्राप्ति तफ कई महत्त्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व करते हुए अपनी एक महत्त्वपूर्ण
भूमिका का निर्वहण किया। वैसे ये आंदोलन भारतीय समाज की विविध समस्याओं को लेकर थे
किंतु इन सभी आंदोलनों का मूल उद्देश्य तो स्वतंत्रता की प्राप्ति से ही संबद्ध
रहा।
आजादी
की लड़ाई के प्रमुख नेताओं-नायकों की सूची में शुमार सरदार पटेल की खेड़ा सत्याग्रह
[1918],
नागपुर झंडा सत्याग्रह [1923], बारडोली किसान
आंदोलन [1928], बोरसद सत्याग्रह [1924], भारत छोडो आंदोलन [1942] के साथ-साथ और भी कई सामाजिक सुधार व स्वाधीनता
संग्राम से जुडी गतिविधियों में सरदार पटेल की केन्द्रीय भूमिका रही। इस दरमियान
ब्रिटिश सरकार द्वारा उनकी कई बार गिरफ्तारी की गई और जेल में बंद भी किए गए।
गाँधी विचारधारा के साथ साथ अपने विचारों के प्रचार तथा सत्याग्रह - स्वतंत्रता
संग्राम को लेकर भारतीय जनता में एक उत्साह-ऊर्जा के संचार हेतु सरदार ने ‘सत्याग्रह’
नामक पत्रिका का भी प्रारंभ किया।
बारडोली किसान आंदोलन
स्वाधीनता
की चाह सरदार पटेल में शैशवावस्था से ही बड़ी प्रबल थी,
अतः इसी अवस्था से अंग्रेज और अग्रेज शासन के विरोध का स्वर उनका
काफी बुलंद रहा। स्वतंत्रता की लडाई के दौरान जनता में उत्साह, साहस, ऊर्जा और देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना
को और ज्यादा दृढ़ करते हुए वे कहते हैं- “याद रखना मौत एक बार आती है, दो बार नहीं। अंततः हम सभी को मरना तो है ही, गरीब-
अमीर चाहे कोई भी हो। अतः मौत से बिना डरे हमें निडर-निर्भीक बनना ही पड़ेगा।” (सवाया
बिस्मार्क-लौहपुरुष सरदार पटेल-गुजराती पुस्तक, दिनेश प्र. देसाई, पृ. 151)
जैसा
कि हमने देखा सरदार पटेल ने कई आंदोलनों में किसानों का नेतृत्त्व किया। राष्ट्रीय
आंदोलन के इतिहास में बारडोली कृषक सत्याग्रह का तो विशिष्ट स्थान है। इस
सत्याग्रह में सरदार पटेल ने कमाल कर दिखाया था। इसी बरडोली सत्याग्रह से सरदार पटेल
को देश के एक बड़े और शक्तिशाली नेता के रूप में पहचान मिली। अपने कुशल नेतृत्व के
चलते इसी समय वल्लभभाई को ‘सरदार’ नाम - उपनाम मिला । “वल्लभभाई की शक्ति और सामर्थ्य को देखते हुए बापू ने
कहा था कि मैं अन्य कामों में व्यस्त होने के कारण इस आंदोलन का नेतृत्व वल्लभभाई
को सौंपता हूँ। आज से वो आपके ‘सरदार’ है।
इस तरह इसी दिन से वल्लभाई को अपना ‘सरदार’ उपनाम मिला।”(वही, पृ. 34) सरदार पटेल का नेतृत्व, सहयोग तथा उनके प्रेरक एवं
उत्साहवर्धक शब्द-निर्भीक वाणी ने इस सत्याग्रह में किसानों को नवीन चेतना व ऊर्जा
से भर दिया। कहते हैं कि बारडोली के किसान
आंदोलन के बाद सरदार पटेल पूरे भारत में एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में स्थापित एवं
स्वीकृत हुए।
बारडोली किसान आंदोलन
असहयोग
आंदोलन में अहम भूमिका निभाते हुए सरदार पटेल ने स्वतंत्रता-स्वराज जैसे विषय पर महत्त्वपूर्ण
विचार व्यक्त किये । उन्होंने कहा – “हमें किसी दूसरे पर राज नहीं करना है,
परंतु जैसे फ्रांसीसी लोग फ्रांस में राज्य करते हैं, जर्मन लोग जर्मनी में और इटली वाले इटली में करते हैं, उसी प्रकार हम सिर्फ चाहते हैं कि हिन्दुस्तान के लोग हिन्दुस्तान में
राज्य करें।”
भारतीय
स्वाधीनता आंदोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में विशेष गति देने के साथ-साथ
भारतीय समाज की सेवा व उसके सुधार के प्रति भी बड़े सजग रहने वाले सरदार ने अपनी सामाजिक
व राजनीतिक सक्रियता से भी स्वतंत्रता पूर्व व स्वातंत्र्योत्तर भारत के विकास व
