शब्दसृष्टि
का 64 वाँ अंक
प्रकाशपर्व
की मंगलकामनाओं सहित.....
प्रो.
हसमुख परमार
हमारी
संस्कृति का एक अभिन्न और अहम अंग है – त्यौहार। हम जानते हैं कि हमारे हर पर्व- त्यौहार
के मूल में कोई न कोई पौराणिक या ऐतिहासिक या लोक-प्रचलित कथा-कहानी होती ही है जो
उस पर्व व त्यौहार विशेष के प्रारंभ, परंपरा व
प्रयोजन को बताती है। वैसे किसी त्यौहार के मनाने के मूल निमित्त रही कथा-कहानी
चाहे जो भी हो, त्यौहार होता है मुख्यतः आनंद-उत्साह,
संदेश, संकल्प, सकारात्मक
सोच तथा व्यक्ति, परिवार, समाज व
राष्ट्र के प्रति हमारे सद्भावनात्मक सरोकारों का ही दूसरा नाम।
भारतीय
संस्कृति और समाज में मनाये जाने वाले त्यौहारों में दिवाली या दीपावली का कुछ
ज्यादा ही महत्त्व रहा है। पाँच दिवसीय इस प्रकाशपर्व के साथ जुड़े रामायण,
महाभारत तथा जैन धर्म के कतिपय संदर्भों से हम परिचित ही हैं। दीयों
की प्रभा से तिमिर को दूर करने का संदेश लेकर आने वाला यह पर्व हमारे जीवन को और
बेहतर तथा औरों के लिए ज्यादा उपयोगी बनाने की प्रेरणा देता है। यहाँ दीयों के
प्रकाश तथा तम की प्रतीकात्मकता भी बड़ी वैविध्यपूर्ण व गहरी है। प्रकाश-ज्ञान,
सत्य, प्रेम, सौहार्द्र,
भाईचारा, मनुष्यता की ज्योति जिसे तम यानी
अज्ञान, असत्य, मन की कुत्सित
वृत्तियों-विकारों को दूर करना। और युगों-युगों से इस ‘उजाले’
और ‘तम’ में संघर्ष चल
रहा है। । यह भी न भूलें कि ‘तम’ भी
बड़ा बलशाली है। इतना जल्दी मिटेगा नहीं । ये ‘अँधेरे’ इतनी
आसानी से छँटते नहीं।
कवि
नीरज लिखते हैं –
बहुत
बार आई-गई यह दिवाली
मगर
तम जहाँ था, वहीं पर खड़ा है।
बहुत
बार लौ जल बुझी पर अभी तक
कफ़न
रात का हर चमन पर पड़ा है।
किंतु
यह त्यौहार हमारे भीतर एक नवीन उत्साह व ऊर्जा का संचार करता है,
आशावादी व सकारात्मक सोच से हमारे मन-मस्तिष्क को भरता है, हमें अंधकार से जूझने के लिए प्रेरित करता है, ‘तमसो
मा ज्योतिर्गमय’ के साथ-साथ ‘अप्प दीपो भवः’ जैसे
भारतीय संस्कृति के महामंत्रों का स्मरण कराता है। पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी अपने ‘अंधकार से जूझना है!’ निबंध में लिखते हैं – “दीवाली
आकर कह जाती है कि अंधकार से जूझने का संकल्प ही सही यथार्थ है। मृगमरीचिका में मत
भटको। अंधकार की सैकड़ों परत हैं। उससे जूझना ही मनुष्य का मनुष्यत्व है। जूझने का
संकल्प ही महादेवता है। उसी को प्रत्यक्ष करने की क्रिया को लक्ष्मी की पूजा कहते
हैं।”
हमारा
घर,
आँगन, अंतःकरण तथा समाज-राष्ट्र इस दीपोत्सवी
उजाले से सदैव आलोकित रहे, इसी कामना व प्रार्थना के साथ शब्दसृष्टि
के आप सभी पाठकों तथा अपने ज्ञान, विचार व शब्दों के प्रकाश
से शब्दसृष्टि को प्रकाशित करने वाले तमाम कलमकारों को दीपोत्सव की हार्दिक
शुभेच्छाएँ । शब्दसृष्टि का यह 64वाँ अंक इसी
प्रकाशपर्व के उपहार रूप में आपके समक्ष सहर्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। पुनः आप सभी
के लिए – प्रकाशपर्व मंगलमय हो !
प्रो.
हसमुख परमार
स्नातकोत्तर
हिन्दी विभाग
सरदार
पटेल विश्वविद्यालय
वल्लभ
विद्यानगर
आणंद
(गुजरात)
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