निर्माण में अहम योगदान दिया जिसके चलते उन्होंने भारतीय इतिहास में एक गौरवपूर्ण
स्थान पाया।
किसान
और स्त्री समाज के अधिकारों व समस्याओं, अस्पृश्यता,
सांप्रदायिक वैमनस्य, व्यसन, धार्मिक संकीर्णता आदि को लेकर सरदार आजीवन चिंतित और जागरूक रहे और
वैचारिक व व्यावहारिक स्तर पर समाजसुधार के कार्य से जुड़े रहे। छुआछूत, स्त्री अत्याचार, व्यसन व हिन्दू-मुस्लिम के लिए
आवाज उठाई। उन्होंने किसान और स्त्री जीवन की समस्याओं को अच्छी तरह समझा तथा उसके
निवारण के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। स्त्री उन्नति के प्रबल हिमायती सरदार
स्त्री को सम्बोधित करते हुए कहते हैं – “आप अबला हो ऐसा क्यों मानती हो? आप तो
शक्ति हैं। अपनी माँ के बिना कौन-सा पुरुष पृथ्वी पर अवतरित हुआ ?” अस्पृश्यता को हिन्दू धर्म का एक बड़ा कलंक बताते हुए समाज को इससे मुक्त
करना जरूरी मानते हुए वे कहा करते थे कि परमात्मा और प्रकृति में जातपाँत व धर्म
को लेकर कभी भी भेदभाव नहीं दिखा और दिखेगा भी नहीं । ग्रामीण लोगों को डाकुओं
तथा सरकार की पुलिस के अन्याय-अत्याचार से बचाने के लिए भी सरदार सबसे आगे रहे।
सन्
1917 से 1928 तक पूरे ग्यारह वर्ष सरदार पटेल अहमदाबाद नगरपालिका से जुड़े रहे। “राष्ट्रीय आंदोलन में पटेल भविष्य के उन कई
नेताओं में से एक थे जिन्होंने नगरपालिका राजनीति से अपनी शुरुआत की थी। वे
अहमदाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष बने, जैसे
नेहरू इलाहाबाद में, सी. आर. दास कलकत्ता में और प्रसाद पटना
में बने थे।” (अखंड भारत के शिल्पकार, हिंडोल सेन गुप्ता, पृ. 53) अपने अहमदाबाद
नगरपालिका के कार्यकाल दरमियान सरदार पटेल ने बड़े ही उपयोगी काम किए। अहमदाबाद में
प्लेग महामारी के समय सरदार की सेवाएँ, अहमदाबाद की वाडीलाल
हॉस्पिटल की स्थापना, शहर में स्वच्छ पानी की व्यवस्था,
शहर में स्नानागार व शौचालय की सुविधा, विक्टोरिया
गार्डन, रेडियो स्टेशन प्रभृति में सरदार का प्रदान महत्त्वपूर्ण
था।
अहमदाबाद
नगरपालिका में रहते हुए स्वच्छता को लेकर तथा प्लेग महामारी के समय सरदार पटेल के काम
के बारे में – “पटेल और उनके सभी कार्यकर्ताओं ने हरिजन बस्ती [ दलितों के घरों]
से शुरू करते हुए अहमदाबाद की गलियों को झाडू और कूड़े की गाडियाँ लेकर साफ किया।
जैसे ही अहमदाबाद में वर्ष 1917 में प्लेग का आक्रमण हुआ,
उन्होंने अपने सभी कार्यकर्ताओं के साथ चौबीसों घंटों पीडितों और
उनके परिवारों की मदद करने के लिए कार्य किया। उन्होंने ऐसा अपने प्रति छूत का
जोखिम उठाते हुए किया, जैसाकि वर्ष 1896 में बालगंगाधर ‘लोकमान्य’ ने पुणे प्लेग के दौरान किया था। इससे
होने वाले श्रम और तनाव ने पटेल के मजबूत स्वास्थ्य को हिला दिया, परंतु उनकी एक जनसाधारण के नेता वाली ख्याति को और पक्का कर दिया ।” (अखंड
भारत के शिल्पकार, हिंडोल सेन गुप्ता, पृ. 52)
भारतीय
राजनीति के एक प्रमुख व शक्तिशाली स्तंभ रहे सरदार पटेल ने “सर्व प्रथम कांग्रेस पार्टी संगठन को
शक्तिशाली बनाने, उसमें एकता बनाये रखने तथा उसकी छवि को सुधारने में सरदार पटेल
ने अपने एक कुशल प्रशासक के व्यक्तित्व का परिचय दिया।” आजादी के पहले से लेकर
उनकी वर्ष 1950 में मृत्यु तक राजनीति में उनका योगदान कई दृष्टियों से विशेष महत्त्वपूर्ण
रहा। सरदार पटेल की राजनीति पूरी तरह निष्ठा व नैतिकता पर आधारित थी ।
स्वातंत्र्योत्तर
भारतीय राजनीति में शासन व सत्ता के रूप में सरदार पटेल ने 15 अगस्त 1947 से 15
दिसम्बर 1950, साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल में उप
प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री के रूप में कार्य किया । भारत जब स्वाधीन हुआ तो हमारा
देश अनेक छोटे राज-राजवाडों में विभाजित था। उनको एकत्र करके एक राष्ट्र बनाने का
भगीरथ कार्य हमारे लौहपुरुष और आधुनिक युग के चाणक्य कहे जाने वाले सरदार पटेल ने
किया। जूनागढ़ और हैदराबाद के नवाबों को समझाने का और एतदर्थ साम, दाम, दण्ड, भेद इत्यादि के
प्रयोग द्वारा इन दो रियासतों को भारत के गणतंत्र में मिलाने का जो असंभव कार्य
सरदार पटेल ने किया उसे अभूतपूर्व ही कहा जाएगा। कश्मीर के प्रश्न को लेकर उस समय
यदि सरदार पटेल की बात मान ली जाती तो यह समस्या कदाचित सदा के लिए हल हो गई होती
।
भारत
की संविधान सभा के एक वरिष्ठ सदस्य के रूप में सरदार पटेल ने संविधान निर्माण में
भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । प्रांतीय संविधान समितियों तथा मौलिक अधिकारों,
अल्पसंख्यकों एवं जनजातियों के सलाहकार के रूप में इनसे जुडी
समितियों की अध्यक्षता सरदार पटेल ने की थी । “सरदार संविधान सभा की तीन
महत्त्वपूर्ण उपसमितियों के अध्यक्ष थे। मौलिक अधिकारों की उपसमिति; अल्पसंख्यक उपसमिति तथा प्रांतीय संविधान उपसमिति । इसके अतिरिक्त अन्य
महत्त्वपूर्ण प्रावधानों के विकास में भी सरदार की भूमिका निर्णायक रही। विशेषकर
शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना, संविधान की संकटकालीन
व्यवस्था, स्वतंत्र निर्वाचन आयोग के गठन, देशी राज्यों के विलीनीकरण तथा एकीकरण, सरकारी
सेवाओं से संबंधित धाराएँ, जम्मू- कश्मीर राज्य की विशेष
व्यवस्थाओं से संबंधित अनुम्छेद 370 के प्रावधान तथा भाषा नीति ।” (सरदार वल्लभभाई
पटेल : व्यक्तित्व एवं विचार, पृ. 165)
एक
कुशल प्रशासक सरदार पटेल ने भारतीय सेवाओं के महत्व को अच्छी तरह जानकर-समझकर
भारतीय संघ के लिए इसकी आवश्यकता देखते हुए भारतीय प्रशासनिक सेवा-अखिल भारतीय
सेवा प्रणाली की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरदार के इस काम के लिए
इन्हें ‘भारत के सिविल सेवकों के आश्रयदाता संत’ कहा जाता है।
अक्टूबर
1947 में जूनागढ़ के भारत के गणतंत्र में मिलने के बाद अपने प्रभास-पाटण सोमनाथ (गुजरात
के सौराष्ट्र में) के दौरे के दरमियान सरदार पटेल ने भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत
प्राचीन व गौरवशाली जो खंडहर स्थिति में था, जिसका जीर्णोद्धार-पुनर्निमाण का दृढ़ संकल्प
लिया और घोषणा की- “हमने निर्णय लिया है कि सोमनाथ का पुनर्निमाण किया जाना चाहिए।
यह एक पवित्र कार्य है जिसमें सभी को भाग लेना चाहिए। भारत सरकार ने मंदिर के
पुनर्निमाण और मंदिर की स्थापना का निर्णय लिया है।”
अंत
में,
सार रूप में कह सकते हैं कि स्वाधीनता की लड़ाई, कांग्रेस पक्ष की सुदृढ़ता, देशी रियासतों का एकीकरण,
आजादी के बाद भारतीय शासन-प्रशासन की सुव्यवस्थित पद्धति-प्रणाली, भारतीय संविधान का निर्माण, अखिल भारतीय सिविल सेवा,
सामाजिक संरचना में एकता-समानता, समाजसेवा समाजसुधार
प्रभृति में सरदार की अद्वितीय भूमिका रही जो सिर्फ भारतीय इतिहास में ही नहीं
बल्कि विश्वइतिहास में विशेष उल्लेखनीय रही है। अफसोस इस बात का कि आज़ादी के तुरंत
बाद-सिर्फ साढ़े तीन वर्ष में ही सरदार पटेल का देहान्त हो जाता है। यदि कुछ वर्ष
और भारतीय समाज व राजनीति में सरदार पटेल रहते तो भारत और बेहतर होता। सरदार पटेल
की मृत्यु से भारत के राजनीतिक इतिहास में जो अवकाश [Vaccum] पैदा हुआ वह शायद आज भी भरा नहीं गया है।





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